हर मुसलमान इमाम के पीछे नमाज कबूल होती है
इस्लाम में हर अमल और इबादत का एक मकसद इत्तिहाद भी है नमाज अल्लाह की इबादत के साथ इत्तिहाद कायम करने के लिये भी दी गई ताकि मुस्लमान हर रोज 5 मर्तबा इक्कठा होकर इत्तिहाद कायम करे फिर उससे बडकर जुमा दिया गया ताकि सारे लोग हफते में एक बार बडा इत्तिहाद कायम करे फिर दो ईद दी गई ताकि सारे शहर और गांव के मुस्लमान साल दो मर्तबा और बडा इत्तिहाद कायम करे फिर सबसे बडकर हज पर साल में एक मर्तबा सारी दुनियां के मुल्कों से मुस्लमान आकर मिना में जमा होकर नमाज अदा करे और सारे मुल्कों के मुस्लमान अजीम इत्तिहाद करे और दुनियां की भलाई के मनसुबे बनाकर ले जाये और खैर के काम करे।
इस अजीम मकसदों को दरकिनार कर मुस्लमान एक दुसरे के मसलकों के इमाम और मस्जिदों में नमाज अदा नही करते है। और अक्सर मुस्लमान सवाल करते है क्या जिस मसलक में वो है उसके अलावा किसी दूसरे मसलक के इमाम के पीछे नमाज़ अदा करे तो क्या नमाज़ हो जाएगी इस बारे में क़ुरान और हदीस के क्या दलाइल है आइये जानते है।
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Har imaam ke pichhe namaz hoti hai |
सबसे पहले तो नियत है जो सिर्फ अल्लाह की रजा और ख़ुशनूदी पाने के लिये नमाज अदा करता है तो उस नमाजी की नमाज हर जगह हर इमाम के पीछे अदा हो जाती है ।
इरशाद बारी तआला है
और नमाज को कायम करो और जकात दो, और रूकू करने वालो के साथ रूकू करो ।
क़ुरान (सूरह बक़रह 2/43)
क़ुरान में अल्लाह ने नमाज़ पढ़ने वालो के साथ नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया किसके साथ इसकी कोई कैद नहीं लगाई गई है बल्कि साथ नमाज़ पढ़ने के लिए उभारा है ताकि मुसलमानो में इत्तिहाद कायम रहे ।
फिर भी अफसोस है कि मुसलमान आपस में एक दूसरे की जमात के लोंगो को अपना दुश्मन समझते है सूरह मायदा आयात 2 में फ़रमाया कि जिन लोगो ने तुम्हे काबे से निकला उनकी दुश्मनी भी तुम्हे इस बात आमादा ना करे कि तुम हद से गुजर जाओ और कहा नेकी में लोगो का साथ दो तो अब नमाज़ से बड़ी नेकी क्या हो सकती है ।
नेकी और परहेजगारी के कामों में एक दूसरे की मदद करते रहो और गुनाह जुल्म ज्यादती के कामों में मदद न करो और अल्लाह से डरते रहो बेशक अल्लाह सख्त सजा देने वाला है।
क़ुरान (सूरह मायदा 5 /02 )
हदीसे रसूल में भी कई दलील मौजूद है
अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया :
इमाम लोंगो को नमाज़ पढ़ाते है अगर इमाम ने ठीक नमाज पढ़ाई तो उसका सवाब तुम्हे मिलेगा और अगर गलती की तो भी (तुम्हारी नमाज का) सवाब तुम्हे मिलेगा और गलती का वबाल उसी पर रहेगा ।
हदीस (सहीह बुखारी : 694)
अब्दुल्लाह बिन अदि ने बयान किया :
