सुराह जासिया-45 आयत 1-37
हा मीम, इस किताब का नुजलू अल्लाह की तरफ से है, जो ताकत और हिकमत वाला है, कायनात में अल्लाह की आयात बिखरी हुई है, इसके अलावा यकीन रखने वालों के लिए तुम्हारी अपनी तखलीक में और चारों तरफ फेले जानवरों में भी अल्लाह के आयात है, रात और दिन के फर्क में और ऊपर से नाजिल होने वाले पानी में, जो मुर्दा जमीन में जान पैदा करता है, आयात है, जिन्हें नजर नहीं आता वो कैसे ईमान लायेगें, किसी के सामने अल्लाह की आयत पढ़ी जाए फिर वो गुरूर में इंकार करें, ऐसे शख्स के लिए तबाही है, कुरान सरासर हिदायत है, बनी इसराइल को अल्लाह ने फजीलत दी, उन पर नबी भेजें, किताब भेजी उसके बावजूद दीन के मामले में आपस में बहुत इख्तिलाफ हो गए, यह ला इल्मी में नहीं हुआ, बल्कि इल्म आ जाने के बाद लोगो ने अपनी चैधराहट कायम करने के लिए इख्तिलाफ किया, कयामत के दिन उनके इख्तिलाफ का फैसला हो जायेगा,
जालिम लोग एक दूसरे के सरपरस्त हैं, और मुत्तकीन का सरपरस्त अल्लाह है, कायनात को हक पर पैदा करने का मतलब यह है, कि हर एक को उसकी कमाई का बदला मिल जाए, और किसी पर जुल्म ना हो, क्या तुमने उस शख्स के हाल पर गौर किया जिसे इल्म के बावजूद अपनी ख्वाहिशते नफ्स को अपना माबूद बना लिया, अब कौन है जो उसे हिदायत दे सके, आखिरत के दिन एक गिरोह को घुटनों के बल देखोगे और हर गिरोह को उसका रिकॉर्ड दिखाने के लिए पुकार आ जाएगा, अल्लाह का तैयार करवाया हुआ रिकॉर्ड होगा जो तुम्हारी ठीक ठीक गवाही देगा, जो कुछ भी तुम करते थे, अल्लाह उसे रिकॉर्ड करवा रहा है, ईमान और नेक अमल करने वाले अल्लाह की रहमत में दाखिल होंगे, रहे मुजरिमीन तो उनका ना जहन्नम से निकाला जाएगा, और ना यह कहा जाएगा कि माफी मांग लो, असल तारीफ ही के लिए है, जो कायनात का रब, रब्बुल आलमीन है, आसमान में बढ़ाई उसी के लिए है, और वो जबरदस्त और हिकमत वाला है,