Kya Quran Maizd Ki Kuch Ayat Mansukh (Cancel/Nirast) Hai (Abrogation in Quran) क्या क़ुरान मज़ीद की कुछ आयत मनसुख (कैंसल/निरस्त) है ।

क्या क़ुरान मज़ीद की कुछ आयत मनसुख (कैंसल/निरस्त) है ।

अल्लाह के नाम से जो रहमान और रहीम है। 

कई खास और आम मुस्लमान क़ुरान मज़ीद की कुछ आयात को मनसुख मानते है क्या वाकई में क़ुरान की कुछ आयात मनसुख/निरस्त है या कर दी गई है, क्या इसका हुक्म अल्लाह या उसके रसूल ने दिया था क्या इसकी कोई हक़ीक़त है, क़ुरान और हदीस इस बारे में क्या कहते, ये मोजू बहुत से लोगो के लिए नया हो सकता है और कई मुसलमान शायद ये बात जानते भी होंगे की नासिख़ मनसुख क्या होता है तफसील से जानने के लिए पूरा लेख जरुर पढ़े आइये जानते है।

Abrogation in Quran
Abrogation in Quran

सबसे पहले यह जान ले की क़ुरान पर ईमान लाना क्या होता है क़ुरान पर ईमान का माना ये है की क़ुरान को अल्लाह की किताब माने इसका हर एक  लफ्ज और हर्फ़ अल्लाह की तरफ से है कोई भी ईमान वाला जो मुसलमान है अगर क़ुरान के एक लफ्ज या हर्फ़ और इसके हुक्म का भी इंकार करे या शक करे तो उसे काफिर (यानि इंकार करने वाला) कहा जाता है ये क़ुरान पर ईमान है और ईमान में अमल भी शामिल है, इस बात की गवाही में भी, और आप भी देते है।


मनसुख का माना क्या होता ? मनसुख को हिंदी में निरस्त, और इंग्लिश में Abrogation/Cancel कहते है।


आप जानते क़ुरान मज़ीद अल्लाह का आखरी कलाम है जो कायनात का रब है और वो "आलिमुल ग़ैब" सब कुछ जानने वाला है, उसने क़ुरान को क़यामत तक के हर इंसान के लिए आखरी किताब गाईड बुक यानि रहनुमाई बना कर भेजा है ।


और इसकी गवाही अल्लाह ने कुरान में और उसके रसूल के जरिये भी कुरान ओर हदीस में दी है और साथ ही कुरान मजीद की आखरी आयात जो नाजिल हुई जिसमें अल्लाह ने कहा सुराह मायदा 5 आयात 3 आज हमने तुम्हारे दीन को मुकम्मल कर दिया और अपना इनाम भरपूर कर दिया यानि के ये दीने इस्लाम कामिल हो चुका है अब इसमें कोई तबदीली नही हो सकती है, ना कोई नया हुक्म अल्लाह की तरफ आयेगा और ना कोई हुक्म मनसुख (निरस्त) होगा।


फिर भी कुछ मुस्लमानों का ये मानना है कि कुरान की कुछ आयात मनसुख (निरस्त) है इसकी वजह वो ये बतलाते है कि कुरान की कुछ आयात आपस की टकरती है, जिसकी वजह से दोनों पर अमल नही हो सकता इसलिये एक को मनसुख (निरस्त) करना पडता है, लेकिन ये बात सही नही है क्योकि अल्लाह आलिमुल गैब है वो सब जानता है, वो ऐसी बात कुरान में बयान नही कर सकता जो आपस में टकराव पैदा करे इसकी गवाही खुद अल्लाह अपनी किताब में देता है ।


क्या ये लोग कुरान में गौर नही करते अगर ये अल्लाह के सिवा किसी और की तरफ से होता तो इसमें बहुत सारा इख्तिलाफ (टकराव) होता।
कुरान: सुराह निसा 4 आयात 82

