जन गण मन गीत-तराना गाना क्या मुसलमानों के लिए शिर्क है ? | Is singing Jan Gan Man Song Shirk for Muslims?

जन गण मन गीत के उर्दू माअने

#Jan Gan Man
Jan Gan Man & Muslims 

जन गण मन राष्टीय गान तराना है जो हर सरकारी गैर सरकारी स्कूल और इदारों में गाया जाता है। लेकिन कुछ मुस्लिम इस पर एतराज जताते आये है कि ये शिर्क का तराना है। मुल्क को भाग्य विद्याता यानि तकदीर बनाने वाला कहा जा रहा है। क्या वाकई में ये तराना गाना शिर्क है ? क्या मुस्लमान इसको गा सकते है ? क्या ये तराना गैर इस्लामी है ? आइये इस तराने के माअने और इसकी तारिख को समझने की कोशिश करते है।


ये तराना रविन्द्रनाथ टेगौर ने लिखा था, (जन्म 1861 मृत्यु 1941) जिनको गुरूदेव के नाम से भी जाना जाता है। जिन्हे हिन्दुस्तानी अदबी तहरीर के लिये ‘नोबल इनाम’ भी दिया गया था। किंग जाॅर्ज 5 ने नाइटहुड के खिताब से नवाजा था लेकिन रविंद्रनाथ टेगौर ने जलियाॅंवाला बाग के कत्लेआम के खिलाफ एहतजाज में ये खिताब वापस लौटा दिया था। 1911 में रविंद्रनाथ टेगौर ने बंगला जबान में ‘जन गण मन’ राष्ट्रीय गान लिखा जो आज हिन्दुस्तान में मुल्की तराना के तौर पर गया जाता है। इसके आलावा हमारे पडोसी मुल्क बंगलादेश का मुल्की तराना ‘आमार सोनार बाॅंग्ला’  भी रविन्द्रनाथ टेगौर ने लिखा था जो आज भी बंगलादेश में गाया जाता है।


उन पर ये इल्जाम भी लगा कि जन गण मन किंग जार्ज अंग्रेज के हिन्दुतान आने की तारिफ में लिखा था, ये बात सही नही है क्योंकि टेगौर ने 1912 अपनी जिंदगी में ही इसकी सफाई दे दी थी कि इस गाने में ‘‘भारत भाग्य विधाता’’ के दो माने है सर्वशक्तिमान ईश्वर (ऊपर वाला जो मुल्क की तकदीर बनाता है) या मुल्क की आवाम (जो अपने अमल से मुल्क की तकदीर बना सकती है) ये खालिस प्रार्थना/दुआ है। तराना लिखने वाले ने खुद अपनी जिंदगी में सफाई दे दी थी तो फिर मुल्क के किसी भी बाशीदें को इस बात पर एतराज नही करना चाहिये।


क्या मुस्लमान इस नेशनल एंथम को गा सकते है, ये बंगला भाषा में है, इसके माअने/मिनींग क्या है। वैसे तो ये खालिस तौहिद का गीत है और शिर्क जैसी कोई बात नही है। लेकिन बंगला जुबान में होने वजह से कई लोग मुस्लिम और गैर मुस्लिम भी इसके माअने सही से नही जानते। इस  वजह से ला इल्मी में एतराज करते है। हम इसके माअने समझते है। जो कि बंगला जुबान के माहिर तहरीर करने वाले मुस्लमानों ने किये है। हम इसके दोनों पहलू को देखते है लफ्जी मफहुम और माअने का हासिल। पहले इसका भावार्थ/माअने का हासिल-खुलासा जानते है।


‘‘जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता।’’

तमाम इंसानों के खालिक और दिलों के मालिक, तेरे ही हाथों में है हिंदुस्तान की तकदीर।


‘‘पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा, द्रविड़ उत्कल बंग। विंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग।’’

