सावधान ! यह जीवन परलोक की तैयारी है

 

 लेखक  : प्रोफ़ेसर के. एस. रामा कृष्णा राव की पुस्तक मुहम्मद सल्ल.  इस्लाम के पैग़म्बर के कूछ अंश पूरी पुस्तक पढ़ने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करे 

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सावधान ! यह जीवन परलोक की तैयारी है

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Prophet Muhammad
 

ख़ुदा की कुछ कार्य-पद्धति को तो तुम समझते हो लेकिन बहुत-सी बातें तुम्हारी समझ से दूर और नज़र से ओझल हैं। ख़ुद तुम में जो चीजें छिपी हुई हैं और संसार की जो चीज़ें तुमसे छिपी हुई हैं वे दूसरी दुनिया में बिल्कुल तुम्हारे सामने खोल दी जाएँगी। सदाचारी और नेक लोगों को ख़ुदा का वह वरदान प्राप्त होगा जिसको न आँख ने देखा, न कान ने सुना और न मन कभी उसकी कल्पना कर सका। उसके प्रसाद और उसके वरदान क्रमशः बढ़ते जाएँगे और उसको अधिकाधिक उन्नति प्राप्त होती रहेगी। लेकिन जिन्होंने इस जीवन में मिले अवसर को खो दिया वे उस अनिवार्य क़ानून की पकड़ में आ जाएँगे, जिसके अन्तर्गत मनुष्य को अपने करतूतों का मज़ा चखना पढ़ेगा। उनको उन आत्मिक रोगों के कारण, जिनमें उन्होंने ख़ुद अपने आपको ग्रस्त किया होगा, उनको इलाज के एक मरहले से गुज़रना होगा। सावधान हो जाओ। बड़ी कठोर व भयानक सज़ा है। शारीरिक पीड़ा तो ऐसी यातना है, उसको तुम किसी तरह झेल भी सकते हो, लेकिन आत्मिक पीड़ा तो जहन्नम (नरक) है जो तुम्हारे लिए असहनीय होगी। अतः इसी जीवन में
अपनी उन मनोवृत्तियों का मुक़ाबला करो, जिनका झुकाव गुनाह की ओर रहता है और वे तुम्हें पापचार की ओर प्रेरित करती हैं। तुम उस अवस्था को प्राप्त करो, जबकि अन्तरात्मा जागृत हो जाए और महान नैतिक गुण प्राप्त करने के लिए विफल हो उठे और अवज्ञा के अवरुद्ध विद्रेाह करे। यह तुम्हें आत्मिक शान्ति की आख़िरी मंज़िल तक पहुँचाएगा। यानी अल्लाह की रिज़ा हासिल करने की मंज़िल तक। और केवल अल्लाह की रिज़ा ही में आत्मा का अपना आनन्द भी निहित है। इस स्थिति में आत्मा के विचलित होने की संभावना न होगी, संघर्ष का दौर गुज़र चुका होगा, सत्य ही विजयी हेाता है और झूठ अपना हथियार डाल देता है। उस समय सारी उलझनें दूर हो जाएँगी। तुम्हारा मन दुविधा में नहीं रहेगा, तुम्हारा व्यक्तित्व अल्लाह और उसकी इच्छाओं के प्रति सम्पूर्ण भाव के साथ पूर्णतः संगठित व एकीकृत हो जाएगा। तब सारी छुपी हुई शक्तिया एवं क्षमताएँ पूर्णतः स्वतंत्र हो जाएँगी और आत्मा को पूर्ण शान्ति प्राप्त होगी, तब ख़ुदा तुम से कहेगा-
‘‘ऐ सन्तुष्ट आत्मा, तू अपने रब से पूरे तौर पर राज़ी हुई, तू अब अपने रब की ओर लौट चल, तू उससे राज़ी है और वह तुझसे राज़ी है। अब मेरे (प्रिय) बन्दों में शामिल हो जा और मेरी जन्नत में दाख़िल हो जा।’’ 

(क़ुरआन 89:27.30)

मनुष्य का परम लक्ष्य

यह है इस्लाम की दृष्टि में मनुष्य का परम लक्ष्य कि एक ओर तो वह इस जगत् को वशीभूत करने की कोशिश में लगे और दूसरी ओर उसकी आत्मा अल्लाह की रिज़ा में चैन तलाश करे। केवल ख़ुदा ही उससे राजी न हो, बल्कि वह भी ख़ुदा से राजी और सन्तुष्ट हो। इसके फलस्वरूप उसको मिलेगा चैन और पूर्ण चैन, परितोष और पूर्ण परितोष, शान्ति और पूर्ण शान्ति। इस अवस्था में ख़ुदा का प्रेम उसका आहार बन जाता है और वह जीवन-स्रोत से जी भर पीकर अपनी प्यास को बुझाता है। फिर न तो दुख और निराशा उसको पराजित एवं वशीभूत कर पाती है और न सफलताओं में वह इतराता और आपे से बाहर होता है। थाॅमस कारलायल इस जीवन-दर्शन से प्रभावित होकर लिखता है-
‘‘और फिर इस्लाम की भी यही माँग है- हमें अपने को अल्लाह के प्रति समर्पित कर देना चाहिए, हमारी सारी शक्ति उसके प्रति समर्पण में निहित है। वह हमारे साथ जो कुछ करता है, हमें जो कुछ भी भेजता है, चाहे वह मौत ही क्यों न हो या उससे भी बुरी कोई चीज़, वह वस्तुतः हमारे भले की और हमारे लिए उत्तम ही होगी। इस प्रकार हम ख़ुद को ख़ुदा की रिज़ा के प्रति समर्पित कर देते हैं।’’
लेखक आगे चलकर गोयटे का एक प्रश्न उद्धृत करता है, ‘‘गायटे पूछता है, यदि यही इस्लाम है तो क्या हम सब इस्लामी जीवन व्यतीत नहीं कर रहे हैं?’’
इसके उत्तर में कारलायल लिखता है-
‘‘हाँ, हममें से वे सब जो नैतिक व सदाचारी जीवन व्यतीत करते हैं वे सभी इस्लाम में ही जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यह तो अन्ततः वह सर्वोच्च ज्ञान एवं प्रज्ञा है जो आकाश से इस धरती पर उतारी गयी है।’’


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