जब अल्लाह खुद गवाही दे रहा है कि टकराव तब होता जब ये गैर उल्लाह की तरफ से होता, ये अल्लाह का कलाम है इसमें टकराव मानना इस आयात का भी इंकार करना है । कुरान पर इमान का तकाजा तो ये है कि कोई आयात हमें टकराती हुई लगती है तो खुब गौर करे चाहे सालों लग जाये फिर भी अगर समझ में ना आये तो अपनी अक्ल को दोष दे ना कि अल्लाह की किताब को, ये हमारी नाकिस अक्ल की खराबी है अल्लाह के कुरान में कोई टकराव नही हो सकता है, कुरान मजीद में अल्लाह ने कई बार दोहराया है के उसकी बातें उसके हुक्म बदला नही करते है।


आपकी तरफ जो रब की किताब वही की गई है उसे पढो उसकी की बातों को कोई बदलने वाला नही, नही तो उस के सिवा हरगीज पनाह की जगह ना पाओगे । कुरान: सुराह कहफ 18 आयात 27  (और इन आायात को भी देख सकते है 6/34-115, 10/64, 50/29, 17/77)


अल्लाह आलीमुल गैब है, यानि के, वो जो हो चुका वो भी जानता है जो होने वाला है वो भी जानता है, कायनात का एक जर्रा भी उसके इल्म के बहार नही है, वो अपनी किताब में ऐसी कोई बात बयान नही कर सकता जिसको बाद में मनसुख (निरस्त) बदलना पढे, अगर बदलने पढे तो नाउजबिल्लाह वो गैब का इल्म नही रखता, ये बात अगर गैर मुस्लिम कहते है तो समझ में आती है कि उनका अकिदा अल्लाह के बारे मुकम्मल नही है लेकिन मुस्लमान खुद मानने लगे तो बहुत अफसोस की बात है,


और इस सिफत के ताल्लुक से अल्लाह ने अहले किताब के ताल्लुक से फरमाया वो ये करते थे किताब के कुछ हिस्से को मानते थे कुछ को छुपा लेते या इंकार कर देते है अल्लाह ने कहा क्या तुम अल्लाह की किताब के बाज (कुछ हिस्से का) हुक्म पर इमान रखते हो और बाज के साथ कुफ्र (इंकार) करते हो, तुम में से जो भी ऐसा करे, उस की सजा इसके सिवा क्या हो के दुनियां में रूसवाई और कयामत के अजाब की मार, और अल्लाह तआला तुम्हारे आमाल से बखबर नही । कुरान : सुराह बकराह 2 आयात 85


अल्लाह की किताब की आयात मनसुख (निरस्त) करने का किसी को हक नही है अगर कोई इस कायनात में हक रखता भी है तो वो हमारे नबी मुहम्मद सल्ल. है लेकिन अल्लाह ने कुरान में नबी के जरिये से भी कहलवाया की।


और जब उनके सामने हमारी आयातें पढी जाती है जो बिलकुल साफ-साफ है तो ये लोग जिन को हमारे पास आने की उम्मीद नही है, ये कहते है के इसके सिवा कोई दुसरा कुरान लाओ या इसमें कुछ तरमीम (बदलाव) कर दो, आप यूं कह दीजिये के मुझे ये हक नही के में अपनी तरफ से इसमें तरमीम (बदलाव) कर दूं, बस में तो उसकी पैरवी करूगां जो मेरे पास वही के जरिये पहुचां है अगर में अपने रब की नाफरमानी करू तो में एक बडे दिन के अजाब से डरता हूं । कुरान: सुराह यूनूस 10 आयात 15


अगर कोई कर सकता तो मुहम्मद सल्ल. कर सकते थे लेकिन अल्लाह ने उनके जरिये अपनी किताब में कहलवाया दिया, इसके अलावा हमें कोई ऐसी हदीस या रिवायात अल्लाह के रसूल सल्ल. के ताल्लुक से नही मिलती चाहे वो जईफ हो झुठी भी हो जिसमें नबी करीम सल्ल. ने फरमाया हो कि ये फलां फलां आयात मनसुख (निरस्त) है, लोगों ने लाखों झूठी हदीसे घडी लेकिन ये हदीस किसी झूठे ने भी कभी नही घडी की कुरान की आयात मनसुख (कैसंल) है क्योंकि वो भी जानता होगा कि मुस्लमान इस झूठ को कभी नही मानेगा कि अल्लाह की किताब की कोई आयात मनसुख (कैसंल) है, फिर एक मोमिन कैसे इस बात को मानेगा ।


