अल्लाह के नाम से जो बडा ही मेहरबान और रहम करने वाला है

Khulasa E Quran

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सुराह बकराह आयात 183 से 286
बनी इसराइल के तर्जे अमल से सबक लो, उनकी तरह काफिर भी मोमिनीन की जिंदगी का मजाक उड़ाते हैं हालांकि दुनिया भी रोजी मिलना अल्लाह की मसाईत में से है, इख्तिलाफात वजह यह है कि दुनिया के इंसान शुरू में एक उम्मत थे, और मैं नबी आते रहे लोग अल्लाह का कानून इल्म आ जाने के बाद दूसरों पर ज्यादती करने की नियत से इख्तिलाफ पैदा करते रहे, लेकिन सच्चे ईमान वालों के लिए अल्लाह सीधे रास्ते की तरफ रहनुमाई फरमाता है इससे यह मत समझ लेना कि इन सख्त आजमाइश के बगैर तुम्हारा ईमान कबूल कर लिया जाएगा और तुम जन्नत में दाखिल हो जाओगे, अगर इम्तिहान में साबित कदम रहे तो अल्लाह की मदद जरूर आएगी, इन आजमाइश कामयाब गुजरने के लिए हलाल की कमाई से वाल्देन और रिश्तेदार, यतीमों, मिस्कीनो और मुसाफिर के ऊपर खर्च करो, जब लड़ाई का मौका हो तो कराहो मत मस्जिदे हराम में लड़ाई मना है लेकिन अगर फसादी वहां गड़बड़ करें तो उसूल यह है कि फ़ितने के मुकाबले में कत्ल मामूली बात है ।
याद रखना नशे और जुए में नुकसान ज्यादा है फायदा कम, वो चीज जो तुम्हारे इस्तेमाल में नहीं आ रही है जरूरतमंदों को दे दिया करो, यतीमों का खर्च अपने माल में मिलाकर खर्च किया जा सकता है अल्लाह को इल्म है कि कौन ईमानदार है वह कौन गड़बड़ कर रहा है, मुश्रिक मर्दो और औरतों से निकाह ना करना, चाहे उनमें कितनी ही खुबियां नजर आती हो, हैज एक तकलीफ दे हालत है उस हालत में औरतों से मुबाशरत ना करना जब तक पाक ना हो जाए, औरतों की मिसाल खेतों की मानिन्द है, खेती करते वक्त मुस्तक बिल की फसलों का ख्याल रखा जाता है ।
भलाई से बचने की कसमें ना खाना फिजूल कसमों पर पकड़ तो नही होगी लेकिन बिल इरादा कसमों का हिसाब होगा, अपनी बीवियों को तंग करने की नियत से 4 महीने से ज्यादा उनसे दूर रहने का इरादा ना करना, अगर निभाना नामुमकिन हो तो उन्हें लटकाए रखने के बजाय तलाक दे दो, तलाक वाली औरतें तीन नापाकी के वक्त तक इद्दत गुजारेे ताकि हमल हो तो जाहिर हो जाए इद्दत के दौरान अगर मर्द चाहे तो तलाक से रूजू कर सकते हैं ।
औरतों के हुकूक उनकी जिम्मेदारियों के लिहाज से है, रूजू मामले में मर्दों का हक एक दर्जे उपर है, लेकिन उन्हें भी रूजू का इख्तियार दो मर्तबा तलाक देने तक है, अगर औरत तलाक लेना चाहे तो बहामी रजामंदी से तो वह शौहर को इसके लिए मुआवजा दे सकती है, तीसरी मर्तबा तलाक के बाद रूजू नहीं है, हां अगर तीसरी मर्तबा तलाक के बाद औरत का किसी और से निकाह हो जाए फिर वहां भी निभाने की सारी कोशिशें नाकाम हो जाने के बाद तलाक हो जाए तो इददत गुजारने के बाद पहले शौहर से निकाह हो सकता है, पहली और दूसरी तलाक की इददत पूरी हो जाने के बाद या तो उनसे फिर निकाह करके उन्हें रोक लो या भले तरीके से जाने दो, महज सताने के लिए रोक कर अल्लाह की आयात के साथ मजाक ना करना, वह हर बात इल्म रखता है, इद्दत के बाद औरत की तलाक मुकम्मल हो जाती है, वह चाहे तो कहीं भी निकाह कर सकती है, उसमें हरगिज रुकावट ना डालना, तलाकशुदा औरत का शौहर अगर बच्चों को 2 साल दूध पिलवाना चाहे तो उसे मां और बच्चे दोनों का खर्च देना होगा, बेवा औरत की इददत 4 महीने 10 दिन है, अगर औरत को हाथ लगाने से पहले तलाक दे दी, तो कम स कम आधा मेहर अदा करना होगा ।
