सुराह निसा-04 आयत 1-176
इंसानों अपने रब का तक्वा इख्तियार करो जिसनें तुम्हें एक जान से पैदा किया और उससे बहुत से मर्दों और औरतों को फैलाया रिश्ते नातों का लिहाज रखो, यतिमों के साथ इंसाफ करो, यदि तुम्हे यतीम बच्चियों के हक तल्फी का खतरा हो, तो उन बच्चियों या उनकी मांओ से निकाह करके उनको ताहफुज फरहाम करो चाहे इसके लिये दो या तीन या चार निकाह हो जाये, लेकिन ये लाजिम है एक से ज्यादा बीवीयों के साथ में इंसाफ करना, वरना उनसे निकाह ना करना, औरतों के महर अदा करो, यतीमों का माल उनके हवाले तब करना जब वो निकाह की उम्र को पहुच जाये, ये देखलो के उनमें जहनी पुख्तगी आ गई हो।
विरासत का माल ऐसे तकसीम करोे जैसे अल्लाह ने हुक्म दिया है, ये अल्लाह की मुकरार करदा हदे है, जिन्हे तोड़ना सख्त गुनाह है, और उन हुदुद की खिलाफवर्जी करने वालो के लिये जहन्नम है, अगर तुम्हारी औरतों में से कुछ पर बहम फहाशी का इल्जाम हो तो उस पर चार गवाह लाजिम है, गवाही हो जाए तो उनके लिए ऐसा रास्ता निकला आ जाने तक जिससे वह आइंदा गुनाह से महफूज रहे, जैसे निकाह, उनके घरों से निकलने पर पाबंदी लगा दो, और अगर दो मर्द बदफेली करें तो उन्हें दस्तूर के मुताबिक सजा दो, सजा पाने के बाद अगर तौबा करें और स्लाह करले तो उनके पीछे ना पडो, बुरे काम कर के उस पर डटे रहने वालों की तौबा कबूल नहीं होेगी, इसी तरह मौत के वक्त कुफ्र से तौबा कबूल नहीं होगी।
इमान वालो ना विरासत के माल की तरह औरतों के वारिश बनना, और ना तलाक देते वक्त जो अपनी बीवियों को मेहर या दिगर माल दे चुके हो वापस लेना, और औरतों से तुम्हारे बाप निकाह कर चुके हो उनसे हरगीज निकाह ना करना, जिनसे निकाह हराम है वो है तुम्हारी मांए, बेटियां, बहने, फूफीयां, खालाऐं, भतीजीयां, भांजीयां, रजाई मांए, दुध शरीक बहनें, और तुम्हारी बीवीयों की मांए, तुम्हारी उन बीवियों की लड़कियां जिससे तुम्हारा जिस्मानी रिश्ता कायम हो चुका हो, और सगी बहूऐं, और ये भी हराम है एक वक्त में दो सगी बहने हो, बादियांें को छोड़कर पाक दामन आजाद औरतों से निकाह करना, जिनकी तफसील पहले बताई जा चुकी है, इनके अलावा बाकी सभी औरतें तुम्हारे लिये हलाल है।
जिन औरतों से निकाह करो उनके मेहर लाजमी अदा करना, अगर आजाद औरतों से निकाह की इस्तितात ना हो तो बांदियों के मालिकों की इजाजत से उनके मेहर अदा करके उनसे निकाह कर सकते हो, निकाह के बाद अगर कोई बांदी फहाशी की मुरतकीब हो तो उसकी सजा आजाद औरत से आधी है, आपस में एक दूसरे के माल धोखे से ना खा जाना, अगर तुम बड़े गुनाहों से बचते रहे तो तुम्हारे छोटे-छोटे गुनाह अल्लाह खत्म फरमा देगा, दूसरी की कमाई की ही हिर्श ना करो मर्द औरतों तहाफुज फरहाम करने वाले हैं, मर्दों को चाहिए कि औरतों पर अपना माल खर्च करें और बीवियां शौहरों से सर्कसी ना करें।
अगर मिया और बीवी में झगड़ा हो जाये साथ निभाना ना मुमकिन हो जाये तो दोनों तरफ से एक-एक सालिस मुकर्रर करो, और उनकी स्लाह की कोशिश करो, अल्लाह की बंदगी करो शिर्क ना करो वालदेन से रिश्तेदारों और मिस्किनों और मुसाफिरों के साथ अच्छा सलूक करो, अपने माल लोगों को दिखाने के लिए खर्च ना करो, हिसाब के दिन अल्लाह और हर उम्मत में से उसके नबी को गवाह बनाएगा, उन्होंने पैगाम पहुंचा दिए थे, फिर मोहम्मद सल्ल. को उन सब पर गवाह बनाया जायेगा, क्या वो सब रसुले मिशाक पर इमान लाये थे और उनकी मदद भी की थी।
