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हज़रत मुहम्मद सल्ल.: महानतम क्षमादान आत्मसंयम एवं अनुशासन

Prophet Muhammad

‘‘जो अपने क्रोध पर क़ाबू रखते है’’ (क़ुरआन 3:134)
एक
क़बीले के मेहमान का ऊँट दूसरे क़बीले की चरागाह में ग़लती से चले जाने की
छोटी-सी घटना से उत्तेजित होकर जो अरब चालीस वर्ष तक ऐसे भयानक रूप से लड़ते
रहे थे कि दोनों पक्षों के कोई सत्तर हज़ार आदमी मारे गए, और दोनों क़बीलों
के पूर्ण विनाश का भय पैदा हो गया था, उस उग्र क्रोधातुर और लड़ाकू क़ौम को
इस्लाम के पैग़म्बर ने आत्मसंयम एवं अनुशासन की ऐसी शिक्षा दी, ऐसा
प्रशिक्षण दिया कि वे युद्ध के मैदान में भी नमाज़ अदा करते थे ।
प्रतिरक्षात्मक युद्ध
विरोधियों
से समझोते और मेल-मिलाप के लिए आपने बार-बार प्रयास किए, लेकिन जब सभी
प्रयास बिल्कुल विफल हो गए और हालात ऐसे पैदा हो गए कि आपको केवल अपने बचाव
के लिए लड़ाई के मैदान में आना पड़ा तो आपने तणनीति को बिल्कुल ही एक नया
रूप दिया। आपके जीवन-काल में जितनी भी लड़ाइयाँ हुई- यहाँ तक कि पूरा अरब
आपके अधिकार-क्षेत्र में आ गया- उन लड़ाइयों में काम आनेवाली इंसानी जानों
की संख्या चन्द सौ से अधिक नहीं है। आपने बर्बर अरबों को सर्वशक्तिमान
अल्लाह की उपासना यानी नमाज़ की शिक्षा दी, अकेले-अकेले अदा करने की नहीं,
बल्कि सामूहिक रूप से अदा करने की, यहाँ तक कि युद्ध-विभीषिका के दौरान भी।
नमाज़ का निश्चित समय आने पर- और यह दिन में पाँच बार आता है- सामूहिक नमाज़
(नमाज़ जमाअत के साथ) का परित्याग करना तो दूर उसे स्थगित भी नहीं किया जा
सकता। एक गिरोह अपने ख़ुदा के आगे सिर झुकाने में, जबकि दूसरा शत्रू से
जूझने में व्यस्त रहता। तब पहला गिरोह नमाज़ अदा कर चुकता तो वह दूसरे का
स्थान ले लेता और दूसरा गिरोह ख़ुदा के सामने झुक जाता ।
युद्ध क्षेत्र में भी मानव-मूल्यों का सम्मान
बर्बता
के युग में मानवता का विस्तार रणभूमि तक किया गया। कड़े आदेश दिए गए कि न
तो लाशों के अंग-भंग किए जाएँ और न किसी को धोखा दिया जाए और न विश्वासघात
किया जाए और न ग़बन किया जाए और न बच्चों, औरतों या बूढ़ों को क़त्ल किया जाए,
और न खजूरों और दूसरे फलदार पेड़ों को काटा या जलाया जाए और न संसार-त्यागी
सन्तों और उन लोगांे को छेड़ा जाए जो इबादत में लगे हों। अपने कट्टर से
कट्टर दुश्मनों के साथ ख़ुद पैग़म्बर साहब का व्यवहार आपके अनुयायियों के
लिये एक उत्तम आदर्श थे। मक्का पर अपनी विजय के समय आप अपनी अधिकार-शक्ति
की पराकाष्ठा पर आसीन थे। वह नगर जिसने आपको और आपके साथियों को सताया और
तकलीफ़ें दीं, जिसने आपको और आपके साथियों को देश निकाला दिया और जिसने आपको
बुरी तरह सताया और बायकाट किया, हालाँकि आप दो सौ मील से अधिक दूरी पर
पनाह लिए हुए थे, वह नगर आज आपके क़दमों में पड़ा है। युद्ध के नियमों के
अनुसार आप और आपके साथियों के साथ क्रूरता का जो व्यवहार किया उसका बदला
लेने का आपको पूरा हक़ हासिल था। लेकिन आपने इस नगर वालों के साथ कैसा
