कबीर दास जी परमेश्वर के दास थे स्वयं परमेश्वर नहीं थे। Kabeer Das Ji Parmeshvar Ke Das The Parmeshvar Nahin The.

 कबीर दासजी परमेश्वर के दास थे परमेश्वर नहीं।

Sant Kabeer Das
Sant Kabeer Das Ji 

हिंदुस्तान में अपने-अपने गुरूओं, संतो, महात्माओं और महान लोगो को ईश्वर घोषित करने वालों की एक बहुत बड़ी संख्या है। उनमें एक नाम श्री रामपाल जी का भी है। वे कबीरपंथी हैं और उन्हें भी जगतगुरू कहा जाता है।

संत कबीरदासजी को कम शब्दों में "कबीर* कह दिया जाता है। उनका पूरा नाम कबीर दास है। "कबीर" अरबी में परमेश्वर-अल्लाह का एक गुणवाचक/सिफाती नाम है जिसका अर्थ ‘बड़ा‘ है। "दास" शब्द हिन्दी का है, जिसका अर्थ होता है 'ग़ुलाम'। कबीर दास नाम का अर्थ हुआ, ‘बड़े का दास‘ अर्थात "ईश्वर-अल्लाह का दास" कबीर दास ख़ुद को ज़िंदगी भर परमेश्वर का दास बताते रहे और लोगों ने उन्हें भी परमेश्वर घोषित कर दिया। श्री रामपाल जी ने भी यही किया।

अगर कबीरपंथी भाई कबीर दास जी के पूरे नाम पर भी ठीक तरह ध्यान दे तो वे समझ लेंगे कि कबीर दासजी  परमेश्वर-अल्लाह नहीं हैं, जैसा कि गुरू उन्हें बता रहे हैं। 

परमेश्वर से जुदा होने और उसका दास होने की सत्यता स्वयं कबीर दास जी ने कितने ही दोहों में खोलकर भी बताई है। कबीर दोहावली में यह सब देखा जा सकता है।

उनका पूरा नाम उनके मुख से ही सुन लीजिए-
माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर।।

वह स्वयं परमेश्वर से प्रार्थना भी करते थे। वह कहते हैं कि 
साई इतना दीजिये जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूं साधु भी भूखा न जाय।।

एक दूसरी प्रार्थना में उनके भाव देख लीजिए-
मैं अपराधी जन्म का, नख सिख भरा विकार।
तुम दाता दुख भंजना, मेरी करो सम्हार।।

कबीर दास जी रात में उठकर भी ईश्वर का भजन करते थे-
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान।
जम जब घर ले जाएंगे, पड़ी रहेगी म्यान।।

भजन में भी वे अपना नाम न लेकर राम का नाम लेते थे-
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।
पाछे फिर पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट।।
 
कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाउँ।
गलै राम की जेवड़ी, जित खैंचे तिज जाऊँ।।
 
गोविंद नाम का ज्ञान भी उन्हें अपने गुरू से मिला था-
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरू आपनो, गोविंद दियो बताय।।

इसमें कबीर दास जी स्वयं कह रहे हैं कि जब तक उनके गुरू ने उन्हें परमेश्वर के बारे में नहीं बताया था, तब तक उन्हें परमेश्वर का ज्ञान नहीं हुआ था।

क्या यह संभव है कि परमेश्वर को कोई दूसरा बताए कि परमेश्वर कौन है ?

कबीर दास जी कहते हैं कि अगर सतगुरू की कृपा न होती तो वे भी पत्थर की पूजा कर रहे होते-
हम भी पाहन पूजते होते, बन के रोझ।
सतगुरू की किरपा भई, सिर तैं उतरय्या बोझ।।
 
कबीर दास जी अपने गुरू के बारे में अपना अनुभव बताते हैं कि
बलिहारी गुरू आपनो, घड़ी सौ सौ बार।
मानुष से देवत किया, करत न लागी बार।।
 
कबीर दास जी की दृष्टि में हरि से बड़ा स्थान गुरू का है-
कबीर ते नर अन्ध हैं, गुरू को कहते और।
हरि रूठै गुरू ठौर है, गुरू रूठै नहीं ठौर।।
 
परमेश्वर और कबीर एक दूसरे से अलग वुजूद रखते हैं। उनके आराध्य राम उन्हें बैकुंठ अर्थात स्वर्ग में आने का बुलावा भेजते हैं तो वह रोने लगते हैं। उन्हें बैकुंठ से ज़्यादा सुख साधुओं की संगत में मिलता है। देखिए-
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय।
जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ न होय।।
 
कबीर दास जी के इतने साफ़ बताने के बाद भी लोग उनकी बात उनके जीवन में भी नहीं समझते थे। उनके जाने के बाद भी नहीं समझते। देखिए वह कहते हैं कि-
समझाय समझे नहीं, पर के साथ बिकाय।
मैं खींचत हूं आपके, तू चला जमपुर जाय।।


अब आप जान चुके होंगे कि संत कबीरदासजी साधुसंत और एक आध्यात्मिक गुरु थे ना की ईश्वर।

अंत में एक सत्य ईश्वर से प्रार्थना है।

सबको सत्य मार्ग दिखाए और सत्य को समझने की सद्बुद्धि दे।

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