सुराह हुजुरात-49 आयत 1-18
ईमान वालों अल्लाह उसके रसूल से आगे बढ़ने की कोशिश ना करो नबी की आवाज पर अपनी आवाज को बुलंद ना करो, नबी के मामले में अदब की बात यह थी कि उनको हुजरे के बाहर से पुकार ने की बजाए उनके बाहर निकलने का इंतजार करो, तब तक सब्र करना चाहिए था, कोई फासीक की तुम्हारे पास कोई खबर लाए तो उसकी तहकीक कर लिया करो अगर इमान वालों के दो गिरोह आपस में लड़े तो उनमें सुलाह करवाओ फिर उनमें से एक गिरोह दूसरे पर ज्यादाती करें तो उनसे लड़ो यहां तक कि वह सुलाह पर राजी हो जाए उनके दरमियान इंसाफ करो मोमिन एक दूसरे के लिए भाई भाई हैं लिहाजा अपने भाइयों के दरमियान तालुकात को दुरुस्त करो, इमान वालों आपस में एक गिरोह दूसरे गिरोह का मजाक ना उड़ाए और बुरे नाम से ना पुकारे और जो ऐसा करने के बाद तोबा ना करें वह जालिम है,
लिहाजा अंदाज और गुमान लगाने से बचो क्योंकि बाद अंदाजे गुनाह बन जाते हैं किसी की जासूसी ना करो, लोगों अल्लाह ने तुम्हें एक मर्द और औरत से पैदा किया फिर तुम्हारी बिरादरी और कबीले बनाएं ताकि एक दूसरे से अलग होकर तुम्हारी पहचान हो जाए लेकिन अल्लाह के नजदीक काबिल एहतराम वह है जो तौबा इख्तियार करें ,इल्म के मरकज से दूर लोग ईमान लाने का दावा करते हैं, कह दो कि तुम ही इमान नहीं लाए अपने आप को मुसलमान कह लो, ईमान तो तुम्हारे दिलों में दाखिल भी नहीं हुआ, मोमिन तो वह है जिन्होंने अल्लाह और रसूल पर ईमान लाने के बाद फिर कभी शक ना किया और अपने जानों और मालों से जिहाद किया उनसे कहो कि तुम्हारा इस्लाम कबूल करने का किसी पर एहसान नहीं है अगर तुम अपने दावों में सच्चे हो तो यह अल्लाह का तुम पर एहसान हैं, कि उसने तुम्हें ईमान और हिदायत दी आसमान और जमीन की हर चीज का इल्म रखता है और जो कुछ तुम करते हो उसे देखता है,