विज्ञान : मुहम्मद सल्ल. की विरासत

लेखक  : प्रोफ़ेसर के. एस. रामा कृष्णा राव की पुस्तक मुहम्मद सल्ल.  इस्लाम के पैग़म्बर के कूछ अंश पूरी पुस्तक पढ़ने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करे 

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विज्ञान: मुहम्मद सल्ल. की विरासत

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Prophet Muhammad
 

यह जगत् न कोई भ्रम है और न उद्देश्य-रहित। बल्कि इसे सत्य और हक़ के साथ पैदा किया गया है। क़ुरआन की उन आयतों की संख्या जिनमें प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण की दावत दी गई है, उन सब आयतों से कई गुना अधिक है जो नमाज़, रोज़ा, हज आदि आदेशों से संबंधित हैं। इन आयतों का असर लेकर मुसलमानों ने प्रकृति का निकट से निरीक्षण करना आरम्भ किया। जिसने निरीक्षण और परीक्षण एवं प्रयोग के लिए ऐसी वैज्ञानिक मनोवृति को जन्म दिया, जिससे यूनानी भी अनभिज्ञ थे। मुस्लिम वनस्पतिशास्त्री इब्ने-बेतार ने संसार के सभी भू-भागों से पौधे एकत्र करके वनस्पतिशास्त्र पर वह पुस्तक लिखी, जिसे मेयर (Mayer) अपनी पुस्तक, 'Gesch der Botanika' में ‘कड़े श्रम की पुरातननिधि’ की संज्ञा दी है। अल्बेरूनी ने चालीस वर्षों तक यात्रा करके खनिज पदार्थाें के नमूने एकत्र किए तथा अनेक मुस्लिम खगाोलशात्री 12 वर्षों से भी अधिक अवधि तक निरीक्षण और परीक्षण में लगे रहे, जबकि अरस्तू ने एक भी वैज्ञानिक परीक्षण किए बिना भैतिकशास्त्र पर क़लम उठाई और भैतिकशास्त्र का इतिहास लिखते समय उसकी लापरवाही का यह हाल है कि उसने लिख दिया कि ‘इंसान के दांत जानवर से ज़्यादा होते हैं’ लेकिन इसे सिद्ध करने के लिए कोई तकलीफ़ नहीं उठाई, हालाँकि यह कोई मुश्किल काम न था।

पाश्चात्य देशों पर अरबों का ऋण

शरीर रचनाशास्त्र के महान ज्ञाता गैलेन ;ळंसमदद्ध ने बताया है कि इंसान के निचले जबड़े में दो हड्डियाँ होती हैं, इस कथन को सदियों तक बिना चुनौती असंदिग्ध रूप से स्वीकार किया जाता रहा, यहाँ तक कि एक मुस्लिम विद्वान अब्दुल लतीफ़ ने एक मानवीय कंकाल का स्वयं निरीक्षण करके सही बात से दुनिया को अवगत कराया। इस प्रकार की अनेक घटनाओं को उद्धृत करते हुए राबर्ट ब्रीफ्फालट अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "The Making of humanity" (मानवता का सर्जन) में अपने उद्गार इन शब्दों में व्यक्त करता है- ‘‘हमारे विज्ञान पर अरबों का एहसान केवल उनकी आश्चर्यजनक खोजों या क्रांतिकारी सिद्धांतों एवं परिकल्पनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि विज्ञान पर अरब सभ्यता का इससे कहीं अधिक उपकार है, और वह है स्वयं विज्ञान का अस्तित्व।’’
यही लेखक लिखता है-
‘‘यूनानियों ने वैज्ञानिक कल्पनाओं को व्यवस्थित किया, उन्हें सामान्य नियम का रूप दिया और उन्हें सिद्धांतबद्ध किया, लेकिन जहाँ तक खोजबीन करने के धैर्यपूर्ण तरीक़ों को पता लगााने, निश्चयात्मक एवं स्वीकारात्मक तथ्यों को एकत्र करने, वैज्ञानिक अध्ययन के सूक्ष्म तरीक़े निर्धारित करने, व्यापक एवं दीर्घकालिक अवलोकन व निरीक्षण करने तथा परीक्षणात्मक अन्वेषण करने का प्रश्न है, ये सारी विशिष्टिताएँ यूनानी मिज़ाज के लिए बिल्कुल अजनबी थीं। जिसे आज विज्ञान कहते हैं, जो खोजबीन की नई विधयेां, परीक्षण के तरीक़ों, अवलोकन व निरिक्षण की पद्धति, नाप-तौल के तरीक़ों तथा गणित के विकास के परिणामस्वरूप यूरोप में उभरा, उसके इस रूप से यूनानी बिल्कुल बेख़बर थे। यूरोपीय जगत् को इन विधियेां और इस वैज्ञानिक प्रवृति से अरबों ही ने परिचित कराया।’’

 

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