सुराह फुरक़ान-25 आयत 1-77
ब बरकत है वो जिसने अपने बंदे पर फुरकान नाजिल किया, ताकि तमाम जहान वालों को आगाह किया जा सके, जो लोग इसे गड़ा हुआ कहते हैं, उनसे कह दो इसे उसने नाजिल किया है, जो आसमान और जमीन के सारे राज जानता है, रसूलों पर जिस तरह के एतराज होते चले आए हैं वहीं रसूले आखिर पर भी हुए यह तो खाना खाता है, बाजार जाता है, इसके साथ फरिश्ता नहीं रहता, इसके लिए कोई खजाना या बाग नाजिल नहीं हुआ, जालिम कहते हैं, तुम लोग एक शहरजदा ‘‘यानि जादू किया हुआ’’ की इत्तिबा कर रहे हो, और हश्र के दिन अल्लाह इन मुशरिकीन के माबूद से पूछेगा क्या तुमने मेरे इन बंदों को गुमराह किया था, अर्ज करेंगे कि पाक है आप की जात यह हमारी कैसे मजाल हो सकती है, लेकिन आप ने इनके बाप दादा को दुनिया का बहुत सामान दिया था, इसलिए यह सबक भूल गए,
अल्लाह ने लोगो को एक दूसरे की आजमाइश का जरिया बनाया, तुम ज्यादतियो पर सब्र करो, तुम्हारा रब सब देख रहा है, जो अल्लाह के कानून के सामने पेश होने का यकीन नहीं रखते और कहते हैं, कि फरिश्ते हमारे पास क्यों नहीं आ गए हकीकत यह है, कि जिस रोज फरिश्तों को देखेंगे तो वह खुशखबरी वाला दिन नहीं होगा, इंकार करने वाले यह भी कहते हैं सारा कुरान एक साथ क्यों नाजिल नहीं हुआ, इसकी वजह यह है ताकि यह ठीक से तुम्हारी अक्लोें में आ जाए इसीलिए इसे अल्लाह ने खास तरतीब के साथ धीरे धीरे करके उतारा है, और यह नसीहत भी है कि तुम्हारे सामने कोई निराला सवाल लेकर आए तो उसका जवाब आ जाए, पिछले अंबिया की कौमों में से नाफरमान कौमें पकड़ी गई, उससे उन्होंने कोई सबक नहीं लिया,
क्या तुमने ऐसे शख्स को देखा है जिसने अपनी ख्वाहिशात को आपको अपना रब बना लिया हो, क्या ऐसे शख्स की तुम वकालत कर सकते हो, उनके सुनने और अक्ल से काम लेने का हाल जानवरों से बदतर है, जानवरों का कानून तो उनके अंदर फिट किया हुआ है, और इसी तरह बेजान चीजों का मामला है वहां भी एक कानून जारी है, यह घटते बढ़ते साये है इस बात की दलील है, कि सूरज की रोशनी जमीन हर वक्त एक सा नहीं पड़ती, बारिश से पहले ठंडी हवाएं फिर बारिश से मुर्दा जमीन में जान, अक्ल वालों के लिए निशानियां है, तुम हठधर्म इंकार करने वालों के बजाय, इस कुरआन के जरिए एक बड़ा जिहाद करो,
अल्लाह की कुदरत में से यह भी है कि मीठा और खारा पानी दो दरियाओं के बीच देखो, उनका पानी आपस में गटमट नहीं होता, इसी तरह ईमान वाले और मुशरिक भी आपस में घ्गट मट नहीं होते, तुम कह दो कि मैं तुमसे कोई उजरत नहीं लेता, मेरी उजरत तो बस यही कि तुम राहे रास्ते पर आ जाओ, रहमान की असल बंदे तो वह हैं जो नरम चाल चलते हैं, और जाहिलों से नहीं उलझते, सज्दों और कयाम में राते गुजारते हैं, एतदाल से खर्च करते हैं,
नाहक किसी की जान नहीं लेते, बदकारी नहीं करते, झूठ के गवाह नहीं बनते, फिजूल चीजों पर से संजीदगी से गुजर जाते हैं, अल्लाह के आयात पर अंधे बहरे होकर नहीं गिरते, बल्कि समझकर मानते हैं, अपनी औलादो और अपनी आंखों की ठंडक बनाने की दुआ करते हैं, फिर यह दुआ भी करते हैं कि हमारे रब हमें मुस्तकीम का इमाम बना, यह वह लोग हैं जिनका जन्नत में बुलंद मकामात पर इस्तकबाल होगा, इंकार करने वालों से कह दो, कि मेरे रब को जरूरत नहीं है कि तुम उसको पुकारो, तुमने झूठलाया है तुम खुद तबाह होओगे ।