अल्लाह के नाम से जो बडा ही मेहरबान और रहम करने वाला है
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Khulasa E Quran |
सुराह अनफाल-08 आयत 1-75
ये गनीमतें के बारे दरयाफत करते है, तो तुम्हारी सलाहयतो के हक से ज्यादा नेमतें, अल्लाह और रसूल की राह में देने के लिए है, तक्वा इख्तियार करो, सुलाह इख्तियार करो, और अल्लाह और रसूल की इतिआत करो अगर तुम मोमिन हो, मोमिन तो वो है, जब उनके सामने उनके रब की याद दिलाई जाती है तो उनके दिल लरज जाते हैं, और उसकी रब की आयत की तिलावत की जाती है, तो उनका ईमान और बढ़ जाता है, वो नमाज कायम करते हैं, और और अल्लाह के दिये हुए रिज्क में से उसकी राह में खर्च करते हैं, उनके रब के पास उनके बड़े दर्जात, मगफिरत और बेहतरीन रिज्क है,
याद करो जब दुश्मनों के मुकाबले नबी ने अल्लाह से फरियाद की तो अल्लाह ने 1000 फरिश्तों के जरिए खुसुसी मदद फरमाई, अल्लाह ने दुश्मनों के दिलों में रोब डाल दिया, इमान वालों जब मैदाने जंग में दुश्मनों से मुकाबला हो जिसने पीठ फेरी उसका ठिकाना जहल्लम है, तुम उन लोगों की तरह ना हो जाना जो जबान से कहते हैं कि हम ने सुना लेकिन वह नहीं सुनते, अल्लाह के नजदीक तमाम जानदारों में सबसे बेदतरीन वह लोग हैं जो अक्ल से काम नहीं लेते,
अल्लाह और उसके रसूल की पुकार पर लब्बेक कहो, ताकि वह तुम्हें जिंदगी अता करें, और उस फितने से डरो जिसकी तबाही सिर्फ उन लोगों तक महदूद ना रहेगी, जो तुम में से गुनाहगार है, अल्लाह की सजा बहुत सख्त होती है याद करो कि तुम इतने कम और कमजोर थे, कि कोई भी तुम्हें ऊंचक ले, फिर अल्लाह ने तुम्हें ठिकाना दिया, तुम्हारी मदद की, मगर इसका ख्याल रहे, ना अल्लाह उसके रसूल के साथ खयानत करो, ना अपनी अमानतों में खयानत करो, तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद के जरिए तुम्हें आजमाया जाता है, मुनकिरीन हक ने जब-जब अल्लाह के रसूल के साथ चाले चली, अल्लाह ने उनकी चाले उलट दी,
वह अजाब लाने का चैलेंज देते हैं, मगर अल्लाह के किसी कौम पर अजाब के उसूलों में से यह है , दाई जहां दावत दे रहा हो जब तक दावत देने की हुज्जत पूरी ना हो जाए, वहां अजाब नहीं आता, और उस वक्त भी नहीं आता जब लोग इस्गफार कर रहे हो, फिर वह हद से गुजर जाए जंग के हालात पैदा हो जाए, तो आर-पार की जंग करो, यहां तक कि फितना खत्म हो जाए, लेकिन अगर वह फितने से बाज आ जाए, तो उनके आमाल का देखने वाला अल्लाह है, वह तुम्हारा सरपरस्त बेहतरीन हामिल और मददगार है, जंग में जीते हुए माल का पांचवा हिस्सा अल्लाह, रसूल, रिश्तेदारों और मिस्किनो और मुसाफिरो के लिए है,
अल्लाह ने जंग-ए-बदर में दुश्मनों की तादाद बहुत कम कर के दिखाई, ताकि मुसलमानों के हौसले बुलंद रहे कुफफार को भी अल्लाह ने मुसलमानों की तादाद कम करके दिखाई, ताकि मुकाबला जरुर हो और मुंह की खांये, इमान वालो जब तुम्हारा किसी से मुकाबला हो तो तुम साबित कदम रहो, अल्लाह को कसरत से याद करो, आपस में झगड़ो नहीं और सब्र से काम लो, मुनाफिकीन बद्र के मौके पर मुसलमानों की शिकस्त यकीनी समझ रहे थे, ये अल्लाह की उन सुन्नतों के तहत हुआ, कि अल्लाह किसी को कौम को दी हुई नेअमत, उस वक्त तक नहीं बदलता, जब तक वो कौम खुद अपने सोचने का अंदाज और तरजे अमल को नहीं बदल लेती,
आले फिरौन और उसकी पिछली कौमो के साथ जो हुआ, वह भी इसी उसूल के मुताबिक हुआ था, अगर कोई कौम बद अहदी करें, या उनकी तरफ से बद अहदी की इत्तिला हो, तो तुम अलानिया मुहायदा तोड़ दो, अल्लाह खयानात करने वालों को पसंद नहीं फरमाता, अपनी तैयारी और असलाहबंदी इतनी जबरदस्त रखो, के दुश्मन खौफ जदा रहे, अगर दुश्मन सुलाह की तरफ आये तो सुलाह कबूल करो, ऐसी हालत में भी सुलाह से मत हटो, तुम्हारे ख्याल में दुश्मन का इरादा दगाबाजी का हो, अल्लाह तुम्हारे लिए काफी हो जाएगा,
जंगी हालात में मोमिनो का हौसला बढ़ाओ, और अगर ईमान वाले साबिर होंगे तो 10 गुना पर भारी होंगे, लेकिन तुम्हारी कमजोरी के दिनों में भी ईमान वाले अपनों से दोगुना पर भारी होंगे, जो लोग हिजरत करके दारुल इस्लाम में तुम्हारे पास नहीं आए, अगर मदद मांगे, तो उनकी मदद की कोई जिम्मेदारी तुम पर नहीं है, हां अगर दीनी मामलात में मदद चाहे तो जरूर मदद करना, लेकिन दीनी मदद भी उसके खिलाफ नहीं की जा सकती,
जिससे तुम्हारा अमन का मुहायदा हो, ईमान लाने वालों ने तुम्हारे साथ हिजरत की, और तुम्हारे साथ में अल्लाह की राह में जिहाद किया, वह तुम में से हैं, और जिन्होंने तुमको ठिकाना दिया और उनकी मदद की, वहीं हकीकी ईमान वाले हैं, उनमें जो तुम्हारे रिश्तेदार हैं, अल्लाह की किताब के मुताबिक उन के हुकूक तुम पर ज्यादा है बेशक अल्लाह हर चीज का इल्म रखने वाला है,
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