रसूल के अपमान/गुस्ताखी की सजा। क्या क़त्ल है?
ये मोज़ू (विषय) बहुत ज़्यादा हस्सास (सेंसिटिव) है, हर मुसलमान चाहे ईमान के दर्जे में कैसा भी हो, नबी करीम सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम से मुहब्बत अक़ीदत रखता है, आप सल्ल. को कोई मुस्लिम हो या ग़ैर मुस्लिम कुछ नाज़ेबा अल्फ़ाज़ कहे तो दिल दुःखता है, जज़बात भडक जाते है। लेकिन इस्लाम दीन जज़बात पर नही दलाईल की रोशनी में देखा और अमल किया जाता है। इस मसअले में उलेमाओं में बडा इख्तिलाफ़ है। क्या गुस्ताख़-ए-रसूल की सज़ा क़त्ल है? कुछ उलेमा इससे इत्तेफ़ाक़ नही रखते। और अवाम में ये बात कहाँ से आई कि ‘‘ग़ुस्ताखे रसूल की एक ही सज़ा सर, तन से जुदा’’ हम इस मोज़ू पर तफ़सील से दलाईल की रोशनी में नज़र ए सानी (दोबारा से जाँच) की कोशिश करेगें।
इस्लाम दीन को समझने में उसूल यह है कि सबसे पहले किसी भी मसअले में कुरान को देखा जायेगा कि कुरान की आयात इस पर हुक्म देती है, दुसरा रिवायातें तीसरा फ़िक़ह यानि उलेम (ज्ञानी) और इमाम। इस मसअले पर कुरान से बहुत ही कम रहनुमाई ली गई है, पहले हम कुरान के दलाईल देखते हैं, कुरान इस बारे में क्या हुक्म और रहनुमाई करता है।अल्लाह ने कुरान में फ़रमाया सुराह 33:21 यक़ीनन तुम्हारे लिये रसूल अल्लाह की ज़िदंगी में तुम्हारे लिये बेहतरीन नमुना (मिसाल/ उदाहरण) हैं।सुनन नसाई: 1602 हज़रत आयशा रजि. फ़रमाती है, नबी करीम सल्ल.अ.व. के अख़लाक़ ऐन कुरान थे यानि वो खुद एक चलता फिरता कुरान थे। क्यूं ना हम कुरान और आप सल्ल. की ज़िन्दगी में तलाश करें इस मोज़ू का हल क्या है?
नबी सल्ल. के बारे अल्लाह फ़रमाता है सुराह 21:107 ऐ नबी हमने आपको तमाम जहान वालों के लिये रहमत (दया/ करूणा का सागर) बना कर भेजा है। सुराह 68:4 ऐ नबी आप बुलंद अख़लाक़/ नैतिकता वाले हो। कुरान में नबी सल्ल. का किरदार/ चरित्र जगह-जगह बयान किया गया है, आप सख्त दिल वाले नही हो, आप लोगों को माफ़ करने वाले दरगुज़र करने वाले, फिक्र करने वाले, रहनुमाई करने वाले, इंसाफ करने वाले, सुलाह करने वाले, जहन्नम से बचाने वाले, मदद करने वाले, रास्ता बताने वाले और बहुत सी सिफ़ात/ गुण कुरान में आये है।
और रिवायात की किताबों में आपकी हज़ारों तालिमात/ शिक्षा मौजूद है, जो तमाम इंसानों की भलाई और समाजी ज़िन्दगी पर रहनुमाई करती है, जैसे तुम सब एक मां-बाप की औलाद हो आपस में भाई हो आपस में कोई भेदभाव नही, ना काला गोरे से ना गोरा काले से अच्छा है, एक-दुसरे से मुहब्बत रखो दुश्मनी ना रखो। लोगों के बीच आसानी पैदा करो मुश्किल ना करो। गुस्से का घूंट पी जाना सबसे बडा सवाब है। सबसे अच्छा घर वो है जिसमें एक अनाथ को पाला जाये। मजदूर को उसकी मजदूरी पसीना सुखने से पहले दे दो। तुम ज़मीन वालों पर रहम करो ऊपर वाला तुम पर रहम करेगा। वो अच्छा पडोसी नही है जिससे दुसरा पडोसी परेशान हो।
