सत्य और मिथ्या क्या है

Saty Aur Mithya (Truth & False)
एक सत्य ईश्वर के नाम से जो बड़ा कृपाशील, है ।

मनुष्य शुरू से चमत्कारों से प्रभावित रहा है, कहा भी जाता है चमत्कार को नमस्कार इसलिए वो मनुष्य की और प्रकृति की बनी हुई छोटी-मोटी चीजों से प्रभावित हो कर उन पर विश्वास व्यक्त करता रहता है, महल, किले, मीनार, पुल, मशीनें कही कोई पत्थर हवा में देखता, कही कोई आग को 400 सालों से जलते हुए देखता, कही जमीन से निकाली वस्तुएं देखकर चमत्करित हो जाता है परन्तु उस एक सत्य ईश्वर की बनाई हुई अनेक चीजो को रोज देखता है लेकिन चिंतन-मनन नही करता की ये पृथ्वी अरबो सालों से आकाश में बिना किसी सहारे टिकी है, सूरज 4 अरब सालों से जल रहा है, जमीन से निकलने वाले साधनों से जीवन जीता है, जैसे पेड़, पौधे, धान, जल, फल, कन्द, सोना, चांदी, लोहा, पेट्रोल, हजारों प्रकार की उपयोगी वस्तुएं, लेकिन इनको चमत्कार नही समझता क्या कोई मनुष्य इन्हें बना सकता है, प्रभु धर्मग्रंथों में कहता है सत्य पर आस्था लाओ और मिथ्या को ठुकरा दो ।
दृष्टवा रूपे व्याकरोत्सत्या नृते प्रजापतिः।
अश्रद्धा मनृतो अदधाच्छदाँ सत्ये प्रजापतिः।
अर्थ : परमेश्वर ने सत्य और मिथ्या के रुप को अपनी ज्ञान दृष्टि से अलग अलग कर दिया और आदेश दिया कि सत्य में आस्था लाओ और मिथ्या को ठुकरा दो ।
वेद (यजुर्वेद 19:17)
कद् तबय्यन रुषदु मिनल्गय्यि फ मँय्यक्फुर बित्तागूति व युअमिम् - बिल्लाहि फ कृदिस्तम् - स - क बिल् - उर्वतिल - वुस्का
अर्थ : सदमार्ग, को गुमराही से अलग स्पष्ट कर दिया गया तो अब जो कोई असत्य को ठुकरा दे और एक सत्य ईश्वर पर आस्था ले आए उसने बड़ा प्रबल सहारा थाम लिया ।
क़ुरान (सुराह बक़रह 2/256)
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