ये हमारे इमान का हिस्सा है कि कुरान में कोई तबदीली नही हो सकती, और ना ही उसके हुक्म को कोई मनसुख कर सकता है, क्योकि इस कुरान की हिफाजत खुद अल्लाह करता है, सुराह हिज्र 15 आयात 09 फिर भी कुछ मुस्लमान इसमें शिद्दत रखते है कुरान में मनसुखी है जबकि कोई पुख्ता दलील नही है, वो कहते है कि फलां बडे आलीम ने कहा है वो बडे इल्म वाले है वो कैसे गलती कर सकते है, ये बात अपनी जगह ठीक कि हमें आलीमों की इज्जत एहतराम करना है लेकिन कोई बात कुरान और हदीस से टकराये तो हमें अल्लाह और उसके रसूल के की तरफ लोटना चाहिये, हमें अल्लाह को रब मानना है ना कि आलिमों को इसके ताल्लुक से अल्लाह ने कुरान में फरमाया


उन लोगों ने अल्लाह को छोडकर अपने आलिमों और दरवेशों को रब बनाया है और इशा इब्ने मरयम को, हालांकि उन्हे सिर्फ एक अकेले अल्लाह की इबादत का हुक्म दिया गया था जिसके सिवा कोई माबुद नही वो पाक उनके शरीक मुकर्रर करने से ।
कुरान: सुराह तौबा 9 आयात 31


हमें डरना चाहिये इस बात से के अल्लाह की किताब में नाउजबिल्लाह कोई आयात मनसुख है एक मुस्लमान का ये अकिदा होना चाहिये के जब भी कोई बात में टकराव हो चाहे वो आलिम की हो, या कोई रिवायत की हो, उसका फैसला हमें कुरान से करवाना चाहिये अल्लाह ने सुराह बकरह 2 आयात 185 में फरमाया ये कुरान हिदायत है फुरकान है ये हक और बातिल में फर्क करने वाला है, अगर हम कुरान से फैसला ना करवाये तो अल्लाह ने ऐसे लोगों के ताल्लुक से फरमाया।


और जो लोग अल्लाह की उतारी हुई वही (आयात) के साथ फैसले ना करे वही तो काफिर है, वही तो जालिम है, वही तो फासिक है । कुरान: सुराह मायदा 5 आयात 44,45,47 । में समझता हूं कि एक इमान वाले के लिये इतनी बात काफी होनी चाहिये अल्लाह हमें हक बात समझने की और सही अमल करने की तौफिक अता फरमाये.... आमिन


फिर भी इस मोजू की तफसीलात में जाये तो हमें मालुम होता है कि ये आयातों की मनसुखी की बात बहुत पुराने दौर से जारी है, आज भी जिसका जब जी चाहता है वो कुरान की आयात को मनसुख करार दे देता है, इस बारे में आखिरी में बताउंगा, पहले हम ये देखते है कि लोग नासिख मंसुख की कितनी किस्में मानते है ।


कुरान में नासिख मनसुख की किस्में : 

01) कुरान की आयात की तिलावत करेगें लेकिन हुक्म नही मानेगें, अमल भी नही करेगें, इसकी तीन किस्में है ।
    (अ) कुरान की एक आयात से दुसरी आयात मनसुख (निरस्त)
    (ब) कुरान की आयात रिवायात से मनसुख (निरस्त)
    (स) कुरान की आयात आलिमों के इज्तिहाद से मनसुख (निरस्त)

02) कुरान में आयात मोजूद नही है लेकिन हुक्म माना जायेगा ।
03) कुरान में आयात मोजूद नही है हुक्म भी नही मानना, लेकिन ये मानना है कुरान में मोजूद थी।


ये तीन किस्में है नासिख मनसुख की इन सारी किस्मों से शुरू के दौर से अब तक जो आयात मनसुख करते आये है उनमें मुख्य ये है।

अल जुहरी 8वी सदी 42 आयात मनसुख (निरस्त), अल नाहस 10वी सदी 138 आयात मनसुख (निरस्त)

इब्ने सलामा 10वी सदी 238 आयात मनसुख (निरस्त), इब्ने अतैकी 14वी सदी 231 आयात मनसुख (निरस्त)

