Khulasa E Quran | Revealed Quran Hindi | Surah Fatiha 01 Baqrah 2 Ayat 01-182 | खुलासा ए कुरान | मुख़्तसर क़ुरान हिंदी | सूरह फातिहा 01 बकराह 2 आयत 01-182

अल्लाह के नाम से जो बडा ही मेहरबान और रहम करने वाला है

Khulasa E Quran
Khulasa E Quran

सुराह फातिहा

हकीकी तारिफ का मुस्तहीक अल्लाह है। वो तमाम जहानों का रब यानि पालनहार है। वो अर-रहमान है बेपनाह रहमत बरसाने वाला। वो बदले के दिन का यानि इंसाफ के दिन का मालिक है। हम सिर्फ तेरी ही बंदगी का इकरार करते हैं। हकीकी मदद के लिए सिर्फ तुझ ही को पुकारते हैं। ऐ रहमान हमारी सीधे रास्ते की तरफ रहनुमाई कर। उन लोगों की राह पर रहनुमाई कर जिन पर तेरी रहमतों की बारिशें हुई। उन रास्तों से बचा जिन पर तेरा गुस्सा और गजब नाजिल हुआ और जिन्होंने अपनी आखिरत तबाह कर ली। आमीन...

सुराह बकराह आयात 01 से 182

आलिफ,लाम,मीम वो किताब है जिसमें कोई शक नही, वहीं मुत्तकी इससे हिदायत हासिल कर सकते है । जो नमाजी और अल्लाह की राह में खर्च करने वाले है, गैब और सब किताबों में इमान लाने वाले और आखिरत में यकीन रखने वाले है, वो लोग काफिर जिन्हे दावत देना ना देना बराबर हो जाये, तिसरा गिराहे मुनाफिको का जो अपने आप को बहुत होशियार समझते है और साजिसे करते रहते है, लेकिन खुद ही मुंह की खाते है। लोगो अपने रब की बंदगी इख्तियार करो जो सब अगले पिछलों का खालिक है जिसने ऐसा कलाम नाजिल किया जिस के जैसी एक सुरत भी सब मिलकर नही बना सकते है। इस कुरान से वही लोग गुमराह होते है जो जान बुझकर हुदद शिकनी पर जमे रहना चाहते है ।

अपनी मौत और हयात और कायनात पर गौर करे, तो कोई काफिर नही हो सकता, इंसान की इफितदा ऐसे हुई कि अल्लाह ने अगली मखलूक लाने का इरादा जाहिर फरमाया तो फरिश्तों ने कहा वो तो बहुत खुरेजी करेगा, अल्लाह ने आदम को तमाम उलूम अता फरमाये, और फरिश्तों से उन उलूम के बारे में पूछा तो उन्होने जवाब दिया कि उनको तो इस मैदान की मेहदूद सलाहितों के साथ पैदा किया गया है, अल्लाह ने फरिश्तो और इबलिश को आदम को सज्दा करने यानि उनसे हर तरह से तावुन करने को कहा तो फरिशतों ने हुक्म की तामिल की लेकिन इबलिस अकड गया और मरदुद हो गया, जमीन पर भेजने से पहले तरबियत के लिये अल्लाह ने आदम और हव्वा को जन्नत में रखा, और मख्सुस सजरे के जायके के अलावा हर नेअमत से फायद उठाने की इजाजत दे दी, लेकिन शैतानी वसवसे के जेरे असर उनसे गलती हो गई, आदम ने माफी मांगी, और तरबियत की तकमील के बाद उन्हे एक मखसूस मुददत के लिये जमीन पर भेजने के वक्त ये बता दिया गया के नबी आते रहेगें जो उनके हिदायत के मुताबिक जिंदगी गुजारेगा कामयाब होगा, जो कुफ्र करेगा या झुठलायेगा तो जहन्नम का ईधन बनेगा।