दुसरों के लिये भी वही पंसद करो जो अपने लिये करते हो। तुमसे जो कटे (दूरी बनाये/ रिश्ते तोड़े) उससे जुडो, जो ना दे तुम उसे दो, कोई ज़ुल्म करे तो उसे माफ़ कर दो। इंसाफ करो चाहे ख़ुद की औलाद के ख़िलाफ़ क्यूं ना हो। तक़ब्बुर ना करो ये इंसान को बर्बाद कर देता है। रास्ते से कांटे,पत्थर हटाना सवाब है। बोलो तो अच्छी बात बोलो, वर्ना ख़ामोश रहो। मां-बाप की नाफ़रमानी ना करो चाहे जायदाद से बेदख़ल कर दे। मुसलमान वो है जिसके ज़ुबान और हाथों से लोग मेहफूज़ हों। इस छोटे से आर्टिकल में आप सल्ल. की तालिमात बयान करना मुमकिन ही नही है। सीरत (बायोग्राफ़ी) की किताबों में देखें।
ऐसी हज़ारों बातें जिस पर आप ता-ज़िंदगी (पूरी ज़िंदगी) अमल करते रहे और लोगों को नसीहत करते रहे। क्या ऐसी आला सिफ़ात के नबी किसी के क़त्ल का हुक्म दे सकते हैं? कुरान सिर्फ़ किसी के क़त्ल की दो वजह बयान करता है। सुराह 5:32 हमने फ़रमान लिख दिया जिसने किसी इन्सान की क़त्ल के बदले या ज़मीन में फ़साद फैलाने के सिवा किसी और वजह से क़त्ल किया उसने तमाम इंसानों का क़त्ल किया, और एक इंसान की जान बचाई तो तमाम इंसानियत की जान बचाई, लेकिन इन (लोगो) का हाल ये है कि रसूल और खुली हिदायत आने बाद भी बहुत से लोग ज़मीन में ज़्यादतियां करते है। शरीयत के मुताबिक इन दोनों वजह से किसी को सजा देना है तो ये हुकूमत की जिम्मेदारी है, किसी आम आदमी को ये हक़ नहीं है।
बल्कि अल्लाह ने तो इस पर उभारा कि सुराह 41:33 उससे बेहतर बात किसकी होगी जो अल्लाह की तरफ लोगों को बुलाएं और कहे में मुसलमान हूँ। 41:34 नेकी और बुराई बराबर नही, बुराई का बदला भलाई से दो, फिर देखोगे कि दुश्मन भी ऐसा हो जायेगा जैसे जिगरी दोस्त। हम कहें हमने करके देख लिया फिर भी वो दुश्मन ही है, तो ज़रा सोचें हमने उस हद तक नही किया जैसा अल्लाह ने बताया हम किस की बात माने कुरान की या लोगों की। क्या नबी सल्ल. ने इस आयत पर अमल नही किया होगा बेशक किया आप चलता फिरता कुरान थे। हम आप सल्ल. से मुहब्बत अक़ीदत रखते हैं, कोई कुछ कहे, दिल को नागँवार गुज़रता है। लेकिन जज़बात में आप (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) की तालिमात को नज़र अंदाज़ तो नही कर सकते हैं।
सुराह 4:140 अल्लाह तुम पर हुक्म उतार चुका है, जब कोई अल्लाह की आयतों का इन्कार और मज़ाक होता सुनो तो वहाँ से उठ जाओ जब तक कि वो दुसरी बात करने लगे। नही तो उन्ही के जैसे हो जाओगे। ये नही कि झगडा करो, खुद दूर हो जाओ। फिर आ जाओ दुश्मनी भी ख़त्म करना है। अल्लाह रसूल का पैग़ाम भी देना है। सुराह 5:77 ‘‘ला तग़लू फ़ी दीनीकुम’’ दीन में गुलु (अतिश्योक्ति) मत करो। दीन से हटकर अपनी मनमानी ना करो हद से आगे ना बढो। आप सल्ल. के दौर में मुशरिक, मुनाफिक़ आपको क्या-क्या नही कहते थे। काहिन, जादूगर, बहका हुआ आपने किसी को पलटकर जवाब नही दिया आप अपना काम करते रहे सहाबा को नसीहत करते रहे। खुद अल्लाह ने कुरान में फ़रमाया।