अल फारसी 14वी सदी 248 आयात मनसुख (निरस्त), अल फारसी ने बाद मनसुखी से मना किया

अल सुयुती 15वी सदी 20 आयात मनसुख (निरस्त),

शाह वली उल्लाह 18वी सदी 5 आयात मनसुख (निरस्त) लेकिन शाह साहब के खास शार्गिद मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी ने किताब फोजूल कबीर में कहा शाह साहब एक भी आयात को मनसुख नही मानते थे।


इन सब किस्मों को मिलाकर कुरान की तकरीबन शुरू में 500 आयात मनसुख मानी गई फिर बाद में वक्त-वक्त पर घटते-घटते 200 फिर 20 और 5 तक आ गई लेकिन अभी भी सब एक बात पर मुत्तफीक नही है कि वो 5 आयात कौन सी है, हर आलिम अपनी तरफ से अलग-अलग आयातों को मनसुख मानते है अब तक ये तय नहीं है वो आयात कौन-कौन सी है, 


नासिख मनसुख की वैसे तो ये बहुत बडा मोजू है लेकिन हम यहां सिर्फ एक किस्म की बात करेगें 01) (अ) कुरान की एक आयात से दुसरी आयात मनसुख (निरस्त)


सबसे मशहुर मनसुखी की आयात जो पेश की जाती है वो शराब को हराम किये जाने के ताल्लुक से है, की कुरान में सबसे पहले शराब की हुरमत सुराह 2/219 में शराब में नुकसान ज्यादा है कुछ फायदा भी है 

फिर सुराह 4/43 ऐ इमान वालों शराब के नशे में नमाज के करीब मत जाओ यहां तक के तुम जो कह रहे हो वो समझने ना लगो 

फिर सुराह 5/90 ऐ इमान वालों शराब, जुआ, फाल, ये सब शैतान के काम है इनसे अलग रहो ताकि तुम कामयाब हो जाओ ।


ये कहा जाता है कि आखरी आयात सुराह मायदा की वजह से पहले की दो आयात मनसुख (निरस्त) हो गई है अब तिलावत की जायेगी अमल नही किया जायेगा, क्योकि इससे शराब हलाल होने का अंदेशा मालुम होता है, हालांकि कुरान को समझने और तफसीर के जो वसूल उल्मा ने बनाये है सबसे पहला उसूल ‘‘कुरान की तफसीर कुरान से’’ उसके मुताबिक तो ऐसा मालुम नही होता है कुरान को समझने और तफसीर करने के लिये ये जरूरी उसूल है एक मोजू की सभी आयातों जमा करेगें उससे क्या हुक्म निकलता है वो लिया जायेगा, उसके हिसाब से शराब हराम ही रहेगी चाहे जो मामला पेश आये


फिर कोई कहे नही मनसुख करना पढेगा नही तो कोई हलाल समझ कर अमल करेगा, हालांकि थोडा सा गौर करे एक आम आदमी की बात की जा रही है कि वो ऐसा समझ लेगा लेकिन ये तो सोचो एक आम आदमी कुरान को पहले पढेगा या फिर पहले नासिख मंसुख का इल्म सिखेगा, उसको तो मालुम भी नही नासिख मंसुख क्या होता है, जो इस इल्म तक पहुच गया वो तो कुरान के एक उलूम आलिम हो गया उसको तो वैसे ही मालुम है कि शराब हराम है वो क्यूं इसे हलाल मानेगा, फिर भी हम देखे क्या ये आयात मनसुख है, या नही है क्यूं ?


क्योकि आपने इस आयात सुराह 2/219 में शराब में नुकसान ज्यादा है कुछ फायदा भी है। को मनसुख किया यानि इसका हुक्म पर अमल खत्म किया तो एक मसला ये निकला कि शराब से फायदा लिया जा सकता है, आप कहेगे शराब हराम है क्योकि सुराह मायदा में है हुरमत है दोनो ही सुरतों में उसी आयात से हराम लेना है, आप चाहे मनसुख माने या ना माने फिर इस पर मनसुखी लगाने से फायदा क्या है, एक मसला ये भी निकलेगा कि शराब का नुकसान खत्म क्योकि आयात मनसुख है,