इमान लाने वालो के बाद बनी इस्राइल का एक तवील खिताब शुरू होता है, उनसे कहा जाता कि अल्लाह का अहद दो तरफा है, तुम पांबदी करोगे तभी तुम्हे इज्जत मिलेगी, हकीर दुनिया के लिये अल्लाह की आयात का सौदा ना करो, नमाज कायम करो और इतिआत कबूल करो, अगर अपने रब से मुलाकात की उम्मीद रखते हो, सब्र व सलात का दामन पकड लो वरना आखिरत में कोई तुम्हारी मदद ना कर सकेगा, बनी इस्राइल के जराईम की तवील फहरीशत गिनाई गई ।

अल्लाह ने मूसा को कोहेतूर पर बुलाया तो इन्होंने बछड़े को माबूद बना लिया, उसने उन पर सेहरा में बादल का साया किया मन और सलवा नाजिल किया पानी का इंतजाम किया, लेकिन उन्होंने साग सब्जी गेहूं वगैरह की मांग की, उनसे कहा गया उसके लिये बस्ती में दाखिल हो जाओ लेकिन वह बस्ती वालों के मुकाबले से डर गए अल्लाह का यह उसूल यहूदी और ईसाई और साबीइन और मोमिनो के लिए एक सा है, के नजात के लिए अल्लाह और योमे आखिरत पर ईमान लाना होगा और अच्छे अमल करने होंगे। उनके नुमाइंदों से कोहेतूर पर पुख्ता अहद लिया गया था, लेकिन उन्होंने सनीचर के दिन की बे हुरमती की तो अल्लाह ने जिल्लत को उन लोगों का मुकद्दर बना दिया।

उनके दिलों से गाय की अजमत निकालने के लिए उनसे गाय जिबाह करने के लिए कहा गया तो उन्होंने इंतिहां ही हील और हुज्जत के बाद ऐसा किया, उनको कत्ल जैसे जराइम इनके लुकात समझाए गये, लेकिन उनके दिल पत्थर से ज्यादा सख्त हो गए थे, वह अहले इमान के साथ लगातार साजिश करते रहते थे, खुद कानून बनाकर अल्लाह की तरफ मंसूब करते थे और कहते थे, कि वो हमेशा की जहन्नम में नहीं जल सकते, हालांकि जिस किसी को भी उसकी खताओं की कसरत ने घेर लिया उसको जहन्नम ही में रहना होगा, उनसे अहद लिया गया के शिर्क ना करेंगे और वाल्देन के साथ हुस्ने सलुक, इकामते सलात और जकात का वादा लिया गया, जमीन में फसाद और खुंरेजी से बचने को कहा गया, लेकिन वो अल्लाह के कानून को कुछ मानते थे और कुछ का कुफ्र करते थे, जो कोई ऐसा करेगा वह दुनिया में जलील होगा और आखिरत में सख्त तरीन अजाब उसका हिस्सा होगा।

उनमें एक के बाद एक रसूल और नबी भेजे गए, और बनी इस्राइल के आखरी नबी हजरत ईसा वाजे निशानियां लेकर उनके पास आये, लेकिन उन्होंने किसी को झूठ लाया और किसी के लिए कत्ल की साजिश की और अब नबी ए आखिर सल्ल. का इंकार नस्ली बुनियाद पर कर रहे हैं क्योंकि वो बनी इसराइल में नहीं पैदा हुए, हांलाकि अपनी नस्ल बनी इस्राइल में पैदा हुये अंबिया के साथ जो सुलुक वो कर चुके थे, उसे वो जानते है, मोमिनीन की अदावत में वो मुश्रीकिन से भी बड गये, हजरत सुलेमान की तरफ कुफ्र जैसे जादू को मनसूब करके खुद कुफ्र को इख्तियार किया, अल्लाह का तरिका ये है, के पिछली किताबो में जो अहकामात मनसुख करना होते है, अगली में उससे बेहतर आते है, और जो भुला दिये जाते है उस जैसे दुबारा लाये जाते है।

