Khulasa E Quran | Revealed Quran Hindi | Surah Saba-34 Ayat 1-54 | खुलासा ए कुरान | मुख़्तसर क़ुरान हिंदी | सुराह सबा-34 आयत 1-54

अल्लाह के नाम से जो बडा ही मेहरबान और रहम करने वाला है

Khulasa E Quran
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सुराह सबा-34 आयत 1-54

हकीकी तारीफ उस अल्लाह के लिए है जो आसमान और जमीन की हर चीज का मालिक है, और आखिरत में भी असल हम्द उसी की है, आखिरत पर यकीन ना रखने वाले यह नहीं देखते कि कायनात पर अल्लाह का कैसा कंट्रोल है, वह पिछली तारीख पर नजर डालें, हजरत दाऊद को अल्लाह ने ऐसी हुकूमत दी थी कि पहाड़ उनका रास्ता ना रोक पाते, और परिंदे भी ताबे थे और उनकी सल्तनत के लोग लोहे को पिघलाकर हथियार और तरह-तरह की चीजें बनाते थे,

हजरत सुलेमान को सल्तनत का हिस्सा तो वरसे में मिला, लेकिन मुखालिफ हवाऐं भी समुंद्र उनकी कस्तियों को दूर-दूर तक ले जाती थी, उनके दौरे हुकुमत में तांबा पिघलाकर उनसे तरह-तरह की चीजें बनाना आम था, अल्लाह ने जिनों को भी उनके कंट्रोल में दिया था, जो जिन भी उनसे शरकसी करता तो उसे भड़कती आग में जलने की सजा अल्लाह की तरफ से मुकर्रर थी, वह जिनों से बुलंद इमारते बडे-बडे मुज्जसमे, होज और बडी-बड़ी देगी बनवाते थे,

हजरत सुलेमान का जब इंतकाल हुआ, तो सल्तनत की ताकत उनके नाहल बैठे रजाम की वजह से बहुत जल्द खत्म हो गई, जिसे उसे घुन लग गया हो, लेकिन जब तक हालात बिल्कुल खराब ना हो गये, जिनों को इसका अंदाजा नहीं हुआ, वो ब दस्तुर इतिआत में लगे रहे, इस तरह जिन्नों के उस दावें की झूठी पोल खुल गई, कि वह गैब का इल्म जानते थे, मल्के सबा के इमान लाने के बाद से हजरत सुलेमान की रिसालत और नबुअत मुल्के सबा में जारी थी,
लेकिन हजरत सुलेमान के इंतकाल के बाद मुल्के सबा के लोग ना शुक्रे हो गए, एक जबरदस्त सैलाब ने लोगों को भी तबाह कर दिया और बस्ती के दो अजीम ओ शान बागों को भी तबाह कर दिया, तबाही के बाद उन बागों में कड़वे कासीले फल और झाड़ झंकार थे, लेकिन इस तबाही से अल्लाह ने उन चंद लोगों को महफूज रखा, जो इब्लीस के पैरों नहीं थे,

अजाब की जल्दी बचाने वालों से कह दो कि तुम्हारे लिए एक ऐसे दिन की मियाद मुकर्रर है जिसके आने में ना घड़ी भर ताखीर होगी ना उससे लम्हे भर पहले होगा, हश्र के दिन मुजरिमो में से वह लोग जो दबे कुचले बड़े बनने वालों से कहेंगे, के तुम्हारी वजह से हम इमान में ना आये, वह कहेंगे कि तुम्हें हिदायत कबूल करने से हमने नहीं रोका था, तुम खुद ही मुजरिम थे, जब-जब किसी बस्ती में कोई खबरदार करने वाला भेजा गया तो हमेशा उसके मालदार लोगों ने असल मुखालिफत की, बता दो कि मेरा रब जिसका चाहता है और उसका रिज्क फैला देता है, और जिसको चाहता है कंट्रोल से देता है, मगर अक्सर लोग नहीं जानते हैं

किसी की दौलत या औलाद अल्लाह से करीबी का जरिया नहीं है, बल्कि ईमान और अमल कुर्बत का जरिया है, कह दो कि मैं तुमसे कोई अर्ज तलब नहीं करता, मेरा अज्र तो अल्लाह के जिम्मे है, क्योंकि अगर में गुमराह रहा तो मेरी गुमराही का बवाल मुझ पर है, और अगर मैं हिदायत पर हूं अपने रब के ना नाजिल करदा कलाम के बजह से, े जिस रोज यह घबराए हुए फिर रहे होंगे और कहीं बचकर ना जा सकेंगे, तो करीब ही से पकड़ लिए जाएंगे, उस वक्त कहेंगे कि हम इमान लाये, उस वक्त उनकी ये तमन्ना पूरी ना होगी ।
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