नशे और जनाबत की हालत में नमाज अदा करना मना है, पानी ना मिले, या बिमार हो तो तैमुम कर लो, जिनको किताब का हिस्सा मिला वो खुद तो गुमराह है ही तुमको भी गुमराह करना चाहते है, यहुदी मोका महल को देख कर और बात को फेर कर अल्फाज बिगाडकर बोलते है, जिन्हे इल्म का कुछ हिस्सा मिला, उनकी हालत यह है बे हकीकत चीजों में और शैतान की तरफ ले जाने वालो में इमान रखते हैं, और इमान लाने वाले के बारे में कहते हैं इनसे तो काफीर अच्छे है, जिन काफिरो को जहन्नम में दाखिल किया जाएगा, उनके बदन की खाल जल जाएगी दूसरी खाल पैदा की जाएगी ताकि हमेशा तकलीफ और जलन में पड़े रहे, और ब अमल ईमान वाले जन्नत में रहेंगे, जहां उनके लिये पाकिजा जोडे होगें और घने सायो में होगें ।
अमानतों की हिफाजत करो और फैसला करने में हमेशा अदल करना, अल्लाह और उसके रसूल की इतिआत के साथ उलुल अम्र यानि अमीर भी की इतिआत करना, लेकिन अगर उनमें कोई बुनियादी इख्तिलाफ हो जाए तो अल्लाह और योमें आखिर पर इमान का तकाजा ये हे कि उस मामले में उलुल अम्र को छोड़कर कुरान को सुन्नत की तरफ वापिस लौटो, जो अल्लाह की किताब से अपने फैसले ना करें, वो मुनाफिक है, उन्हे समझाओं के अल्लाह ने हर रसूल को इसीलिए भेजा कि अल्लाह के हुक्म से उनकी इतिआत की जाए, अगर यह अपने आपसी इख्तिलाफ में तुम्हे फैसला करने वाला ना माने तो ये इमान वाले नहीं हो सकते, जब जंग मौका हो तो उससे कतराना भी मुनाफिक का काम है।
अल्लाह के राह में मारे जाये या गालिब हो अज्रे आजीम के मुस्तहीक होगें । जो कुचले हुये है उन बेबस मर्द औरतों और बच्चो को जुल्म से बचाने के लिये अल्लाह की राह लडने से परहेज ना करना, ईमान वाले अल्लाह की राह में कुफ्र वाले शेतान की राह में लड़ते हैं, जो अल्लाह की राह में निकलने में अपनी जान जाने से डरते हैं उनसे कहो तुम मौत से बच ना सकोगे, चाहे कितनी मजबूत किलों में हो, जब उन्हे कोई फायदा पूछता है तो कहते हैं के अल्लाह की तरफ से और जब नुकसान होता है तो कहते हैं कि मुसलमानों के अमीर की वजह से हुआ है, कह दो के ये सब अल्लाह के कानून के मुताबिक है, तुम्हे जो भलाई भी हासिल होती है वो अल्लाह ही तरफ से होती है, और जो भी मुसीबत तुम्हें पहुंचती है वह तुम्हारे अपने अमल का नतीजा होती है।
जिसने रसूल की इतिआत कि उसने अल्लाह की इतिआत की कोई पीठ तेरे तो तुम उन पर निगरान बनाकर नहीं भेजे गए हो, कुछ लोग मुंह पर इतिआत की बात करते हैं लेकिन पीठ पीछे होकर तुम्हारे खिलाफ मशवरे करते हैं, अल्लाह उनकी काना फुसियां लिख रहा है, तुम उनकी परवाह ना करना, क्या ये लोग कुरान में गौर फिक्र नहीं करते के इसमें कोई टकराव नहीं है, अगर यह गैरउल्लाह की तरफ से होता तो इसमें उनको बहुत टकराव मिलते, ये लोग हर खबर को फेला देते हैं, हालाकि उनको अहम खबरे रसूल तक या जिम्मेदारों तक पहुंचानी चाहिए, थी ताकि वह उनसे सही नतीजे हासिल कर सके, अगर अल्लाह की तुम पर रहमत ना होती तो तुम में से चंद के सिवा सब शैतान के पीछे लग गए होते, जो कोई भी भलाई के लिए खड़ा होगा, उसे उसमें से हिस्सा मिलेगा, जो कोई बुराई की हिमायत में खड़ा होगा वह उसमें से हिस्सा पाएगा, इस्लामी अखलाक का तकाजा ये है के, जो तुम्हे सलाम करें तो तुम उसे बेहतरीन तरीके पर सलाम करना, अल्लाह कयामत के दिन सबको जमा करके हिसाब लेगा, और अल्लाह से सच्ची किसकी बात हो सकती है।