अपनी नमाजों और बीच की नमाजों की हमेशा हिफाजत करना, यहां तक कि अगर कोई खौफ की हालत है तो पैदल चलते-चलते या सवारी पर बैठे-बैठे वह सवारी को चलाते वक्त भी नमाज अदा करो, हां जब आसानी हो जाए तो वैसे ही अदा करना जैसे सिखाई गई थी, वफात पाने वालों की बीवी के लिए यह ताकीद है वह एक साल तक घर से ना निकाली जाए, इस दौरान उसका खर्च शौहर के तरके में से होगा, उसके बाद अगर वह खुद चली जाए तो तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है, तलाकशुदा औरतों पर मारूफ तरीके से नान-नफका अदा करना, तक्वा इख्तियार करने वालों पर फर्ज है ।
अहकामत की पाबंदी अगर अल्लाह की रजा मंदी के लिये होगी तो तुम बाहर भी मजबूत हो होगे, बनी इजराइल के जो लोग मौत से डरते थे, वो तादाद में ज्यादा होते हुए भी डर कर भाग गए थे, वह मुर्दा कौम थे उनकी अगली नस्ल को अल्लाह ने जिंदा कौम बनाया, जो मौत से नहीं डरते थे, तुम अल्लाह की राह में जंग करने से ना डरना और अल्लाह की राह में खर्च करते रहना वो तुम्हें उससे कहीं ज्यादा बड़ा कर देगा ।
बनी इजराइल का वाकिया याद करो के मूसा के बाद के दौर में उस वक्त के नबी ने तालूत को उनका कमांडर मुकर्रर किया अक्सर लोगों ने इस पर ऐतराज किया, तालुत की खिलाफ वर्जी की, लेकिन कुछ लोग डटे रहे उन्होंने तालुत की कयादत में जालूत के बड़े लश्कर को शिकस्त दी, इस तरह अल्लाह एक गिरोह के जरिए दूसरे गिरोह को हटाता रहता है अगर ऐसा ना होता तो जमीन का निजाम बिगड़ जाता, यह वह उसूल है जो हक के साथ तुम्हें दिए जा रहे हैं और रसूल पर जो वही नाजिल हुई है वह बेशक अल्लाह की तरफ से है ।
रसूलों को अल्लाह ने आपस में एक दूसरे पर मुख्तलिफ फजीलते अता की थी, उनमें वह भी थे जिन से अल्लाह ने कलाम फरमाया, और इशा इब्ने मरियम भी जिन्हे वाजे निशानीयां अता हुई, अल्लाह ने उनकी रूहुल कुददुस के जरिये से मदद की, अगर अल्लाह ये चाहता की वाजे निशानियां आ जाने के बाद लोगों को आपस में लड़ाई में जबरन रोक दे तो वह ना लड़ते, बल्कि उसकी मसीयत तो यह थी वो इख्तियार अता करने के बाद आजमाये, लिहाजा तुम उस दिन से पहले जब कोई किसी के काम नहीं आएगा जो कुछ अल्लाह ने तुम्हें दिया है उसमें से अल्लाह की राह में खर्च करो, अल्लाह के सिवा कोई इलाह नहीं है, वो जिंदा है और हमेशा कायम है रहने वाला है, ना उसे नींद आती है ना उंघ, आसमान और जमीन जो कुछ है उसके ताबे है, उसके हुक्म के बगैर उसके हुजूर कोई सिफारिश ना कर सकेगा, हर छोटी बड़ी चीज उसके इल्म के अहाते में है, आसमान और जमीन में उसका इख्तियार है, उसकी निगरानी से वो थकता नहीं है, वह बुलंद मर्तबे वाला और अजीम है ।