शराब के अंदर नुकसान ज्यादा फायदा कम ये बात आज भी है और कयामत तक रहना है शराब से माअसरा खराब होता है, लडाई, झगडा, तल्लाक, मियां बीवी में तकरार, रोड एक्सीडेंट माल का फिजूल जाया होना, बहुुत सी बिमारीया ये बडे नुकसान है, अल्लाह की बात है तो कुछ फायदा भी है, आप सोचे लोग शराब का कारोबार करने लगेगें वो हराम ही है, पीना हराम है, पीने वाली शराब खरीद फरोख्त तिजारत उसमें हर किस्म की मदद हराम है लेकिन दुसरे फायदे है शराब यानि अल्कोहल से बहुत किस्म की दवाई बनती है, जो बिमारी में काम आती है, किसी चीज को लंबे वक्त तक महफूज रखने के लिये इसका इस्तिमाल किया जाता है, आज दौर में कोरोना से बचने के लिये इसका इस्तिमाल सेनेटाइजर बनाने में किया जाता है, ये आयात मनसुख नही है अल्लाह की बात तबदील नही होती ।


सुराह 4/43 ऐ इमान वालों शराब के नशे में नमाज के करीब मत जाओ यहां तक के तुम जो कह रहे हो वो समझने ना लगो, ये समझा जाता है कि कोई शराब पीकर नमाज पढने लगेगा इसलिए इसे मनसुख किया गया है, पहले हम ये सोचे कि आपने इस आयात को मनसुख किया इसका हुक्म खत्म किया तोे इसका मतलब ये हो गया कि अगर वो शराब पीले फिर भी नमाज पढ सकता है क्योकि आयात का हुक्म मनसुख है, आप कहेगे शराब हराम है क्योकि सुराह मायदा में है हुरमत है दोनो ही सुरतों में उसी आयात से हराम लेना है, फिर इस पर मनसुखी लगाने से फायदा क्या है, वैसे तो मसला वाजे है लेकिन फिर आप कहे नही मनसुखी ना माने तो से शराब हलाल हो रही है।


कुरान में किताल के हुक्म की बहुत सी आयाते है वहां जंग के हालात में कत्ल करने की बात बताई गई है उस आयात को पढ कर कोई किसी का कत्ल कर दे तो क्या हम उस आयात को भी मनसुख कर देगे कि लोग इस पर गलत अमल कर रहे है, लोगों को इल्म देगें नाकि आयात मनसुख करेगें, इसे तो फिर कुरान का बहुत सा हिस्सा इसी में मनसुख हो जायेगा ।


कुरान में अल्लाह ने कहा कि सुराह मायदा 5 आयात 32 में जिस किसने किसी बेकसूर का कत्ल किया पुरी दुनियां के लोगों के कत्ल के बराबर गुनाह है ये भी है कि कोई किसी का कत्ल करे जो जान के बदले जान का किसास लिया जायेगा, अल्लाह ने कत्ल को हराम करार दिया फिर भी कोई कत्ल कर दे तो इसका मतलब ये तो नही हो गया कि कत्ल हलाल कर दिया वो तो हराम ही है, इसी तरह जब अल्लाह ने शराब को हराम करार दे दिया फिर भी कोई पीले तो उसने हराम काम किया उसके ना समझने की वजह से कुरान की आयात मनसुख नही कर सकते ।


क़ुरान कयामत तक के लिए रहनुमाई है आज भी अगर कही इस्लामी हुकूमत कायम होगी तो क़ुरान की इसी तरतीब पर अमल किया जावेगा जैसे अल्लाह ने शराब छुड़ाने की तरतीब रखी है अगर उस मुल्क की आवाम शराब नोशी में मुफ़्तीला है और उनकी आदत में शराब शमील है अगर एक ही बार में शराबबंदी कर दी जाये तो लोग जहनी तौर पर बीमार पड़ जायेंगे कई तो मर जायेंगे इसलिए डॉक्टर भी किसी की शराब छुड़ाते है ऐसे ही धीरे-धीरे तदरीजन शराब छुड़वाई जाती है तो पहले कुछ वक़्त तक शराब के नुकसान बताये जायेगे फिर उन्हें मस्जिद, इबादतखाने, आवामी जगह, बाग बगीचे, घूमने की जगह, ऑफिस, स्कूल, दुकानो पर शराब पी कर आने से रोका जायेगा, जब लोग पाबंद हो जायेंगे तो फिर पूरी तरह से शराब बनाने बेचने खरीदने पर पाबन्दी लगाई जाएगी, इस्लाम इसी तरह दुनिया में फैला है अल्लाह ने इसलिए क़ुरान के नुजूल में २३ साल का वक़्त लिया एक साथ पूरा कुरान नाजिल नहीं किया इतनी बड़ी हिकमत की बात इन आयतों में और इसको मनसुख करार देना क्या मुनासिब है ?


