क्या अल्लाह ने कुरान में शोहर को बीवी को मारने का हुक्म दिया है ? | Has Allah Ordered Husband to Beating His Wife in Quran ?

क्या अल्लाह ने कुरान 4/34 में शोहर की नफरमानी करने पर बीवी को मारने का हुक्म दिया है ?

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सुराह निसा 4 आयत 34 कुरान की सबसे ज्यादा ना समझे जाने वाली आयत में से एक है, बताया ये जाता है कि इस आयत में अल्लाह ने शोहर की नफरमानी करने पर बीवी को मारने का हुक्म दिया है। आमतौर पर सभी मुस्लिम और उल्मा यही मानते है, इस पर मुस्लिम औरतें और साथ ही गैर मुस्लिम भी सवाल उठाते है कि अल्लाह ने कैसे एक औरत पर हाथ उठाने का हुक्म दे दिया ये तो जुल्म है। आयत से तो ऐसा ही मालुम होता है लेकिन कुछ उल्मा इस आयत की तर्जुमानी कुछ अलग तरिके से करते है कि अल्लाह ने ऐसा कोई हुक्म नही दिया इस आयत को लोगों ने गलत समझा है। कुरान की दुसरी आयातों से बात समझ में भी आती है। आईये समझते है।

इस आयत का आमतौर पर तर्जुमा ये लिखा होता है (सुराह निसा 4 आयत 34) मर्द औरतों पर कव्वाम/हाकिम है इस वजह से की अल्लाह ने मर्द को औरत पर फजीलत दी है ये इस वजह से के मर्दो ने अपने माल खर्च किये है, नेक फरमाबरदार औरतें शौहर की गैर मोजूदगी में अल्लाह की हिफाजत में  उनके हकों की हिफाजत करने वालीयां है और जिन औरतों की नाफरमानी और सरकशी का तुम्हे डर है तो उन्हे नसीहत करो और उनसे बिस्तर अलग कर लो, और उन्हे मार की सजा दो फिर अगर वो फरमाबरदारी करने लगे तो फिर बहाने ना तलाशो बेशक अल्लाह बडी बुलंदी वाला और बडाई वाला है।


कुरान की इस आयात का मुस्लमानों ने सबसे ज्यादा मिसयूज किया है, सुराह निसा 4 आयत 34 ‘‘अर रिजालू कव्वामुना अलल निसा’’ मर्द औरत पर हाकिम है यानि हुकुमत करने वाला जब तर्जुमा हाकिम कर लिया तो हुक्म चलाना वाजिब हो गया, हालांकि हाकिम और कव्वाम अरबी के ही वर्ड है और कुरान में भी आये है, जैसे अल कय्युम अल्लाह का एक नाम सिफत भी है, यानि कायम रहने वाला, कायम रखने वाला, और भी कई माने है कायम (Establish) करने वाला, सहारा देने वाला, हिफाजत करने वाला वगेराह।

दरअसल शुरूआत की तर्जुमानी गलत हो जाये तो फिर वही होगा जो हुकुमत करने वाला करता है, हाकिम है इस वजह से औरतों पर फजीलत दी है, माल खर्च करते है, नेकोकार औरते शौहर की गैर मोजूदगी में खुद की असमत की, माल की हिफाजत करने वाली। ये अल्लाह के लिये था कि नेकोकार औरते अल्लाह की ताबे फरमान यानि अहकामात की हिफाजत करने वाली है, पहले हाकिम बना दिया सब उसी के लिये हो गया। जबकि ये अल्लाह के लिये है कि नेक औरतें पीठ पीछे भी अल्लाह का डर खौफ रखती है और अल्लाह के अहकामात की हिफाजत करती है।