सुराह 63:8 मुनाफिक़ कहते है, हम इज़्ज़त वाले जलीलों को बाहर निकाल देगें। ये बात मुनाफिकों के सरदार उबई ने कही थी, आप सल्ल. की शान में कितनी बडी गुस्ताखी है लेकिन आपने क़त्ल नही किया पुरी मदनी ज़िंदगी (मदीना में गुज़ारी हुई ज़िन्दगी) में दुश्मन रहा है। जंग में धोखा दिया अपने सिपाही लेकर बीच जंग से भागा गया, नाऊज़ुबिल्लाह (हम अल्लाह की मदद में शरण लेते हैं) माँ ह.आयशा रजि. पर बदचलनी का इलज़ाम भी लगाया फिर भी रहमतुललिल आलमीन सल्ल. (दुनिया के लिए करुणा) ने उसकी जनाज़े की नमाज़ अदा की, अपना कुर्ता मुबारक कफ़न के लिए दिया, यहाँ तक कि उसके लिये मग़फिरत की दुआ भी की। सहीह बुखारी: 4670। ये है दुनिया के लिये मिसाल रहमत के रसूल का अमल वो कैसे किसी को क़त्ल का हुक्म दे सकते है?
सहीह मुस्लिम: 661, 285 नबी सल्ल. और सहाबा मस्जिद नबवी में बैठे थे, एक गांव का शख्स आया और मस्जिद में पैशाब करने लगा सहाबा ने उसे रोकना चाहा आप सल्ल. ने कहा उसे मत रोको जब वो पैशाब से फारिग़ हो गया तो आप सल्ल. ने उसे बुलाया और कहा ये मस्जिद है पैशाब या गंदगी के लिये नही है ये तो नमाज़ और कुरान की तिलावत के लिये है, और एक आदमी को हुक्म दिया पैशाब पर पानी बहाकर साफ़ कर दो। इब्ने माजा: 529 में उस शख्स ने खुद बयान किया आप सल्ल. ने ना मुझे डांटा ना बुरा भला कहा। नबी. सल्ल. की मस्जिद में आप सल.अल.वस. के सामने पैशाब कर देना कितनी बडी गुस्ताखी है ! लेकिन आप सल्ल. लोगों के लिये रहमत बनकर आये थे। वो कैसे किसी के क़त्ल का हुक्म दे सकते है?
इमाम अबु हानीफ़ा रह. ने फ़रमाया नबी करीम सल्ल. की शान में गुस्ताखी करने वाले किसी ग़ैर मुस्लिम शहरी को क़त्ल नही किया जायेगा क्योकि जिस शिर्क पर वह पहले से ही है वो सबसे बड़ा जुर्म है। (मआलिमुस सुनन शरह अबू दाउद जि.3 स.296) इमाम आज़म के तमाम शार्गिदों और इमाम तहावी, सुफियान सौरी वग़ैराह का भी यही मौकिफ़ है।
नबी करीम सल्ल. की सीरत के कई वाक़ीयात बयान किये जा सकते है। जब आप ताईफ शहर गये वहाँ के सरदारों ने आप सल्ल. के पीछे सरकश बच्चों को दौडा दिया, पत्थर मारे यहाँ से आप खून-आज़ार हो गये सिर से बहता खून आप की जुतीयों में भर गया। आपने एक बाग़ में पनाह ली अल्लाह ने वहाँ पहाडों का फ़रिश्ता भेज दिया, कहा अल्लाह का हुक्म कि आप हुक्म दें तो अभी ताईफ की बस्ती को दोनों के बीच पीस देता हूँ। आपने फ़रिश्ते को मना कर दिया। नही मैं लोगों के लिये रहमत बनाकर भेजा गया हूँ, ज़हमत बनाकर नही, इनकी औलादें अल्लाह और मुझ पर (नबी मोहम्मद सल.वस.) ईमान लायेगी। (इब्ने हिशाम स. 419-22) यानि ये कहा जा सकता है कि अल्लाह ने ‘‘कुन फयकुन’’ की ताक़त आप सल्ल. को दे दी थी। लेकिन आप रहमत के रसूल थे। आप कैसे अपनी ही उम्मत को हलाक़ कर सकते थे। वो नबी कैसे किसी के क़त्ल को हुक्म दे सकते हैं?