हालात जंग में जो मुनाफिक काफिरों के साथ रहते है, और हिजरत करके तुम्हारे पास नहीं आ जाते, उनका भी हुकुम दुश्मनो ही तरह है, अलबत्ता जिनकी ऐसी मजबूरियां हैं जो हिजरत नहीं कर सकते, और जंग नहीं चाहते और तुम्हारी तरफ सुलाह का पेगाम भेजते हैं, इस हुकुम अलग है, एक तिसरी किस्म के मुनाफिक काफिरों साथ रहने वाले वो हैं जो हर हालत में तो तुुम्से भी अमन चाहते हैं, लेकिन फितने के वक्त उसमे कुद पढ़ते हैं, ऐसे लोग अगर तुम्हे सुलाह का पेगाम ना भेजें, और जंग में हाथ ना रोके रखें, तो उनसे दुश्मन फौजियों के मानिंद ही सुलुक होगा।
कोई मोमिन दूसरे मोमिन को कत्ल ना करें उसकी सजा कत्ल है, लेकिन अगर गलती से ऐसा हो जाये तो वो एक गुलाम आजाद करे और वारिसों को उसके बदले फिदया दे, और जो गुलाम ना पाए तो उसके बदले 2 महीने के लगातार रोजे रखें, जानबूझकर मोमिन को कत्ल करने वाले की सजा जहन्नम है, जब अल्लाह की राह में निकलो, तो जो अपने आप को मुसलमान की हैसियत से पेश करें उस की जबान का यकीन करो, अल्लाह की राह में जान और से जिहाद करने वाले और बगैर उज्र के घर पर बैठै रहने वाले एक जैसे नहीं है, जानों माल सर्फ करने वालों दर्जात उंचे है, अल्लाह के यहां पर किसी का यह उज्र कबूल नहीं होगा कि उन्होंने मजबूरी की वजह से इस्लाम कबूल नहीं किया था, उनसे सवाल होगा कि उन्होने हिजरत क्यों नहीं की, और मुसलमानों से क्यों नहीं आ मिले, अलबत्ता जो हिजरत करने से भी माजूर है उन्हे अल्लाह माफ कर देगा, हिजरत करने वालों को दुनिया में ही बेहतर गुजर बसर मयस्सर होगी, और किसी को अगर बीच में मौत आ गई तो उसका अज्र अल्लाह के जिम्मे हो गया।
हालत सफर में जब दुश्मनों का खतरा हो तो नमाज कस्र कर लिया करो, और हालते जंग में नमाज इस तरह होगी कि आधे लोग अपना असलाह हाथ में लेकर एक रकात नमाज सज्दे तक पढ़े फिर हट जाएं, दूसरे जिन्होंने नमाज नहीं पढी, दूसरी रकात की शक्ल में पूरी करें उनके असलेह उनके साथ हो, फिर हालात काबू में हो जाएं तो पहले की तरह नमाज पढ़ो, नमाज इमान लाने वालो पर पाबन्दी के साथ वक्त पर फर्ज है, जान बूझकर किसी भी हालत में कजा की इजाजत नहीं है।
जो किताब तुम्हारी तरफ नाजिल की गई उसके मुताबिक लोगों के इख्तिलाफात के फैसले करो, बुराई करने वालों की हिमायत ना करना, वो अल्लाह से कुछ भी नहीं छुपा सकते, वो उस वक्त भी उनके साथ होता है जब रातों को उसकी मर्जी के खिलाफ चुपके चुपके मशवरे करते हैं, उनमें से एक गिरोह का इरादा तुम को गलतफहमी में मुफतिला करने का था, हालांकि वह तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते थे, आमतौर पर खुफिया मशवरे में हमेशा शर हुआ करता है सिवा इसके के ये मशवरे जाने पहचाने भलाई के कामों के लिये हो, या लोगों में सुलाह कराने के लिए हो।