उसने दीन में कोई जबरदस्ती नहीं रखी है, बस बुराई और भलाई को एक दूसरे से अलग और वाजेह कर दिया है अब जिसका जी चाहे जिस रास्ते पर चले। इब्राहिम और शाहे वक्त को देखो इब्राहिम ने उससे कहा मेरा रब जिंदगी और मौत का मालिक है, उसने कठ हुज्जती की और धमकी दी, लेकिन इब्राहिम ना डरे, ना अपने रास्ते से हटे। फिर कोमो की हिदायत और गुमराही को उस वही से समझो, एक शख्स ने जो बाइबल के तफसील के मुताबिक हजरत इश्किल नबी थे, अपनी मुर्दा कौम के बारे में अल्लाह से सवाल किया ये मुर्दे कैसे जिंदा होंगे, अल्लाह उन्हें रोया यानि हालाते बेदारी में रूहानी तजुर्बे की हालत में ले गया, रोया में उन पर 100 साल का अरसा गुजरा, जिस में उन्होंने कौम पर मेहनत की वह कौम यानी इसराइल ब तदरिज जिंदगी की हालत में आ गए, जब वह उस रूहानी तबीयत की हालत से निकले तो अल्लाह ने पूछा कि तुम कितनी देर इस हालत में रहे जवाब दिया कि शायद एक दिन का कुछ हिस्सा, फरमाया हालांकि तुम्हारा खाना पानी खराब नहीं हुआ, और गधा भी सही सलामत है, लेकिन तुम पर रोया में 100 साल गुजरे उन पर नबूवत की मेहनत करने से 100 साल की मुर्दा कौम जिंदा होगी, हड्डियों पर गोस्त चढना और उस पर रूह आना एक ब तदरिज अमल है, उनके समझ में आ गया कि नबूवत की मेहनत के बाद अल्लाह इस कौम की हालत को बदल देगा।
ऐसे ही इब्राहिम ने ईमान होने के बावजूद दिल के इत्मिनान के लिए सवाल किया था, मुर्दे कैसे जिंदा होते हैं अल्लाह ने समझाया कि तुम 4 परिंदे पाल कर खूब मानुष कर लो, और उन में से हर एक को पहाड़ी पर बिठाकर आवाज दो तो उड़ कर चले आएंगे, ऐसे ही कौमों को मानुष करके आवाज देने से निजाम की तशकीस होगी, मुर्दा कोमों में हरारत पैदा होगी उसके बाद उनके दिल से माल की मोहब्बत निकालनी होगी।अल्लाह की राह में खर्च करने की एक मिसाल एक दाने की सी है, जिससे सात दाने पैदा हो, हर बाली से सौ दाने पैदा हो जाए, ईमान वाले खर्च करके एहसान नहीं जताते, एहसान जताने वालों की मिसाल उन दानों की सी है, जो चट्टान पर जमी मिट्टी में बोया जाता है, और एक ही बारिश से धुल जाए।
अल्लाह की राह में बेहतर चीजें दो, वह नहीं कि जो तुम्हे दी जाए तो तुम पसंद ना करो, शैतान तुम्हे मुफलिसी से डरता है, अल्लाह अपने फज्ल का वादा फरमाता है, यह हिकमत की बात है। सदका चाहे खुलम खुला हो या छुपा हुआ लेकिन अल्लाह की रजा के लिए हो, वह लोग तुम्हारी मदद के ज्यादा मुश्तहीक है जिनको अल्लाह के दीन में लगे होने की वजह से कमाने का मौका नहीं मिलता, लेकिन वह खुद सवाल नहीं करते।
सूद को अल्लाह ने हराम करार दिया है, और तिजारत को हलाल, सुद को तिजारत कहने वाले पागल है, इस नतीजे पर पहुंचने के बाद सुद से बाज आ जाए तो उनका पिछला कसूर माफ कर दिया जाता है, वरना उनका ठिकाना जहन्नम होगा, सूदखोरों के खिलाफ अल्लाह और रसूल का एलान ए जंग है, कर्जदार के साथ नरमी बरतो लेन देन के मुहायदे को लिख लिया करो और गवाह कर लिया करो, अल्लाह हर खुली और छुपी बातों को जानता है।
रसूल खुद अपने रब की नाजिल करदा हिदायत पर ईमान रखते है, और ईमान लाने वाले भी, और इमान लाने वाले रसूलों में से किसी एक में भी फर्क नहीं करते, और इतआत करते हैं, किसी से उसकी ताकत से ज्यादा का हिसाब नहीं लिया जाएगा, और हर शख्स अपने आमाल का खुद जिम्मेदार होगा, इमान वालों को दुआ करनी चाहिए भूल चूक से जो कसूर हो जाए अल्लाह माफ कर दे, जिन बोझो की उठाने की ताकत नहीं वो ना डाले जाए, अपने लिए नरमी और दरगुजर की दुआ, और इंकारी, काफिर के मुकाबले में मदद की दरख्वास्त करें ।