जंगे उहुद में नबी करीम सल्ल. घोडे पर सवार थे किसी मुशिरक ने बडा सा पत्थर आपके चेहरे मुबारक पर फेंका जिससे आपके दांत टुट गये और सिर पर पहने हुए टोप की ज़ंजीर की कढीयाँ आपके गाल में धंस गई आप घोड़े से गिर गये लेकिन रहमत का आलम देखें कोई बद्दुआ तक नही की। सहीह मुस्लिम: 1791। सहीह बुखारी: 2911। हज़रत साद बिन वक्कास रजि. कहते आप खून को साफ़ करते और कहते अल्लाह इस कौम को माफ़ कर दे ये जानते नही। आप रहमत के रसूल है, आपको लगा कहीं अल्लाह मुशिरकों पर अज़ाब ना भेज दे। (अर राहीकुल मखतुम स. 364) ये रहमत के रसूल है कैसे किसी के क़त्ल का हुक्म दे सकते हैं? यहाँ ये भी याद रहे रसूले रहमत सल्ल. बहुत सी जंग में शामिल रहे लेकिन अपने हाथों से किसी एक को क़त्ल नही किया। क्योंकि आप रहमत के रसूल थे।
नोट: जिहाद वाली जंग सिर्फ 3 वजह से की जा सकती है जो कुरान में बयान हुई है। 1. सुराह 22:39-40 खुद की हिफ़ाज़त के लिये। 2. सुराह 4:75 खुद पर या दूसरों पर ज़ुल्म हो। 3. सुराह 9:4 मुहायदे (एग्रीमेंट/ संधी) को तोड़े तो चाहो तो लड़ो। इसके अलावा और कोई वजह नही है। बुखारी: नबी सल्ल. ने कभी खुद की ज़ात (स्वयं) के लिये कभी किसी से बदला नही लिया। फतह मक्का (मक्का विजय) के मौके पर आप सल्ल. ने सारे मुशिरकों को माफ़ कर दिया यहाँ तक के सहाबा और सल्ल. ने अपने घर, खेती, ज़मीन तक वापस नही ली और मदीना लौट गये। (अर राहीकुल मखतुम बाब फतह मक्का)
सहीह बुखारी: 2910 जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि. बयान करते है हम आप सल्ल. के साथ सफ़र में एक जगह ठहरे आप सल्ल. अपनी तलवार बबुल के पेड़ पर टांगकर सो गये तभी एक शख्स आया और आपकी ही तलवार लेकर आप तान दी और कहा अब बता कौन तुझे बचायेगा आप सल्ल. ने ऐसे अंदाज़ से तीन बार कहा अल्लाह, अल्लाह, अल्लाह वो घबरा गया और तलवार हाथ से गिर गई आप सल्ल. ने उस शख्स को कोई सज़ा नही दी और उसको छोड़ दिया। अब इससे बड़ी हिमाक़त और गुस्ताखी किसी की क्या हो सकती है? जो नबी सल्ल. की गर्दन पर तलवार तान दी आपने उसे फिर भी माफ़ कर दिया। क्योंकि आप रहमत के रसूल थे। फिर कैसे रहमत के रसूल किसी के क़त्ल का हुक्म दे सकते है?
