यानि ईश्वर के पैदा किये हुए इंसानो की उसके बताये तरीके से तन, मन, धन से मदद करना ।
ईश्वर की कृपा से हमारे पास बहुत सी वस्तुएं उपभोग के लिए है खाना-पीना, घर, गाड़ी, मोबाइल आदि हम जब चाहे ईश्वर की दी चीजों का उपयोग कर सकते है ।
लेकिन आज समाज कई गरीब, अनाथ, विधवा, मजबूर, बेसहारा बीमारी से परेशान लोग मौजूद है और शर्म की वजह से हाथ भी नही फैलाते ऐसे लोगों को ढूंढ कर उनकी सहायता करना ही असल ईश्वर भक्ति और मानव सेवा है। हम को यही शिक्षा हमें धर्म ग्रंथों में दी गई थी देखें
परस्परं भावयन्तः श्रेय: परमवाप्स्यथ।।
अर्थ - निः स्वार्थ भाव से एक दूसरे की सहायता करो तुम परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे
(श्रीकृष्ण) गीता अध्याय 2 कर्मयोग श्लोक 11
"अर रहमू अहल अर्जी यर हमकुम मन फिस समाई"
तुम जमीन वालों पर दया करो आसमान वाला एक सत्य ईश्वर आप पर दया करेगा
(मुहम्मद ) अंतिम ईशदूत (वचन कथन - अबु दाऊद : 4941)
दान देने से पहले अपने कमजोर, लाचार, और बेसहारा भाई को सहारा दो,
क्योंकि तुम्हारे दान की भगवान से ज्यादा तुम्हारे भाई को जरूरत है
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शांति का पैग़ाम