‘‘तखाफुना नुशुजहुन्ना’’ तुम्हे डर है उनकी शरकसी का ‘‘फाएजुहुन्ना’’ तो उन्हे समझाओ, ना माने ‘‘व हजूरूहुन्ना फिल मजाजइ’’ उन्हे तन्हा छोड दो, बिस्तर अलग कर दो, फिर भी ना माने तो ‘‘वज्रीबूहुन्ना’’ उनको मारों अब ये इसलिये हुआ कि शुरू से हाकिम बना लिया तो मारेगा भी, एक वर्ड के कई माने होते है, इसके भी है, जैसे मिसाल के तौर पर ‘रन’ यानि दौडना, माय पीसी ‘रन’ यानि मेरा कम्प्यूटर चल गया, किक्रेट का रन और जैसे गोली एक वर्ड बच्चे गोली खेलते, गोली यानि दवाई खाने की, गोली मारी यानि बंदूक की, ये शख्स बहुत गोली देता है यानि चक्कर पे चक्कर देता है। बात क्या चल रही टॉपिक क्या है उसके हिसाब उस लफ्ज़ का इस्तिमाल होगा। 

वैसे ही यहां वर्ड/लफ्ज़ ‘‘वज्रीबूहुन्ना’’ आया है इसका एक माना मारना भी होता है लेकिन यहां पर मारना इसका माना नही बनता है ये आगे वाजेह हो जायेगा, ये वर्ड जिसका रूट वर्ड है  ‘‘ज र ब (ض رب)’’ ये कुरान में 58 जगह आया है और अलग-अलग मानों में कई तरह से इस्तिमाल हुआ है। 58 मक़ामात का रेफरेन्स आर्टिकल के आखिर में दिया गया है।  कुछ आयत देखे जिनमे ये लफ्ज़ आया है इस लफ्ज़ की चंद मिसालें जैसे

सुराह रौद 13/17 ‘‘मिश्लुह, कजालिका ‘‘यजरिबूल्ललाहुल’’ हक वल बातिल’’ इसी तरह अल्लाह मिसाल बयान करता है, ‘मारता नही है’ बयान के माने में आया है।

इसी तरह सुराह निसा 4/101 ‘व इजा "जरब्तुम" फिलअरजी’ जब तुम जमीन में सफर करो। जमीन पर मारो नही। सफर के माने में आया है।

इसी तरह सुराह मुहम्मद 47/3 ‘‘कजालिका ‘‘यजरिबूल्ललाहुल’’ लिलनासी अम्सालाहुम’’ अल्लाह लोगों के हाल इसी तरह बताता है। मारता नही है। बताने के माने में आया है।

इसी तरह सुराह कहफ 18/11 ‘‘फजरब्ना’’ अला आजानिहीम‘‘ हमने उनके कानों पर परदा डाला। कानों पर मारा नही। परदा के माने में आया है।

इसी तरह 24/31 ‘‘वलयज्रीब्ना’’ बि खुमुरीहिन्ना अला जुयूबिहीन्ना’’ और डाले रहे अपनी ओढनी सिनो पर। सिनो पर मारे रहे नही। डाले रहे के माने में आया है।

जरब लफ्ज़ मारने के माने भी आया है। जैसे सुराह बकराह 2/60 ‘‘जरीब बिअसाकल हजर’’ अपनी लाठी पत्थर पर मारो। लेकिन सुराह निसा 4/34 में मारने के माने में नही आया है। पुरी आयत को देखे ये माना बनता है। इसकी वजाहत इसकी अगली आयत 35 भी करती है। यहां ये कहा गया।

اَلرِّجَالُ قَوّٰمُوْنَ عَلَي النِّسَاۗءِ بِمَا فَضَّلَ اللّٰهُ بَعْضَھُمْ عَلٰي بَعْضٍ وَّبِمَآ اَنْفَقُوْا مِنْ اَمْوَالِهِمْ ۭ فَالصّٰلِحٰتُ قٰنِتٰتٌ حٰفِظٰتٌ لِّلْغَيْبِ بِمَا حَفِظَ اللّٰهُ ۭ

मर्द औरत पर कव्वाम है (यानि उसकी जिंदगी कायम करे, सहारा दे, हिफाजत करे) उसके जरिये के अल्लाह ने कुछ को कुछ पर फजीलत दी है और उस के जरिये के इन्होने अपने माल खर्च किये है। (मेहर दिया मर्द के बाद अब औरत की बात आ रही है) फिर जो औरतें नेक है वो अल्लाह की इतिआत गुजार है जिनकी अल्लाह ने हिफाजत की है और वो उसके अहकाम की पीठ पीछे हिफाजत करे, जो अल्लाह ने बताये है।