मैं हजरत उस्मान गनी रजि. के पास गया जब के उन्हें बागियों ने घेर रखा था तो मैंने कहा कि आप आम मुसलमानों के इमाम हैं मगर आप पर जो मुसीबत है वह आपको मालूम है इन हालात में बागियों का मुकर्रर करदा इमाम नमाज पढ़ा रहा है हम डरते हैं कि उसके पीछे नमाज पढ़ कर हम गुनहगार ना हो जाए, तो हजरत उस्मान रजि. ने जवाब दिया नमाज तो जो लोग काम करते हैं उन कामों में सबसे बेहतरीन काम है तो वो जब अच्छा काम करें तुम भी उनके साथ मिलकर अच्छा काम करो और जब वह बुरा काम करें तो तुम उनकी बुराई से अलग रहो ।
हदीस (सहीह बुखारी : 695) बाब : बागी और बिदअती की इमामत का बयान ।
इस हदीस की सराह में इमाम हसन बसरी रह. ने कहा कि बिदअती के पीछे नमाज़ पढ़ लो उसकी बिदअत उस ही के सर रहेगी ।
अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया :
मेरे बाद तुम पर ऐसे हुक्मरान मुसल्लत होंगे जो नमाज में ताख़ीर करके यानी कि देर से नमाज़ पढ़गें और वह नमाज तुम्हारे लिए तो फायदेमंद होगी लेकिन उनके लिए बे फायदा होगी, लिहाजा तुम उनके साथ नमाज पढ़ते रहना जब तक वह किबला रुख होकर नमाज़ पढ़ते रहे ।
हदीस (अबू दावूद : 434)
अब्दुल्लाह बिन उमर रजि. हजरत उमर बिन खत्ताब रजि. दुसरे खलिफा के बेटे है जैद बिन असलम ने कहा आप फितने के जमाने में हर अमीर के पीछे नमाज पढ लेते थे, और उन्हे जकात भी अदा करते थे। आप खुशबियां (मुख्तार शकफी के साथियों) और खारजियो को सलाम कहते थे।
अब्दुल्लाह बिन उमर रजि. से इब्ने जाबीर रजि. के बारे में और खारजियों व खुशबियों के फितने के मुतालिक पूछा गया, क्या आप उन के साथ नमाज पढते है जो एक दूसरे को कत्ल कर रहे है? आप ने जवाब दिया जो शख्स कहता है ‘‘हय या अललसला’’ आओ नमाज की तरफ तो में कबूल कर लेता हूं और जो कहता है ‘‘हय या अलल फलाह’’ आओ फलाह की तरफ तो में मान लेता हूं, लेकिन जो कहे आओ मुस्लिम भाई को कत्ल करें और उसका माल छिन ले तो में नही मानता। (यानि जो भी नेकी की तरफ बुलाता है चाहे वो नमाज हो जिस भी मस्जिद से ये आवाज आ रही है वो मान लेते है बुराई की बात है रूक जाते है। ये दोनों फिरके अली को काफिर कहते थे।
अब्दुल्लाह बिन उमर रजि. हजाज बिन यूसूुफ के पीछे भी नमाज पढ लेते। आप जिस शख्स के पास से गुजरते उसे सलाम कहते और फरमाते में घर से इसलिए निकलता हूं के किसी को सलाम करू या मुझे कोई सलाम करे। खारजी और खुशबियां और हजाज बिन यूसूफ कौन है। खारजी: जो सहाबा को उनकी जिंदगी मेें ही काफिर कहते थे, और गालियां और लानतान करते थे, सहाबा ने इनको इस्लाम से खारिज माना इसलिए इनका नाम खारजी पडा, अब्दुल्लाह बिन उमर इनके साथ नमाज पढते थे वो इनको भी मुस्लमान समझते थे, खुशबियां: मुख्तार शक्फी की जमात के लोग थे, शक्फी के ताल्लुक से कुछ मुफसीर ने कहा इसने नबुवत का दावा किया था वो इनके साथ भी नमाज पढते थे।