तेरा ही नाम तो रौशन है पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, दक्षिण, ओडिशा और बंगाल के दिलों में, तेरा ही नाम तो गुंजता है। विंध्य और हिमालय के पहाड़ों में और तेरा ही नाम तो घुलमिल जाता है गंगा और यमुना की लहरों में।


‘‘तव शुभ नामे जागे तव शुभ आशीष मागे।’’ और तेरी ही तो हम्द के साथ जागते हैं। हम तेरी बरकतो के तलबगार है। ‘‘गाहे तव जयगाथा।’’ हर एक तेरी हम्द गुनगुनाता हैं। ‘‘जन गण मंगलदायक जय हे। भारत भाग्य विधाता।’’ तमाम इन्सानों की भलाई तेरे ही हाथो में है। तेरे ही हाथो में हिंदुस्तान की तकदीर है। ‘‘जय हे, जय हे, जय हे जय जय जय जय हे।’’ फतह/कामयाबी तेरी है, तेरी है, और तेरी ही है।


अब इसका लफ्जी मफहुम जानते है। जन यानि हर जानदार गण यानि आवाम सारे लोग मन यानि दिल/जहन अधिनायक रहनुमा भाग्य तकदीर विधाता यानि खालिक/बनाने वाला। पंजाब-पंजाब सिन्ध-सिन्ध जो आज पाकिस्तान में है गुजरात-गुजरात मराठा-महाराष्ट्र द्रविड-दक्षिण़ उत्कल-उडिसा बंग-बंगाल इन सब इलाके और यहां के लोग। विंध्य-विंध्यचल हिमाचल-हिमाचल प्रदेश और पहाड यमुना-नदी गंगा-नदी उच्छल-हरकत/गतिमान जलधि-समुद्रं, नदी, तलाब, नहरे, झरने तरंग-लहर पानी की मोज। में तेरा ही नाम पुकारा जाता है।


तव-तेरा शुभ-अच्छा नामे-नाम जागे-सोकर जागना आशीष-बरकत मागे-मांगना। गाहे-सब गाते है जय गाथा-फतह/जीत-कहानी, तारिफ, हम्द। मंगल दायक-भलाई करने देने वाला। भारत-हमारा वतन जय हे-फतह, कामयाबी, हम्द, तारिफ तेरी ही तेरी तरफ से है।


इस तराने में कोई शिर्क या माबुदाने वतन बनने की कोई बात नही है। खालिस तौहिद का तराना है, इसको गाने गुनगुनानें में कोई हरज नही है, जब हम मानते है सबका बनाने वाला एक है, दुसरा कोई नही है तो ये उसकी पाकी तारिफ और हम्द का तराना है। इस तराने की जुबान बंगला में है इसकी वजह से मुस्लमानों में गलत फहमी फेल गई है। हमारे आमाल हमारी नियतों पर है हम अपनी नियत खालिस रख कर इस तराने को गा सकते है इसमें कोई लफ्ज ऐसे नही है जो मुस्लमानों के अकिदे के खिलाफ हो।


ये तराना मुल्क की क़ौमी एकता को रोशन करता है जुबान बोली के फर्क को मुस्लमानों को समझने की जरूरत है अल्लाह अरबी, ईश्वर-परमात्मा हिन्दी संस्कृत, विधाता बंगला ये जबान का फर्क है, पहले के लोगों ने गलत समझ लिया तो अब उसको दुरूस्त किया जा सकता है, बंगाली कोई खोई हुई जुबान नही है, कोई भी तर्जुमा मालुम कर सकता है। हर मुल्क के तराने होते है वहां के बंशीदे तराने गाते है जिससे मुल्क और हम वतनों से मुहब्बत आपसी भाई-चारागी और मुल्क से वफादारी की होसला अफजाई होती है।


गुजारिश - इस मसअलें पर इस्लाह पसंद उलमा ईकराम को दलाईल को मद्देनज़र रख कर रहनुमाई करनी चाहिये। ताकि आवाम को सही मालुमात और रहनुमाई मिल सके।


शेयर जरूर करे - जजाक अल्लाह/धन्यवाद

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