هْجُرُوْھُوَالّٰتِيْ تَخَافُوْنَ نُشُوْزَھُنَّ فَعِظُوْھُنَّ وَانَّ فِي الْمَضَاجِعِ وَاضْرِبُوْھُنَّ ۚ فَاِنْ اَطَعْنَكُمْ فَلَا تَبْغُوْا عَلَيْهِنَّ سَبِيْلًا ۭاِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلِيًّا كَبِيْرًا 

और जिन औरतों से तुम्हे सरकशी का खतरा हो (यानि जो बदहदी और बदकार हो जाये) तो उन्हे नसीहत करो और बिस्तर से अलग कर दो, फिर भी ना माने तो ‘‘वज्रीबूहुन्ना’’ इसका आखरी अंजाम बता दो (वार्निग दे दो)। (मियां बीवी के रिस्ते का आखरी अंजाम क्या होगा? तलाक, जुदाई) सुधर जाये तो रास्ते ना तलाशों, (यानि जुल्म ज्यादती करने के बहाने ना तलाशतें फिरो) अल्लाह बडा है वो फिर माफ भी कर देता है। तुम बहाने मत तलाशों, अल्लाह बडा है तुम उससे बडे ना बनने की कोशिश ना करो। इस आयत में आखरी अंजाम (वार्निग) के माने में ये लफ्ज़ इस्तिमाल हुआ है।

यही बात अगली आयात में तसलसुल Continuation से वाजेह हो जाती है, बेहयाई, बदकार पर तुमने सब कर लिया नसीहत कर दी, समझा दिया, बिस्तर से अलग कर दिया फिर भी नही मानती तो अब आखरी अंजाम की बात भी बता दो, फिर भी मसला हल नही हो रहा है तो फिर तलाक 3 नही चलेगा क्या करना है, अगली आयत में बताया गया है सुराह निसा 4/35 और अगर तुम्हे मियां बीवी के रिस्ता बिगडने का खतरा हो तो दोनों तरफ से एक-एक हकम बनाओ, (ताकि वो दोनों तरफ की बात सुने और फेसला कर सके) अगर दोनों स्लाह चाहते है तो अल्लाह मुआफिकत/मिलाफ पैदा कर देगा, अल्लाह इल्म और खबर वाला है। दिलों की बातों को जानता है, इस आयात से वाजेह है कि ‘‘वज्रीबूहुन्ना’’ का माना मारों नही बल्कि ये आखरी अंजाम (यानि तलाक की वार्निग) बता दो, (यहाँ ये भी जान लें कि तलाक के लिए दो गवाहों का होना भी शर्त है इसके बगैर तलाक नहीं होगी) देखों नही मानी तो रास्ते अलग करने होगें, कैसे इसका तरिका भी कुरान ने बताया है।

निकाह एक एग्रीमेंट है, एक के कहने भर से नही टुटता है निकाह किया तब दो गवाह थे वकील था रिस्तेदार थे और बारात भी थी अब एक की मर्जी से तोड दो, नही दो लोग जो समाज में रूतबा इज्जत रखते हो उनको गवाह बनाना कर रिस्ता तोडा जायेगा। कुरान की 4/34 आयत को मुस्लमानों ने बहुत ज्यादा मिसयूज किया है, आम लोग क्या करे जब बडे ही ये बाते नही समझा पाते, इसी का फायदा वो लोग उठाते है, जो इस्लाम और कुरान के खिलाफ साजीसे करते रहते है, और वो भी इमानदारी से यही समझते है इस्लाम ऐसा है, और क्यूं ना समझे जब मुस्लमान खुद यही मानते और समझते है, तो फिर उन लडकियों को कैसे समझायेगे जो इन बातों को लेकर दीन तक छोड कर गैरों से निकाह तक कर लेती है।

जब पहले ही से मर्द को हाकिम बना दिया। जब तक रिस्ता तय नही हुआ था दोनों में बराबरी थी, देखने जा रहे है, बातचीत हो रही है, रस्मे तय हो रही है, एक दुसरे के घर वालों रिस्तेदारों की इज्जत की जा रही है। लेकिन जैसे ही औरत ने कहा कबूल है, मर्द हो गया हाकिम और औरत हो गई मेहकुम (राजा और प्रजा) अब कुछ नही माने तो मारो, तलाक दे दो, उसको तो सहना ही है, लेकिन जब औरतों ने अपने हक के लिये महिला अधिकार संगठन बना लिये, एहतजाज करने लगी साथ में मुस्लिम औरतें भी सवाल करने लगी तो लोग इस आयत की बचकानी तशरी करने लगे कि हल्की मार मारों, पेंसिल से मारो, टूथ ब्रश से मारो, झाडू के तिनके से मारो, दीन का मजाक बना के रख दिया गया।

