सुराह ज़ुमर-39 आयत 1-75
गालिब हिकमत वाले की तरफ से अल किताब नाजिल की गई, अब दीन के लिए खालीस होकर एक अल्लाह की महकुमियत इख्तियार कर कर लो, गैरुल्लाह को भी कारसाज बनाने वाले कहते हैं, कि हम तो इनकी इतिआत महज इसलिये करते है ताकि अल्लाह की नजदीकी हासिल हो, उनसे कह दो उसकी कोई औलाद भी नहीं है वह अकेला है, उसने सारे आसमान और जमीन को एक मुरत्तब निजाम तहत तखलीक किया, सूरज और चांद को जाबतो का पाबंद किया, जिसकी वजह से लगातार रात और दिन के पलटने का सिलसिला उस मुकर्ररा मुद्दत तक जारी है, जो तुम सब के लिए तय है,
उसने एक नफ्स से तुम्हारी तखलीक की फिर उसने उसको नर और मादा में तकसीम किया, उसने तुम्हारे लिए मवेशियों में से 8 जोड़े बनाएं, तुम्हारी तकलीक माओं के पेटोें में की तीन परतों में होती है, रब के इस निजाम को जानने के बाद तुम किधर मुंह फेर रहे हो, उसे तुम्हारा कुफ तुम्हारे नुकसान के बाइस ना पसंद है, शुक्रगुजारी तुम्हारे अपने फायदे के लिए पसंद है, कोई किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा, बिल आखिर उसके पास सब का हिसाब होगा, जब इंसान तकलीफ में होता है तो तो खूब दुआएं करता है और जब कोई दुआ कबूल होती है तो तो कुबूल करने वालों को भूल जाता है असल में इल्म वाले और वह जो इल्म नहीं रखते बराबर नहीं हो सकते, और जिक्र तो बस अक्ल वाले ही कर सकते हैं,
कह दो कि इमान रखने वाले बंदे उसकी कानून को तोड़ने से बचें, जो मुताबादिल अमल करेंगे, उन्हें इसी दुनिया में अच्छा बदला मिलेगा, अल्लाह की जमीन तो बहुत वसी है, इस्तिकामत इख्तियार करने वालों को उनके अंदाजे से ज्यादा मिलेगा, जो गौर से बात सुनते हैं और जिस मौके के लिए जो मोजू है उसे इख्तियार करते हैं, वहीं अक्ल वाले हैं, क्या तुम कानून ए इलाही नहीं देखते क्या आसमान से पानी बरसता है, जिस से तरह-तरह की खेतीयां आती है और बाद में सब रेजा रेजा होकर बिखर जाती है, इसमें अक्ल वालों के लिए याद दहानी है, जिसका दिल इस तरह इस्लाम के लिए खुल जाए, वह अपने रब के दिए हुए नूर की रोशनी में चले, वह उसकी तरह नहीं हो सकता जिसका जिनके दिल अल्लाह की याद दहानी के लिए सख्त हो गए,
अल्लाह ने बेहतरीन कलाम नाजिल फरमाया है उसकी बार-बार दोहराए जाने वाली आयात एक दूसरे मिलती-जुलती है और वह आपस में एक दूसरे को वाजे करती है, इस तरह कलाम समझने वालों के दिल याद दहानी की तरह रागीब होते हैं इस कुरान में अल्लाह ने लोगों को समझाने के लिए हर किस्म की मिसाले बयान की अरबी जबान में जिसमें कोई टेड नहीं है, अगर कोई किसी एक का गुलाम हो और कोई दूसरा कई झगड़ने वालों का गुलाम हो तो दोनों की हालत में कितना फर्क होगा, बरहाल तुमको एक दिन मरना है और तुम से इख्तिलाफ रखने वालों को भी मरना है, फिर कयामत में हक का फैसला हो जाएगा,
उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जो अपनी तरफ से घढ कर उसे अल्लाह की बात कहें, यह जो हक आने के बाद उसे झूठलाए उनका ठिकाना जहन्नम है, सच्चाई को पेश करने वाले और उसकी तस्दीक करने वाले यही मुत्तकी है, जो अल्लाह का बंदा है उसके लिए अल्लाह काफी है, ऐसे बंदे को गैरउल्लाह से नहीं डराया जा सकता है, अगर उनसे पूछो तो खुद मानते हैं आसमान और जमीन को अल्लाह ने पैदा फरमाया फिर सोचते क्यों नहीं मुखालफत करने वालों से कह दो तुम नहीं मानते तो तुम अपने हिसाब से अमल करते रहो मैं अपना अमल करता रहा हूं अंजाम सामने आ जाएगा, कि कौन रुसवा हुआ,
अल्लाह ने अल किताब को तुम पर दुनिया के इंसानो के लिए नाजिल फरमाया, अब जो हिदायत कबूल करें उसका अपना भला होगा और जो भटकेगा वह खुद अपने भटकने का जिम्मेदार है, मौत के बाद की जिंदगी का तजुर्बा तो अल्लाह रोज कराता है, अल्लाह दो तरह की वफात देता है, एक उसकी मौत के वक्त दूसरी तरह की उसकी नींद में फिर नींद की हालत में जिनकी मौत का वक्त होता है, उन्हें तो रोक लेता है और दूसरों को अपनी मुद्दत पूरी करने के लिए वापस भेज देता है, इसमें गौर फिक्र करने वालों के लिए निशानियां है, अक्ल ना रखने वाले अल्लाह को छोड़कर अपने सिफरीस करने वाले बना लेते हैं, हालांकि वह किसी चीज के मालिक नहीं है, कह दो कि सफाअत सब अल्लाह के हाथ में है, वही आसमान और जमीन का मालिक है फिर उसी की तरफ तुम्हारी वापसी है,
जब सिर्फ खुदा है वाहिद का जिक्र किया जाता है, तो आखिर के उसूल को ना मानने वाले के दिलों में नफरत पैदा होती है, वह जब उसको छोड़कर दूसरों का जिक्र होता है उनके चेहरे खिल जाते हैं इंसान मुसीबत में अल्लाह को पुकारता है जब नेअमत अता होती है तो उसे अपने इल्म का नतीजा कहता है, हालांकि वो नेअमत आजमाइश होती है,कह दो अल्लाह अपने कानूनी मशियत के मुताबिक रोजी फरागी और तंग करता है, अल्लाह के जिन बंदों ने अपनी नफसों पर जुल्म कर डाला उनसे कह दो कि वह तो गफूर रहीम है उसकी रहमत से मायूस ना हो चाहे जितनी गलतियां अब तक हुई है वह सब को ढांफ सकता है, बशर्ते कि तुम अपने रब से रूजू करो, और ना काबिल है, वापसी की तबाही के आ जाने से पहले उसके आगे सरेंडर कर दो, तुम्हारे रब की तरफ से जो हिदायत नामा नाजिल हुआ है, उसमें से हर मौके के मुनासिब तरीन अहकाम का इंतखाब करके अमल करो, इससे पहले के तुम पर ऐसा अजाब अचानक आ जाये जिसका तुम्हें शउर भी ना हो, कहीं बाद में कोई हसरत ना हो काश एक मौका और मिल जाता, तुम्हारी तरफ भी यही वही की गई और इससे पहले भी यही बताया गया अगर शिर्क किया यानी दूसरों के कवानीन माने तो तुम्हारे सारे आमाल बर्बाद हों जायेगे, उन्होंने अल्लाह की शान के मुताबिक उसकी कद्र ना की,
जब सुर फूंका जाएगा, जिन्हें अल्लाह चाहे उसके अलावा सब बेहोश हो जाएंगे, जब दूसरा सूर फूंका जाएगा तो सब देख रहे होंगे, उस दिन इंसाफ होगा और किसी पर जुल्म ना होगा, हर एक को उसके आमाल का पूरा पूरा बदला मिलेगा, काफिरों के गिरोह को जहन्नम की तरफ हांका जाएगा, और तक्वा इख्तियार करने वालों के गिरोह के लिये जन्नत के दरवाजे खुल जाएंगे, उनके दारोगा उनका इस्तकबाल करेंगे, जन्नती कहेंगे अल्लाह के लिए हम्द हैे, जिसने अपना वादा पूरा किया उस दिन हक के साथ फैसला हो जाएगा और जबाने हाल गवाही देगी, के हकीकी तारीफ रब्बुल आलमीन के लिए हैं ।