अल्लाह के नाम से जो बडा ही मेहरबान और रहम करने वाला है
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Khullasa E Quran |
सुराह युसुफ-12 आयत 1-111
अलिफ लाम रा, ये किताबे मूबीन की आयात है, अल्लाह ने उसे अरबी कुरान बनाकर नाजिल किया, ताकि तुम्हारी अक्लोें में आ जाए, कुरान की इस सूरत में उस वाकिया का बयान है, जिसे अल्लाह ने बेहतरीन वाकिया कहा, हजरत यूसुफ ने ख्वाब देखा कि उनको, 12 सितारे, चांद, सूरज, उन्हे सज्दा कर रहे हैं, वालिद ने मशवरा दिया के यह ख्याब अपने भाइयों को ना बताना, ख्वाब की ताबीर यह है कि तुम्हारा रब तुमको तुमको मुंतखब करेगा, और तुमको बातों की तह तक पहुंचने का इल्म देगा, एक दिन यूसुफ के भाई उनको अपने साथ में ले गए और एक अंधे कुएं में धकेल कर यूसुफ के कपड़ों पर खून लगा कर ले आए, और कहा कि उसे भेडिया खा गया,
हजरत याकूब ने कहा कि मैं सब्र करूंगा और अल्लाह से मदद मांगुगा, उधर से काफिले वालों ने यूसुफ को निकाला और मिस्र में बेच दिया, मिस्र के सरदार ने खरीदा अपनी बीवी से कहा हम इसे अपना बेटा बना लेते हैं, जब वो बड़े हुए तो अल्लाह ने कुव्वते फैसला का इल्म अता किया, सरदार की बीवी उन पर डोरे डालने लगी, और उन्हें गुनाह की दावत दी,
और उसकी तरफ बढ़ी, यूसुफ भी बढ़ जाते अगर उन्होंने अपने रब की भेजी हुई वाजे दलील ना देखी होती, उसके पास से भागे तो औरत पीछे भागी, दरवाजे से सरदार का दाखिला हुआ, औरत ने उल्टा यूसुफ पर इल्जाम लगा दिया, खानदान एक बड़े आदमी की बात पर सरदार ने गौर किया, और उसको समझ में आ गया,
उसने उससे यह कह कर मामला रफा-दफा कर दिया युसुफ से माफी मांगो, शहर की ऊंची सोसाइटी में यह बात फैल गई सरदार की बीवी अपने गुलाम के पीछे पड़ी है, माशरे के उंचे खानदान की औरतों ने सरदार की बीवी से मिलकर एक चाल चली, वह सब को अजीज ए मिश्र के यहां पर दावत के लिए इक्कठा हुई, और जैसे युसूफ उनके सामने आए सब ने अपने हाथ काट लिये, और यूसुफ के हुस्न की तारीफ करने लगी, इस वाकिया भी सोसाइटी फेल गया, सरदारों ने यह मुनासिब समझा के यूसुफ रास्ते से हटा दिया जाए, उन्हें जैल खाने में डाल दिया गया,
जैल खाने में दो गुलाम और भी थे उन्होंने ख्वाब देखे, और ताबिर पूछी युसूफ ताबिर बताने से पहले ईमान लाने की दावत दी, फिर बताया कि तुम में से एक को तो फांसी होगी, और एक बादशाह का खादिम बनेगा, उसने कहा कि बादशाह से मेरा भी जिक्र करना, लेकिन वह जब आजाद हुआ तो शैतान ने उसे भुला दिया, और यूसुफ कई साल से जैल में रहे, एक दिन बादशाह ने ख्वाब देखा, उसने दरबारियों से ताबीर पूछी तो उन्होंने जवाब दिया कि यह तो बेतुका ख्वाब है, इसकी कोई ताबीर नहीं, तब बादशाह के उस गुलाम खादिम को यूसुफ का ख्याल आया, उसने कहा मुझे जेल तक जाने दे तो मैं ताबीर बता दूंगा युसूफ ने बताया कि उन्हें 7 साल बहुत अच्छी फसल होगी 7 साल कहत पडेगा, तो तुम अच्छी फसल के वक्त स्टोर कर लेना, बादशाह ने ताबीर सुनकर को बुलाया