हजाज बिन यूसूफ वो शख्स है जिसने अब्दुलाह बिन जुबैर रजि. को मदिना में फांसी पर लटका कर शाहिद कर दिया था अ. बिन जुबैर वो सहाबी है, जिनके बहुत फजाईल हदीस में आये है, आप पहले खलिफा हजरत अबुबक्र रजि. के नवासे है हजरत आयशा रजि. के भतीजे है आप इनके पीछे भी नमाज पढते थे।
शेख जुबैर अली जई रह. की किताब ‘मकालात’ जिल्द 1 अब्दुल्लाह बिन उमर रजि. के फजाईल और सुनन अल कुबरा बैहकी नई कोडीगं नं. 5088 में देख सकते है।
जहां तक हाथ बांधने, रफेदयन करने, आमीन जोर से और धीरे कहने, सुराह फातिहा पढने ना पढने, पांव मिलाने ना मिलाने, ईद की जाईद तकबीरे और नमाज की तकबीर इकहरी या दोहारी ये सब सिर्फ अफजल गैर अफजल का फर्क है किसी की नमाज ना हो ऐसा कोई मसलक नही कहता। चंद फिरकापरस्त मुस्लमान जो आपस में तफरका डालते है और फिरकापरस्ती करते है। अगर इन दलाईल के बाद कोई ये समझता है, नही मेरी नमाज दुसरे मसलक के इमाम के पीछे नही होती है वो फिरकेबाज है, फिरके बनाने वाले मुश्रीक यानि शिर्क करने वाले है ये कुरान कहता है।
मुशरिकों में से ना हो जाओ जिन्होने अपने दीन को फिरकों में बांट लिया और कई गिरोह हो गये सब फिरके इसी से खुश है जो उन के पास है।
क़ुरान (सुराह रूम 30/31-32)
सहाबा रजि. और तबाईन उसके बाद के मुस्लमान सब एक दुसरे के पीछे नमाज पढते थे लेकिन आज कुछ मुस्लमानों ने छोटे-छोटे मसाईल पर मस्जिदों में बोर्ड लगा दिये फलां फिरका फलां मसलक के लोग मस्जिद में ना आये डरना चाहिये अल्लाह ने ऐसे लोगों के ताल्लुक से कुरान में कहा
और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह की मसजिदों में उसका नाम लिए जाने से लोगों को रोके और उनकी बरबादी के दर पे हो, ऐसे लोगो खौफ खाते हुए उसमें जाना चाहिए ऐसे ही लोगों के लिए दुनिया में रूसवाई है और ऐसे ही लोगों के लिए आख़िरत में बड़ा भारी अज़ाब है।
क़ुरान (सूरह बक़रह 2/114)
आपस में इख्तिलाफ तो हो सकता है लेकिन जब दिलों में दुश्मनी आ जाये और हर चीज की मुखालफत करने लगे वो फिरके है। जिसने ये मान लिया हमारे यहां कोई गलती नही है जो कुछ है सब सही है, इनकी स्लाह मुमकिन नही होती है, हमें इनसे बचकर अल्लाह और उसके रसूल की पैरवी करना चाहिए जो अल्लाह के हुक्म को ना माने और क़ुरान से फैसले ना करे तो अल्लाह ने कहा ‘‘वमल्लम यहकुम बिमा अन्जलल्लाहु फउलाईका हुमुलकाफिरून, हुमुलफासिकुन, हुमल जालिमुन’’ जो हमने नाजिल किया उसके मुताबिक फैसले ना करे वही तो जालिम है, काफिर है, फासिक है।
क़ुरान (सूरह मायदा 5/44,45-47)
अल्लाह मुसलमानों को सही हिदायत फरमाए और इत्तेहाद कायम करने की तौफीक अता फरमाये।
आमीन..
अल्लाह ने तुम्हारा नाम मुस्लिम (मुसलमान) रखा है.
https://www.iiecindia.com/2020/10/allah-ne-quran-men-tumhara-naam-muslim.html