इस किस्म की बहुत सी आयात है जो अलग-अलग लोंगों ने उस पर मनसुखी लगाई है कुछ लोग कुरान से भी दलील देते है कि कुरान में भी मनसुखी का जिक्र है एक आयात जो पेश की जाती है ।


जिस आयात को हम मनसुख कर दे, या फिर भुला दे उस से बेहतर या उस जैसी और लाते है, क्या तू नही जानता के अल्लाह हर चीज पर कादिर है ।सुराह बकराह 2 आयात 106


इस आयात को समझने से पहले कुरान का एक और उसूल जान ले कि जब भी कोई क़ुरान से मसला या कुछ समझना हो या कोई हल निकालना हो उस आयात के उपर और नीचे की 8 से 10 आयात को और पढे इससे आपका कोई भी मसला होगा साफ हो जायेगा ।


इस आयात में को अगर हम 101 से पढेगे तो मालुम होगा, कि ये किस मनसुखी की बात हो रही है वहां बात अहले किताब यहुदी की चल रही है, अल्लाह कह रहा है कि हम अहले किताब के पास रसूल भेजते है ताकि उनकी किताब यानि तौरात, इंजील की तस्दीक करे तो इनका एक फिरका उस बात को जो अल्लाह ने नाजिल की थी पीठ पीछ छुपा लेता है ऐसे के जैसा जानता ही नही है, और फिर सुलेमान अलै. पर इल्जाम लगाते है उन्होने जादू सिखाया, फिर कहा ऐ इमान वालों तुम भी यहुदी जैसे दो मानी बातें ना करो, और कहा अहले किताब और मुशरिक नही चाहते आप पर कोई भलाई नाजिल हो अल्लाह जिसे चाहता खास रहमत अता कर देता है, 105 तक, और 106 में कहा जिस आयात को हम मनसुख कर दे, या फिर भुला दे उस से बेहतर या उस जैसी और लाते है, क्या तू नही जानता के अल्लाह हर चीज पर कादिर है


सिलसिला ए कलाम से साफ मालूम होता है कि अहले किताब ने तौरात इंजील की तालिम को बदला, पीठ पीछे डाला यानि भुला दिया और सुलेमान अलै. पर कुफ्र का इल्जाम पर अल्लाह ने कहा कि उन्होने कुफ्र नही किया, इससे मालुम होता है जो अहले किताब ने छुपाया, भुला दिया यानि उनके शरियत के चीजे जैसे नमाज, रोजा, जकात, जूर्म की सजाएं वाल्देन के हुकुक उनकी गिनती, वक्त, जो कुरान जगह-जगह बयान किया गया है, इनको मनसुख कर के अल्लाह ने कुरान में नये अहकामात वाजे किये, जो अहले किताब ने छुपाया भुला दिया वो भी अल्लाह ने कुरान में फिर से नाजिल किया बल्कि और बेहतर नाजिल किया अल्लाह ने मुहम्मद सल्ल. और उनकी उम्मत को खास रहमत अता की हम जानते है अल्लाह हर चीज पर कादिर है। ये बात सिलसिला ए कलाम से वाजे है और इससे आगे पढेगें अल्लाह ने कहा कि अहले किताब के अक्सर लोग हक वाजे हो जाने बा वजूद हसद और बुग्ज की बिना पर इमान नही लाते और तुम्हे भी इमान से हटाना चाहाते है 109 तक,


ये कुरान की मनसुखी का जिक्र नही है इसी तरह की आयात कुरान में एक और जगह पर आई है ।
सुराह हज 22 आयात 52 में और साफ हो जाती है, अल्लाह ने कहा ‘‘हमने आप से पहले जिस रसूल और नबी को भेजा उसके साथ ये हुआ के जब वो अपने दिल में कोई आरजू करता शैतान उसमें कुछ मिला देता फिर अल्लाह शैतान की मिलावट को दूर करता फिर अपनी बातें साफ कर देता है’’ यानि रसूल जाने के बाद दुसरा रसूल आता शैतान की बातें अल्लाह साफ करके नये रसूल जरीये फिर से नाजिल करता है। इन दोनो ही आयात में मनसुख लफज आया है।