अल्लाह के यहां शिर्क की माफी नहीं है, शिर्क करने वाले हकीकत में शैतान को इलाह बनाते हैं, हालाकि शैतान उनकों झूठी उम्मीदें दिलाता है, अल्लाह का वादा सच्चा है उन लोगों से जो अच्छे अमल करें, चाहे वह मर्द हो चाहे औरत, बशर्ते के वो मोमिन भी हो, उनकी जरा भी हकतल्फी ना होगी, उस से बेहतर तरीका किसका हो सकता है, जिसने अल्लाह के सामने सर झुका दिया, और अच्छे अमल किए और अल्लाह के दोस्त इब्राहिम की मिल्लत की इत्तिबा की, यतीमो के साथ इंसाफ करना, अगर किसी औरत को शौहर की तरफ से किसी बदसुलुकी का खतरा हो, तब भी रिश्ता तोड़ने की बजाए कुछ शर्त रख कर सुलाह कर लेना अच्छा है, एक से ज्यादा बीवीयां उनके साथ इतिहां तक इंसाफ करना।
इमान वालों इंसाफ के अलमबरदार बनो चाहे इंसाफ जद खुद के पडती हो, जो इमान लाये फिर काफिर हुये, फिर इमान लाये, फिर काफिर हुये और अपने कुफ्र में बढ़ते चले गए, तो अल्लाह ना उनकी मगफिरत करेगा, ना हिदायत देगा, मुनाफिक इमान वालों के खिलाफ अपने फायदे के लिये काफिरो को अपना दोस्त बनाते हैं, उनके लिए दर्द भरा अजाब तैयार है, जब तुम किसी मजलिस में कुफ़्रिया बातें सुनो तो वहां से उठ जाओ, और मुनाफिकों से होशियार रहो, मुनाफिक नमाज के लिए उठने में बहुत कसमसाते हैं, वह जहन्नम के सबसे निचले हिस्से में रखें जाएंगे सिवाये इसके के वो तौबा कर ले, और अपने अमल की सलाह भी कर ले, अल्लाह कद्रदान इल्म रखने वाला है।
बद जबानी अल्लाह को पसंद नहीं है, अलबत्ता मजनून की जबान से अगर बुरे अल्फाज निकलते हैं तो काबिले माफी है, जो अल्लाह और रसूल के दरमियान फर्क करते हैं और कहते है के हम किसी को मानेंगे और किसी को नही मानेंगे, ‘‘यानी कुछ लोग कुरान को मानने का दावा कर के हदीसों का इंकार करते हैं, कुछ हदीसों के अहकामात के आगे कुछ सुनना गवारा नहीं करते, कुछ लोग किसी रसूल को मानते हैं और किसी रसूल इंकार करते हैं, इस तरह के लोग कुफ्र और इमान के बीच की राह निकालते हैं’’ ये तशरीह है, ऐसे तमाम लोग पक्के काफिर है, ऐसे फर्क करने वालों की मिसाल यह है, इन्होनें हजरत मरयम पर बोहतान लगाया, और हजरत मसीह के कत्ल की साजिश की, हालांकि वो ना मासीह को कत्ल कर सके, ना सलीब पर मसीह की मौत हुई।
इस मामले में इख्तिलाफ करने वालों का मामला मशकुक हो गया, मसीह को अल्लाह ने अपने पास उठा लिया, मसीह की मौत से पहले उस वक्त मौजूद तमाम अहले किताब इमान ला चुके होंगे, ‘‘ ये कुरान सबूत है इशा अले. के आने का, तमाम नबीयों पर वहीं के नुजूल का तरीका एक ही था, फिर इसकी कोई गुंजाइश नही की उन में से किसी एक भी इन्कार किया जा सके, अल्लाह की गवाही इसके लिए काफी है, कि रसूले आखिर सल्ल. पर जो नाजिल हुआ वो अल्लाह के कब्जे कुदरत में है, अहले किताब ने अपने दीन में गूलू किया, मसीह अल्लाह के रसूल थे, वो मरयम की तरफ इल्का किये गये अल्लाह का हुक्म थे, अल्लाह की तरफ से भेजी गई एक रूह थे, ऐ अहले किताब तस्लीस की बातें ना करो, यानि तीन खुदा की, वो अल्लाह एक है, और सारी कायनात के लिये वही अकेला काफी है,