बनी इस्राइल के जराईम बताने के बाद इमान लाने वालो से कहा गया के जो बाते बहुत ज्यादा वाजे करके नही बताई गई, उसको कुरेद कर बनी इस्राइल की तरह खुद को मुश्किलात में ना डालो, अहले किताब की एक बडी तादात हक वाजे हो जाने के बा वजूद हसद के बाइस इमान नही लाती, ऐसे लोगो से अल्लाह का फैसला आने तक दरगुजर करो, यहुदी और इसाई दोनो अपने आप को जन्नती कहते है, हांलाकि जन्नत में वो जायेगा जो अपने आप को अल्लाह के हवाले कर दे, और जो कहे गये वो अमल करे, यहुद और नसारा खुद आपस में एक दुसरे को बे बुनियाद कहते है।

उन लोगो की तरह अल्लाह की मस्जिदों को अल्लाह के जिक्र को अपने-अपने फिरको के लिये मखसूस ना करो, उन में से कुछ लोग अल्लाह के लिये बेटा करार देते है, हांलाकि जो कुछ भी आसमान और जमीन में है उसका हुक्म बजा लाते है तो उसको किसी बेटे की क्या हाजत, सरकशी में वो ऐसे मांगे करते है कि अल्लाह खुद उनसे कलाम करे या नबी उनकी मांग पर चमत्कार दिखाये, उससे पहले की नाफरमान कौमो का भी यही अंदाज था, यहुद और नसारा तुम से तब तक राजी ना होगें जब तक तुम उनके गिरोह की पैरवी ना करो, हांलाकि खुद उनमें से जो कोई भी अपनी तरफ भेजी गई किताब का असल तिलावत का हक अदा करेगा, वो रसुले आखिर सल्ल. पर इमान ले आयेगा।

बनी इस्राइल को हजरत इब्राहिम के मुतालिक याद दाहानी कराई गई, के उन्होने अपने सहाब जादे के साथ मिलकर काबे की तामिरे नौ की थी, और तामिर के वक्त ये दुआ की थी, ऐ रब, बनी इस्राइल में से एक ऐसा रसूल मबूस करना जो तिलावत भी करे और किताब और हिकमत का इल्म भी सिखाये, और तजकिया भी करे, जिस दीन के कयाम की उन्होने दुआ की थी, उसी दीन पर कायम रहने की उन्होने अपने बेटों और हजरत याकुब को ताकिद की थी, और याकुब ने भी अपने बेटों को अल्लाह के कवानीन मानने की वसीयत की थी, उनके हालात तो तुम्हे नसीहत के लिये सुनाये गये, अब उन लोगों के मुत्तालिक अल्लाह तुम से सवाल नही करेगा, बल्कि तुम से तुम्हारे नामें ए आमाल का हिसाब लेगा।

यहुद और इसाईयो से कहो के हम असल दीने इब्राहिमी के पैरो है, हम उन पर और सभी अंबियां पर इमान लाते है, और उनमें से किसी एक में भी फर्क नही करते, क्योकि हम अल्लाह के मुस्लिम यानि फरमाबरदार है, तुम भी ऐसे ही इमान लाओ और अल्लाह के रंग में रंग जाओ। तुम इब्राहिम और अंबिया बनी इस्राइल के लाये हुये दीन के बारे में हमसे हुज्जत करते हो तो सुनो, ना वो यहुदी थे ना इसाई थे, लेकिन असल बात ये है के अल्लाह के यहां तुम्हे उनके बारे में हिसाब नही देना होगा, बल्कि हम सबको अपने-अपने आमाल का हिसाब देना है, वो किबले के बारे में तुमसे झगडते है, हांलाकि अल्लाह तो हर जगह है, अब जिधर भी वो हुक्म दे उसे किबला बना लेना चाहिये, उसने मस्जिदुल हराम को किबला और मरकज मुकर्रर फरमाया है। जिन लोगों को किताब दी गई वो ये बात जानते है, वो इस किबले और कुरान और रसूल को ऐसे पहचानते है जैसे अपने बेटों को, लेकिन जान बुझकर हक छुपाते है, तुम मस्जिदे हराम को किबला बना कर अपनी पुरी तव्वजो अपने मंसूबों पर जाम जाओ।

