सुराह अहकाफ-46 आयत 1-35
हा मीम, किताब का नुजुल अल्लाह की तरफ से है, जो अजीज और हकीम है, मुन्करीन से कहो के में कोई निराला रसुल नही हुं, मंे नही जानता के मेरे साथ क्या पैष आयेगा, और तुम्हारे साथ क्या होगा, और कहो के तुमने कभी ये सोचा के ये कलाम अल्लाह की तरफ से होगा, और तुमे इसका इंकार कर दिया तो इसका क्या अंजाम होगा, और अपने ही जैसे रसुल की षहदात एक बनी इज्राइल का गवाह दे चुका है, फिर वो गवाह तो मोमिन हुआ और तुमने इंकरार किया, अल्लाह ऐसे जालिमों को हिदायत नही देता, अल्लाह ने इंसान को वाल्देन के साथ हुस्ने सलुक की ताकिद की, एक षख्स तो ऐसा था कि उसकी मां ने ढाई साल तकलीफे उठाकर उसे दूध पिलाया, फिर वो बडा हुआ तो षुक्र गुजार बंदा बना, ऐसे षख्स को जन्नत में दाखिल किया जायेगा, एक दुसरा है, जिसे समझाया गया तो, बदजुबानी करने लगा और आखिरत का इंकार किया, इस तरह के लोगो पर अजाब का फेसला तय हो चुका,
कौमें आद के भाई हुद ने अहकाफ में अपनी कौम को खबरदार किया था, उन्होन अजाब का मजाक उडाया, फिर उनका अंजाम ये हुआ के, रहने की जगह सिवा वहां कुछ नजर ना आता था, ये लोग ये क्युं नही सोचते के जिस बस्तियों को अल्लाह ने तबाह कर दिया, वहां के लोग जिन्हे अल्लाह का षरीक बनाते थे, उन षरीकों ने उन्हे बचा क्यूं नही लिया, एक मर्तबा जिन्हो का एक गिरोह सल्ल. के पास कुरान सुनने पहुचा, वहां पहुचकर उन्होने खमोषी से सुना और अपनी कौम की तरफ पलटकर उन्हे इमान कबूल करने की दावत दी, जो नजर नही आते उन्होने तो इमान कबूल किया और ये तुम्हारे साथ के लोग हठधर्मी करते है, जिस तरह उलुल रसुलों ने सब्र किया, तो तुम भी उनके मामले में फेसले की जल्दी ना करो, हश्र के दिन इन्हे ऐसा मालुम होगा के दुनियां में एक घडी से ज्यादा नही रहे थे, बात पहुचा दी गई तो, हुज्ज्त पुरी होने के बाद हलाकत है,