लेखक : प्रोफ़ेसर के. एस. रामा कृष्णा राव की पुस्तक मुहम्मद सल्ल. इस्लाम के पैग़म्बर के कूछ अंश पूरी पुस्तक पढ़ने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करे
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मुहम्मद सल्ल. ईशदूत- इस्लाम: एक सम्पूर्ण जीवन-व्यवस्था

Prophet Muhammad

पैग़म्बर
मुहम्मद की शिक्षाओं का ही यह व्यावहारिक गुण है, जिसने वैज्ञानिक प्रवृति
को जन्म दिया। इन्हीं शिक्षाओं ने नित्य के काम-काज और उन कामों को भी जो
सांसारिक काम कहलाते हैं आदर और पवित्रता प्रदान की। क़ुरआन कहता है कि
इंसान को ख़ुदा की इबादत के लिए पैदा किया गया है, लेकिन ‘इबादत’ (उपासना)
की उसकी अपनी अलग परिभाषा है। ख़ुदा की इबादत केवल पूजा-पाठ आदि तक सीमित
नहीं, बल्कि हर वह कार्य जो अल्लाह के आदेशानुसार उसकी प्रसन्नता प्राप्त
करने तथा मानव-जाति की भलाई के लिए किया जाए इबादत के अन्तर्गत आता है।
इस्लाम ने पूरे जीवन और उससे संबंध सारे मामलों को पावन एवं पवित्र घोषित
किया है। शर्त यह है कि उसे ईमानदारी, न्याय और नेकनियत के साथ किया जाए।
पवित्र और अपवित्र के बीच चले आ रहे अनुचित भेद को मिटा दिया। क़ुरआन कहता
है कि अगर तुम पवित्र और स्वच्छ भोजन खाकर अल्लाह का आभार स्वीकार करो तो
यह भी इबादत है। पैग़बरे-इस्लाम ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को
खाने का एक लुक़्मा खिलाता है तो यह भी नेकी और भलाई का काम है और अल्लाह
के यहाँ वह इसका अच्छा बदला पाएगा।
पैग़म्बर का एक और कथन है-
‘‘अगर
कोई व्यक्ति अपनी कामना और ख़्वाहिश को पूरा करता है तो उसका भी उसे सवाब
(पुण्य) मिलेगा। शर्त यह है कि वह इसके लिए वही तरीक़ा अपनाए जो जायज़ हो।’’
एक साहब, जो आपकी बात सुन रहे थे, आश्चर्य से बोले-
‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर, वह तो केवल अपनी इच्छाओं और अपने मन की कामनाओं को पूरा करता है।’’
आपने उत्तर दिया-
‘‘यदि
उसने अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अवैध तरीक़ों को अपनाया होता तो उसे
इसकी सज़ा मिलती, तो फिर जायज़ तरीक़ा अपनाने पर उसे इनाम क्यों नहीं मिलना
चाहिए?’’
व्यावहारिक शिक्षाएँ
धर्म
की इस नई धारणा ने कि धर्म का विषय पूर्णतः अलौकिक जगत् के मामलों तक
सीमित न रहना चाहिए, बल्कि इसे लौकिक जीवन के उत्थान पर भी ध्यान देना
चाहिए, नीतिशास्त्र और आचारशास्त्र के नए मूल्यों एवं नई मान्यताओं को नई
दिशा दी। इसने दैनिक जीवन में लोगों के सामान्य आपसी संबंधों पर स्थाई
प्रभाव डाला। इसने जनता के लिए गहरी शक्ति का काम किया। इसके अतिरिक्त
लोगों के अधिकारों और कर्तव्यों की धारणाओं को सुव्यवस्थित करना और इसका
अनपढ़ लोगों और बुद्धिमान दार्शनिकों के लिए समान रूप से ग्रहण करने और
व्यवहार में लाने के योग्य होना पैग़म्बरे-इस्लाम की शिक्षाओं की प्रमुख
विशेषताएँ हैं।
सत्कर्म पर आधारित सुद्ध धारणा
यहाँ यह बात सर्तकता के साथ दिमाग़ में आ जानी चाहिए कि भले कामों पर ज़ोर देने का अर्थ यह नहीं है कि इसके लिए धार्मिक आस्थाओं की पवित्रता एवं शुद्धता को क़ुर्बान किया गया है। ऐसी बहुत-सी विचारधाराएँ हैं, जिनमें या तो व्यावहारिकता के महत्व की बलि देकर आस्थाओं ही को सर्वोपरि माना गया है या फिर धर्म की शुद्ध धारणा एवं आस्था की परवाह न करके केवल कर्म को ही महत्व दिया गया है। इनके विपरीत इस्लाम सत्य, आस्था एवं सत्कर्म के नियम पर आधरित है। यहाँ साधन भी उतना ही महत्व रखते हैं जितना लक्ष्य। लक्ष्यों को भी वही महत्ता प्राप्त है जो साधनों को प्राप्त है। यह एक जैव इकाई की तरह है। इसके जीवन और विकास का रहस्य इनके आपस में जुड़े रहने में निहित है। अगर ये एक-दूसरे से अलग होते हैं तो ये क्षीण और विनष्ट होकर रहेंगे। इस्लाम में ईमान और अमल को अलग- अलग नहीं किया जा सकता। सत्य- ज्ञान को सत्कर्म में ढल जाना चाहिए, ताकि अच्छे फल प्राप्त हो सकें। ‘‘जो लाग ईमान रखते हैं और नेक अमल करते हैं, केवल वे ही स्वर्ग में जा सकेंगे।’’ यह बात कु़रआन में कितनी बार दोहराई गई है? इस बात को पचास बार से कम नहीं दोहराया गया है। सोच विचार और ध्यान पर उभारा अवश्य गया है, लेकिन मात्र ध्यान और सोच-विचार ही लक्ष्य नहीं है। जो लोग केवल ईमान रखें, लेकिन उसके अनुसार कर्म न करें, उनका इस्लाम में कोई मुक़ाम नहीे है। जो ईमान तो रखें लेकिन कुकर्म भी करें, उनका ईमान क्षीण है। ईश्वरीय का़नून मात्र विचार-पद्धति नहीं, बल्कि वह एक कर्म और प्रयास का क़ानून है। यह दीन (धर्म) लोगों के लिए ज्ञान से कर्म और कर्म से परितोष द्वारा स्थायी एवं शाश्वत उन्नति का मार्ग दिखलाता है ।Muhammad SAW. Islam Ke Peghamber (Prof. Rama Krishna Rao) Book.pdf Download