व्यवहार किया? हज़रत मुहम्मद सल्ल. का हृदय प्रेम और करुणा से छलक पड़ा। आप
ने एलान किया
‘‘आज तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं और तुम सब आज़ाद हो ।’’
कट्टर शत्रुओं को भी क्षमादान
आत्म-रक्षा
में युद्ध की अनुमति देने के मुख्य लक्ष्यों में से एक यह भी था कि मानव
को एकता के सुत्र में पिरोया जाए। अतः अब यह लक्ष्य पूरा हो गया तो बदतरीन
दुश्मनों को भी माफ़ कर दिया गया। यहाँ तक कि उन लोगों को भी माफ़ कर दिया
गया, जिन्होंने आपके चहेते चचा को क़त्ल करके उनके शव को विकृत किया और पेट
चीरकर कलेजा निकालकर चबाया।
सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप देने वाले ईशदूत
सार्वभौमिक
भाईचारे का नियम और मानव-समानता का सिद्धान्त, जिसका एलान आपने किया, वह
उस महान योगदान का परिचायक है जो हज़रत मुहम्मद ने मानवता के सामाजिक उत्थान
के लिए दिया। यों तो सभी बड़े धर्मों ने एक ही सिद्धान्त का प्रचार किया
है, लेकिन इस्लाम के पैग़म्बर ने सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप देकर पेश
किया। इस योगदान का मूल्य शायद उस समय पूरी तरह स्वीकार किया जा सकेगा, जब
अंतर्राष्ट्रीय चेतना जाग जाएगी, जातिगत पक्षपात और पूर्वाग्रह पूरी तरह
मिट जाएँगे और मानव भाईचारे की एक मज़बूत धारणा वास्तविकता बनकर सामने आएगी।
ख़ुदा के समक्ष रंक और राजा सब एक समान
इस्लाम के इस पहलू पर विचार व्यक्त करते हुए सरोजनी नायडू कहती हैं-
‘‘यह
पहला धर्म था जिसने जम्हूरियत (लोकतंत्र) की शिक्षा दी और उसे एक
व्यावहारिक रूप दिया। क्योंकि जब मीनारों से अज़ान दी जाती है और इबादत करने
वाले मस्जिदों में जमा होते हैं तो इस्लाम की जम्हूरियत (जनतंत्र) एक दिन
में पाँच बार साकार होती है, ‘अल्लाहु अकबर’ यानी ‘‘ अल्लाह ही बड़ा है।’’ भारत की महान कवियत्री अपनी बात जारी रखते हुए कहती हैं-
‘‘मैं
इस्लाम की इस अविभाज्य एकता को देख कर बहुत प्रभावित हुई हूँ, जो लोगों को
सहज रूप में एक-दूसरे का भाई बना देती है। जब आप एक मिस्री, एक अलजीरियाई,
एक हिन्दूस्तानी और एक तुर्क (मुसलमान) से लंदन में मिलते हैं तो आप महसूस
करेंगे कि उनकी निगाह में इस चीज़ का कोई महत्त्व नहीं है कि एक का संबंध
मिस्र से है और एक का वतन हिन्दुस्तान आदि है।’’
इंसानी भाईचारा और इस्लाम
महात्मा गाँधी अपनी अद्भूत शैली में कहते हैं-
‘‘कहा
जाता है कि यूरोप वाले दक्षिणी अफ्ऱीक़ा में इस्लाम के प्रासार से भयभीत
हैं, उस इस्लाम से जिसने स्पेन को सभ्य बनाया, उस इस्लाम से जिसने मराकश तक
रोशनी पहुँचाई और संसार को भईचारे की इंजील पढ़ाई। दक्षिणी अफ्ऱीक़ा के
यूरोपियन इस्लाम के फैलाव से बस इसलिए भयभीत हैं कि उनके अनुयायी गोरों के
साथ कहीं समानता की माँग न कर बैठें। अगर ऐसा है तो उनका डरना ठीक ही है।
यदि भाईचारा एक पाप है, यदि काली नस्लों की गोरोें से बराबरी ही वह चीज़ है,
जिससे वे डर रहे हैं, तो फिर (इस्लाम के प्रसार से) उनके डरने का कारण भी
समझ में आ जाता है।’’
Muhammad SAW. Islam Ke Peghamber (Prof. Rama Krishna Rao) Book.pdf Download