फिर उस पर ऐसी तशरीह की जाती है, कि इस आयत का शाहे नुजूल यह बताया जाता है कि एक औरत ने नबी सल्ल. से मर्द की शिकायत की कि शौहर ने मुझे मारा तो नबी करीम सल्ल. ने बदले का हुक्म दिया, तो ये आयात नाजिल हुई। एक शाहे नुजूल ये भी कि एक औरत आई चेहेरे पर मार का निशान भी थे, नबी सल्ल. ने कहा शोहर को हक नही है कि बीवी को मारे तब ये आयात नाजिल हुई, ये सिखाने के लिये कि मर्द हाकिम है, इसलिए इसकी ऐसी तफसीर की गई कि डांट-डपट कर नही तो मारकर रास्ते पर लाओ। और ऐसी मार मारों के निशान ना आये, चेहरे पर मत मारो, कोई जिस्म का अंग ना टूटे, ऐसे-ऐसे तरिके तफसीरों में सिखाये गये।

फिर ऐसी रिवायतें भी लाई गई कि हजरत उमर रजि. ने अपनी बीवी को मारा उस वक्त एक सहाबी आ गये उमर से सवाल करने लगे तो उनसे कहा, 3 बातें याद रखो जो मेंने नबी सल्ल. से सुनी है के मर्द से ना पूछा जाये के किस बिना पर औरत को मारा, वित्र पढे बगेर मत सोना, और तिसरी वो सहाबी भुल गये। जबकि हदीस के उसुल के खिलाफ है कि किसी याददास्त कमजोर रावि से रिवायत ली जाये फिर भी रिवायत सहीह के तौर पर ले ली गई।

अब जब ये बातें एक मुस्लिम लडकी को सुनाई पढाई जाईगी तो क्या रिजल्ट होगा। कुरान ने औरत मर्द को एक दुसरे का लिबास कहा, यानि दोनों एक दुसरे की इज्जत है, बगैर लिबास के इंसान की क्या इज्जत है, और बहुत सी रिवायत नबी सल्ल. से साबित है, आपने कहा वो मर्द अच्छे नही जो अपनी बीवी को मारे। और भी कई हक बीवीयों के बारे में बताये, खुद नबी सल्ल. की जिंदगी देखें, कही ऐसा नही मिलता है कि आपने कभी अपनी बीवीयों को डांटा, मारा या धमकाया हो।

खुलासा कलाम ये कि यहां इस आयत में मारने का कोई हुक्म नही दिया गया है, इसकी तर्जुमानी गलत की गई है, ‘‘वज्रीबूहुन्ना’’ लफ्ज़ का माना यहां पर आखरी वार्निग अंजाम यानि तलाक के तौर पर इस्तिमाल हुआ है जो 4/34 और उसके बाद आयत 35 पढने से वाजेह समझ में आता है। यही बात सही है कि क़ुरान में अल्लाह ने बीवी को मारने पीटने का कोई हुक्म नहीं दिया है बल्कि अगर दोनों में नहीं बनती है तो तलाक का ऑप्शन दोनों दिया गया है।दीन का असल सोर्स कुरान है, अगर उसके खिलाफ कुछ भी है तो हमें बहुत अहतियात के साथ लेने की जरूरत है।

गुजारिश - इस मसअलें पर इस्लाह पसंद उलमा ईकराम को दोनों तरफ के दलाईल को मद्देनज़र रख कर ततबिक तलाश करनी चाहिये। ताकि आवाम को सही मालुमात और रहनुमाई मिल सके।

हक़/सत्य बात जब कभी जिस किसी से भी और कहीं से भी मिले मान लेना ही हक़ दीन/सत्य धर्म है।

शेयर जरूर करे - जजाक अल्लाह/धन्यवाद





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