इमान वालो सब्र और सलात से मदद हासिल करो, और अल्लाह की राह में मारे जाने वाले को असल जिंदगी समझो, तुम्हे हर तरफ के खौफ, खतर और आजमाईस से गुजारा जायेगा, लेकिन साबित कदम रहने वालो के लिये खुशखबरी है, पिछली शरीयतों वाले अगर हज और उमरे में सफा और मरवाह की सई नही करते थे तो वो ये ना समझे के इजाफा गलत है, क्योकि सफा और मरवाह दोनों शायरउल्लाह में से है, अब जो तालिमात अल्लाह की तरफ से नाजिल हुई है, उन्हें छुपाने वाले भी लानत जदा होगें, और उनके इंकार की हालत में मरने वाले भी, तुम्हारा हकीकी इलाह बस एक है, और उसका सबुत उसकी बनाई हुई कायनात है, इस कायनात की तखलीक और दिन और रात की तबदीली और कस्ती के समुंद्र के चलने, और आसमानी बारिश के जरिये मुर्दा जमीन से जिंदगी बरामद होने और हवाओं और बादलों पर अल्लाह का कंट्रोल होने में अक्ल वालों के लिये निशानियां है, फिर भी जैसी मुहब्बत और इतिआत अल्लाह के लिये होनी चाहिये, दिगर मखसुस के लिये उसे मखसुस कर देते है, जब वो जहन्नम में होगें एक मौका और पाने की हसरत करेगें लेकिन आग से बचने की राह ना पायेगें।

लोगों हलाल और पाक चीजे खाओ लेकिन ना फरमान लोग अपने बाप दादा के तरिके पर कायम रहना चाहते है, चाहे बाप दादा ने अक्ल से काम ना लिया हो, ऐसे लोग जो अक्ल से काम नही लेते जानवरों के मांनिन्द बहरे, गूंगे और अंधे होते है, अल्लाह ने तुम पर मुर्दार और खुन और खिंजीर को गोस्त और गैर उल्लाह के नाम का जबिहा हराम किया है, सिर्फ इस्तिरार की हालत में उनके इस्तिमाल का गुनाह नही होता है।

लेकिन लोग अल्लाह की किताब में नाजिल कर्दा अहकामात को छुपाते है, और हिदायत के बदले गुमराही मौल लेते है, जिन्होने हकीर दुनियां की मफात की खातिर अल्लाह की किताब के वाजे अहकामात से इख्तिलाफ किया वो हक से बहुत दूर निकल गये, नेकी सिर्फ कुछ रूसुमात की पांबदीयों में नही है, बल्कि नेकी ये है, के अल्लाह, योमे आखिर, मालाईका, अलकिताब और नबियों पर इमान हो, अल्लाह की राह में जरूरतमंदो पर माल खर्च हो, नमाज और जकात की पाबंदी हो, अहद की पाबंदी हो, मुसीबतो और सख्तियों में कदम ना डगमगाए, कत्ल का बदला उसी कातिल का कत्ल या खुंबहा अदा करना है, इसी कानून में असली जिंदगी पोसिदा है, तुम पर फर्ज है के मौत का वक्त महसूस करो तो अपने वाल्देन और करीब के रिस्तेदारों के लिये वसीयत जरूर कर दो, ये मुत्तकिन पर लाजिम है, अलबत्ता ये साबित हो जाये के वसीयत लिखने और सुनने वाले ने जाने या अजाने में गडबड कर दी है, तो वसीयत में मुनासिब स्लाह की जा सकती है।
इमान वालो तुम पर रमजान के रोजे फर्ज किये गये, मुसाफिर और मरीज रोजा छोडकर बाद में गिनती पुरी कर सकते है, और बाद में गिनती पुरी करने वालों में से सहाबे इस्तितात हो तो हर छुटने वाले रोजे के बदले एक मिस्किन को खाना भी दे सकते है, लेकिन बेहतर है के रोजा ही रखे, रमजान को जबरदस्त जिहाद की मस्क के लिये मुनतखब किया गया कि इसी महिने में कुरान नाजिल हुआ जो इंसानो के लिये वाजे हिदायत और हक और बातिल कोअलग कर देने वाला है, रोजो से तुम में तक्वा पैदा होना चाहिये, शुक्र पैदा होना चाहिये, और अपनी अजीजी के साथ अल्लाह की बढाई का अहसास और उसके निजाम की सर बुलंदी के कयाम का जज्बा पैदा होना चाहिये, अल्लाह अपने बंदे से हर हाल में करीब है, उसकी पुकार का जवाब देता है, उन्हे चाहिये के वो भी अल्लाह की पुकार का जवाब दे और उस पर इमान लाये ताकि राहे हिदायत पा जाये।