कुरान और क्या कहता है नबी. सल्ल. से और उनके मानने वालों से यानि हमसे भी क्योंकि ये कुरान हर मुसलमान के लिये क़यामत तक के लिये रहनुमाई है। सुराह 3:186 मुसलमानों! तुम्हें किताब वालों से और लोगों से तक़लीफ़देह बातें सुननी पड़ेगी ये सब्र और हौंसले का काम है। ये छोटा काम नही है, बर्दाश्त और हौंसला चाहिये। सुराह 9:61 कुछ लोग अपनी बातों से नबी को दुख देते है, तुम उनसे कहो ये तुम्हारी भलाई के लिये है और सरासर रहमत है उन लोगों के लिये जो ईमानदार है और जो अल्लाह के रसूल को दुख देते है उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है। हमें नहीं कहा कि लोगों को अज़ाब दो, ये अल्लाह का हक़ है। चाहे तो दुनिया में दे या आख़िरत में। जज़बात अपनी जगह है लेकिन इस्लाम दलीलों से अमल किया जाता है।
सहीह बुखारी: 6926 एक यहुदी नबी सल्ल. के पास से गुज़रा कहने लगा ‘‘साम अलय्क’’ यानि तुम पर मौत हो, आप सल्ल. ने कहा ‘‘वअलय्क’’ यानि तुम पर भी सहाबा ने कहा क्या हम उसे क़त्ल कर दें? आप सल्ल. ने कहा नही। कोई तुम्हे भी ऐसा कहे तो तुम भी वअलय्कुम कह दिया करो। अब इससे बड़ी गुस्ताखी क्या हो सकती है कि आपकी मौत की दुआ कर रहा है, फिर भी आपने क़त्ल से मना किया बल्कि तरीक़ा भी बताया तुम सिर्फ वअलय्क कह दो यानि जो कुछ तुमने कहा तुम पर भी। ये है शान ए रसूल आप दुनियां के लिये रहमत बन कर आये थे। ये रहमत की सिफ़ात मुसलमानों में क्यों नही आई? क्या ये सुन्नत नही है? क्यूं इस बार जज़बाती और जोशीलें बन गये है या बना दिये गये है? यही तो आज़माईशे है जिस पर अल्लाह ने सब्र करने वालों को कहा ये बड़े हौंसले का काम है।
सुराह 33:57 जो लोग अल्लाह और रसूल को तक़लीफ़ देते है, उन पर दुनियां और आख़िरत में लानत और उनके लिये रूसवाकुन अज़ाब तैयार कर दिया गया है। हमको सज़ा देने को नही कहा ये अल्लाह का हक़ है। सुराह 2:256 दीन के मामलें में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नही है। सही और ग़लत वाज़ेह कर दिया गया है, अल्लाह ही सबकुछ सुनने वाला और जानने वाला है। अल्लाह ने नबी सल्ल. से कहा सुराह 88:21-24 तुम तो बस नसीहत ही करने वाले हो। इन पर जबर करने वाले नही हो। मगर जो मूँह मोड़ेगा और इन्कार करेगा। तो उसे अल्लाह बहुत बड़ा अज़ाब देगा। इन लोगों को हमारे पास ही आना है। फिर इनका हिसाब लेना हमारे ही ज़िम्मे है। अल्लाह के ज़िम्में है हिसाब भी और सज़ा भी। अल्लाह के हक़ और क़ानून को अपने हाथ में लेना खुद अल्लाह की सज़ा के मुस्तहिक़ बनना है। दलाईल तो बहुत से है कुरान, हदीस, तारीख़ और सीरत की रिवायतों में आप सल्ल. दुनियां के लिये रहमत बनकर आये थे ना कि ज़हमत बनकर इन बातों पर ज़रा गौर करें।
कुछ रिवायात मिलती है जैसे काब बिन अशरफ़ को हज़रत अली ने नबी सल्ल.को गाली देने पर क़त्ल किया (इमाम नसाई के नज़दीक झूठ है) अबू राफेअ और एक ज़िम्मी औरत का। इन जैसी सब रिवायात मुहद्दीसीन के नज़दीक़ सही नही है। एक रिवायात जो कि अलबानी रह. ज़ुबैर अली ज़ई रह. के नज़दीक़ सही मानी जाती है। नसाई: 4075 सल्ल. को गाली देने पर एक नाबीना शख्स ने अपनी कनीज़ का क़त्ल कर दिया। लेकिन ये रिवायात ऊपर बयान की गई कुरान की आयतों और सहीह हदीस के ख़िलाफ़ और आप सल्ल. की शख्सीयत, अख़लाक़, सिफ़ात, और आपकी शान ए रहमत के ख़िलाफ़ भी है। ऐसी रिवायत को लेना जो सहीहैन यानि बुखारी-मुस्लिम में भी ना हो। और आप सल्ल. के अख़लाक़, किरदार और रहमत के ख़िलाफ़ हो कैसे जाईज़ हो सकता है?