ये तो उनकी शरियत और अहकामात की मनसुखी और जो वो भुला चुके उसे वापिस लाने की बात है जो अल्लाह ने अपनी आखरी किताब में पुरी दुनियां के इंसानों के लिये उन सब बातों को मिलावटों से पाक कर बयान कर दिया है,


फिर आप कहे कि नही मनसुखी है तो फिर ये बात भी है कि पिछले किताब की आयात में शैतान मिलावट करता था इसलिये अल्लाह नये रसूलों के जरिये पाक साफ करके भेजता था लेकिन इस कुरान की खास बात ये के इसकी हिफाजत अल्लाह ने खुद की है इसमें शैतान दायं बाये, उपर नीचे कही से दाखिल नही हो सकता है,
 

फिर भी अगर कोई मनसुखी माने तो फिर उसको सूरह निसा 4 आयात 82 को भी मनसुख मानना पड़ेगा अल्लाह कह रहा है हमारी किताब में टकराव नहीं है और आप कह रहे है टकराव है !


वैसे तो इतने दलाईल काफी है, फिर भी इसकी बुनियाद पर मनसुखी माने के कुरान ही की आयात को मनसुख करने की बात है 106 में कहा जिस आयात को हम मनसुख कर दे, या फिर भुला दे उस से बेहतर या उस जैसी और लाते है, तो फिर हम ये माने की अल्लाह ने जो भुला दिया वो अब इस कुरान में नही है क्यूंकी जिसको अल्लाह भुला दे उसको कोई याद नही रख सकता है, जो मनसुख कर दिया यानि बदल दिया दुसरा आ गया तो पिछला भी इस कुरान में नही है तो ये बात माने की कुरान में अब मनसुख कुछ है नही। बात वही है के कुरान में कोई मनसुखी नही है।

ये जो बात हुई ये सिर्फ एक किस्म की मनसुखी की है 01) (अ) कुरान की एक आयात से दुसरी आयात मनसुख (निरस्त) इंशा अल्लाह आगे और किस्म की बात करेगें ।

मैने आप से उपर कहा था कि ये आयातों मनसुखी की बात बहुत पुराने दौर से जारी है, आज भी जिसका जब जी चाहता है वो कुरान की आयात को मनसुख करार दे देता है, इस बारे में आखिरी में बताउंगा तो आप नीचे दिए लिंक पर जाकर उर्दू और इंग्लिश में पढ सकते है आज दौर में भी फतवों के जरिये कुरान की बहुत सी आयातों को मनसुख करार दिया गया है। 

http://www.islamqa.com/ur/ref/34770/abrogated 

एक बात और बहुत से मुस्लमान सोचते है कि आज टीवी मिडिया, इलेक्ट्रोनिक मिडिया, सोसायल मिडिया, जो कुरान, मुहम्मद सल्ल. और मुस्लमानों पर इल्जाम लगाता है के ये किताब और ये नबी लोगों को दहशतगर्दी सिखाते है

क्यूं मुस्लमानों पर आंतकवाद का इल्जाम लगता है, बहुत बड़े आलिमे दीन का ये फतवा पढ कर आपको समझ में आ जायेगा कि ये लोग कुरान और हदीस की दलील कहां से लाते है।


गुजारिश - इस मसअलें पर इस्लाह पसंद उलमा ईकराम को दोनों तरफ के दलाईल को मद्देनज़र रख कर ततबिक तलाश करनी चाहिये। ताकि आवाम को सही मालुमात और रहनुमाई मिल सके।


हक़/सत्य बात जब कभी जिस किसी से भी और कहीं से भी मिले मान लेना ही हक़ दीन/सत्य धर्म है।


शेयर जरूर करे - जजाक अल्लाह/धन्यवाद

अल्लाह ने तुम्हारा नाम मुस्लिम (मुसलमान) रखा है.

https://www.iiecindia.com/2020/10/allah-ne-quran-men-tumhara-naam-muslim.html
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