रमजान के महिने में मियां बीवी से मुबासरत जाईज है, दोनो एक दुसरे के लिये लिबास की मानिंद है, सुबह की सफेदी नमुदार होने से रात की इफतिदा तक रोजा पुरा करो, रोजो से तुम्हारे अंदर ऐसा तक्वा पैदा हो जाना चाहिये, कि तुम लोगों के माल बातिल तरीके से ना खाओ और ना इसके लिये हाकिमों को इस्तिमाल करो, नये चांद के नजर आने से तुम रमजान और दिगर महिने की पहचान कर सकते हो, जैसे हज के अय्याम। अपने घरों में पीछे के बजाय सामने से दाखिल हो, यानि अहकामात तबदील करने के पौसिदा रास्ते ना निकालो, रोजो से पैदा होने वाला कंट्रोल ऐलाने जंग में भी काम आयेगा, जो तुम से जंग करने आये उनसे तुम जंग करो, मैदाने जंग में दुश्मन को जहां पाओ मारो और फितना खत्म होने तक और अल्लाह का कानून नाफिज होने तक आर पार की जंग करो लेकिन ये ख्याल रहे तुम्हारे हाथों से ज्यादती ना हो, और अगर हमलावर दुश्मन फितना फेलाने से बाज आ जाये तो जंग रोक दो।

अल्लाह की रजा के लिये हज और उमरे के लिये निकलो तो उसको पुरा करो, हज के कुछ मसाईल बयान फरमाये और उसके बाद कहा गया, हज के महिने मालुमात करने के महिने है, इस दौरान कोई सहवानी काम या बद आमाल, या लडाई झगडा सख्त मना है, हज के लिये असल सामाने सफर तो तक्वा है, दौराने हज मुनाफे की नियत से खरीद फरोख्त जाईज है, अरफात से चलकर मुजदलफा के पास ठहर कर अल्लाह को याद करो, मुजदलफे से वापसी पर अल्लाह की याद की कैफीयात जाईल ना होने देना, कुछ लोग जो सिर्फ दुनियां ही तलब करते है, उनका आखिरत में हिस्सा नही होता, और कुछ दुनियां और आखिरत दोनो की भलाई चाहते है। मिना में 2 या 3 दिन कयाम के दौरान अल्लाह और उसके कानून की हिदायात को याद करो, इंसानों में से बाज दुसरे इंसानो का इस्तिसाल करते है, हांलाकि बाते वो बडी दीनदारी की कर रहे होते है, वो जहन्नमी है और दुसरी तरफ वो है जो रजा ऐ इलाही की खातिर जान खपा देते है, ऐसे बंदो पर अल्लाह शफिक है, इमान वालो दीन में मुकम्मल दाखिल हो, खुली निशानियां आ जाने के बाद शैतान की इत्तिबा ना करो, क्या वो फेसले के लिये खुद अल्लाह के आने के मुंतजिर है जबकि सारे मामलात उसी के हुजूर तो पैश होने है।
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