लेकिन हजरत यूसुफ ने रिहाई से इंकार कर दिया और कहा उन पर जब तक इल्जाम का मामला साफ नहीं होगा, वह कैद में रहेंगे क्योंकि मामला शाहे मिश्र का था, औरतों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया, युसूफ की पाक दामिनी का इकरार किया, शाहे मिश्र की बीवी ने भी गुनाह कबूल कर लिया,
यूसुफ ने कहा कि मैंने आजादी से पहले शर्त इसलिए रखी थी, ताकि सबको मालूम हो जाए कि मैंने खयानत नहीं की थी, और खयानत करने वालों को अल्लाह ना कामयाब करता है, बादशाह ने यूसुफ के कहने पर मिश्र का वजीरे खजाना मुकर्रर कर दिया, और इस तरह अल्लाह ने मिश्र की हुकूमत पर यूसुफ की राह हमवार की, जब कहत पडा तो यूसुफ के भाई यूसुफ के पास गल्ला लेने आए, युसुफ ने उन्हें पहचान लिया, बगैर दाम लिए ज्यादा गल्ला दिलवाया और कहा फिर जब आओ तो अपने छोटे भाई को भी लेकर आना, हजरत याकूब से बहुत वाजे करने के बाद अपने सौतेले भाई, युसुफ के सगे भाई को लेकर गला लेने पहुंचे, युसुफ ने चाहा भाई रोक ले लेकिन मिश्र के कानून के मुताबिक युसूफ अपने छोटे भाई को रोक नहीं सकते थे,
और अल्लाह ने मदद फरमाई, गला निकालने का शाही पैमाना सोतेले भाई ने छोटे भाई के सामान में छुपा दिया, जब तलाशी लेने पर बरामद हुआ, चोरी की बतोरे सजा भाई को रोक लिया, इस तरह दोनों भाई एक हो गए, जब बाकि भाई वापिस पहुचे तो याकूब ने कहा कि जाओ अपने भाई का और यूसुफ का भी पता लगाओ, अल्लाह की रहमत से तो सिर्फ काफिर मायूस होते हैं, उन्हें अब भी युसूफ के मिलने की उम्मीद थी,
वह लोग जो वापस यूसुफ के पास पहुंचे और वालिद की हालत बता कर कहा हमारे पास गला खरीदने के पैसे भी नहीं है, यूसुफ का दिल पसीज गया, आगे बात में बढ़ाते हुए खुद को भाइयों पर जाहिर कर दिया, भाइयों के शर्मिंदा होने पर यूसुफ ने उन्हें माफ कर दिया, अपनी कमीज देकर कहा किसे मेरे वालिद के सामने पेश करो, शिद्दत ए गम की वजह से याकूब की बिनाई कम पड़ गई थी, तो वापस आ जाएगी, तुम सब को लेकर यहां पर आ जाओ, फिर सब लोग जब हजरत यूसुफ के पास पहुंचे तो, उन्होंने अपने वालदैन को बुलंद मसनदोें पर बिठाया, सारे खानदान ने युसूफ की अजमत का इकरार किया, तब यूसुफ ने कहा कि अब्बा जान यह मेरे ख्वाब की ताबीर है, जो मैंने बचपन में देखा था, बात यह है कि मेरा रब बड़े वसी अंदाज से अपनी मसीयत पूरी करता है, इन वाकियात से अल्लाह के नबी वाकिफ नहीं थे,
अल्लाह ही ने ब जरिया वही उन्हें बताया, फिर भी यह लोग वहीं पर ईमान नहीं लाते, इनसे कह दो कि मेरा रास्ता तो यह है में भी और मेरी इत्तिबा करने वाले भी, दलाईल की बुनियाद पर अल्लाह की तरह बुलाते हैं, रसूल तो हमेशा इंसान ही होते थे, अगर यह लोग तारीख की शहादत पर गौर करते, कि जब दावत की हुज्जत पूरी हो जाती थी, तो रसुलों को हमारी मदद पहुंच जाती थी, अल्लाह जालिमों को अजाब में पकड़ लेता था, और रसूल और उनके साथियों को बचा लेता था, अक्ल और होंश रखने वालों के लिए इन वाकियात में इबरत है, पहले जो कुछ आ चुका है उस की तस्दीक है, हर चीज की तफसील है, और जो इस पर ही मान रखें, उसके लिए रहनुमाई हैं ।
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