ये जो नारा है ‘‘गुस्ताखे रसूल की एक ही सज़ा सर, तन से जुदा’’ इस बात के कोई दलाईल ना कुरान, ना हदीस, ना उलेमा, ना मोहद्देसीन, ना किसी इमाम, ना किसी किताब में दर्ज है। ये अवाम में से किसी ने कहा लोगों ने इसे अपना लिया लेकिन नबी सल्ल. ने फ़रमाया सहीह मुस्लिम: 3 जिस किसी ने मेरे बारे अपनी मर्ज़ी से कोई बात गढ़ी वो अपना ठिकाना जहन्नम में बना ले। अल्लाह ने फरमाया सुराह 36/30 जब कोई रसूल हमें लोगो के पास भेजा लोगों ने उसका मज़ाक उड़ाया। जो रसूल का मज़ाक बनाते हम उसके काफी है। सुराह 15/95 ऐ रसूल मज़ाक उड़ने वालो के लिए हम ही काफी है।
मुसलमानों की इन हरकतों से जो मैसेज दुनियां में जाता है, फिर हम कहें नबी सल्ल. सारी दुनियां के लिये रहमत है, करूणा है, दया का सागर है, कोई कैसे मान लेगा वो मुसलमानों को देखेगा ये किसकी तालिम से ऐसे हैं ये इलज़ाम किस पर जाता है? जरा सोचें! जो कहते हैं, इस्लाम लाना है, यानि अमन/ शांति लाना है, वही लोग इस्लाम की ग़लत तस्वीर पैश कर रहे हैं। फिर मुसलमानों पर रहमत कैसे आईगी? जिनको दुनियां के लिये रहमत और फ़ायदेमंद बनना था वो खुद ज़हमत कैसे बन गये? अल्लाह ने कहा 13:17 जो इंसान के लिये फ़ायदेमंद रहता है वो ही ज़मीन में बाकी (शेष) रहता है बाकी ख़त्म कर दिया जाता है।
इसकी असल वजह क्या है? कुरान को मुक़द्दम ना रखना, इसके ख़िलाफ़ दुसरी बातों को शरियत मानना, इस्लाम को समझने का सबसे पहला उसूल ही यही है, कि अल्लाह और उसके कलाम को सबसे पहले रखा जाये अल्लाह ने कुरान में फ़रमाया सुराह 39:67 ‘‘लोगों ने अल्लाह की क़द्र ही न की जैसा कि उसकी क़द्र करने का हक़ है। अल्लाह ने कहा सुराह 5:44 जो हमारी उतारी हुई आयात के हिसाब से फैंसले ना करे वो ही तो काफ़िर है। सुराह 18:29 हक़ आ गया अब जो चाह माने जो चाहे इन्कार करे।
मैंने दोनों तरफ के दलाईल आपके सामने रख दिये हैं फैंसला आपको लेना है। क्या सही क्या गलत आख़िर सबको अपना हिसाब खुद देना है कोई किसी के काम आने वाला नही है। ये मोज़ू (विषय) बड़ा ही सेंसिटीव है लेकिन इसको दलाईल के रोशनी में देखने को कोशिश करें ना कि जज़बात की।
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