क्या औरतें नाकिस उल अक़्ल (यानि कम अक्ल) होती है ? | Are women less intelligent?

क्या औरतें नाकिस उल अक़्ल (यानि कम अक्ल) होती है ? ये सवाल इसलिए है कुछ रिवायत में मिलता कि नबी सल्ल. ने ऐसा कहा है।

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ये सवाल अक्सर तो गैर मुस्लिम करते है, मुस्लमान जवाब नही दे पाते, मुस्लिम औरतें भी ऐसा ही मानती है क्योंकि बचपन से सुनती आ रही होती है, और ज्यादातर मुस्लमान मर्द भी औरतों को दोयम दर्जे की मखलुक समझते है, ये सब वजह भी बनती है, खासकर स्कूल काॅलेज की नौजवान लडकियों के दीन से दूर होने की। इसका नतीजा ये निकलता है कि वो गैर मुस्लिमों से शादियां तक कर लेती है।


उसकी और भी कई वजह जैसे तलाक, पर्दा, कुरान का औरतों को खेती कहना, मर्द को चार शादी की हक, लोंडीयां रखने का हक, विरासत में बराबरी नही, मर्द को सज्दा और औरतें ज्यादा जहन्नम जायेगी वगेराह जो कि सही नहीं है इस सब मसाईल को सही से समझने की जरुरत है ये सवाल जिसके जवाब सिर्फ रिवायतों की बुनियाद पर दिये जाते है जिनको मुस्लिम लडकियां दीन का मसला समझकर उपर से तो मान लेती है लेकिन दिल से कबूल नही कर पाती है, कुछ उलेमा इन मसलों में अपनी अलग राय भी रखते है।


इन्ही सब में से एक मसला यह कि क्या औरतें नाकिस उल अक्ल यानि कम अक्ल होती है? ये कुछ रिवायतों की बुनियाद पर है जैसे सहीह मुस्लिम 79 नबी सल्ल. ने औरतों से कहा तुम सदका किया करो, इस्तिगफार किया करो क्योंकि दोजख में मैनें तुम्हे ज्यादा देखा है, एक औरत ने पूछा ऐसा क्यूं? तो नबी सल्ल. ने फरमाया तुम लानतान बहुत करती हो, शौहर की नाफरमानी भी करती हो, मैनें अक्ल और दीन में कमी होने बावजूद अक्लमंद शख्स पर गालिब आने में तुम से बढकर किसी को नही देखा औरत ने पूछा ऐ अल्लाह के रसूल अक्ल दीन मंे कमी क्या है? आपने कहा कि एक मर्द के बराबर दो औरतों गवाही है, ये अक्ल में कमी है और हेज (मेनसेस) के दौरन नमाज नही पढती हो, रमजान में बे रोजा रहती हो ये दीन में कमी है। इसी तरह की एक और रिवायत है।


सहीह मुस्लिम 885 नबी सल्ल. ईद नमाज पढाई खुत्बा दिया और औरतों की तरफ आये बिलाल साथ थे, कहा तुम सदका किया करो क्योंकि तुम मेंसे अक्सर जहन्नम का ईधन है, औरतों मंे से एक सिया माईल गालों वाली औरत खडी हुई कहा, सल्ल. ऐसा क्यूं सल्ल. इसलिये की तुम शिकायत बहुत करती हो, शौहर नाशुक्री करती हो औरते सदका देने लगी। इसी तरह की एक और रिवायत है। सहीह बुखारी 304 ईदुल फितर या ईदुल अज्हा में ईदगाह में औरतों के तरफ गये और कहा सदका किया करो मैने तुम्हे जहन्नम में ज्यादा देखा है, औरतों ने कहा ऐसा क्यूं? आपने कहा तुम लानतान, शौहर की नाशुक्री, अक्ल और दीन नकीस होने के बावजूद अक्लमंद आदमी को दिवाना बना देती हो, औरतों ने कहा हमारे अक्ल और दीन में क्या नुक्स है आप सल्ल. ने कहा औरत की गवाही मर्द से आधी है, उन्होने कहा जी, यही अक्ल का नुक्स होना है और हेज के दौरान ना नमाज पढती हो और ना रोजा रख सकती हो ये दीन में नुक्स है।


इन रिवायतों में ये तो बात मिल रही है। लेकिन कुछ चीजों में तहकीक और गौर करे तो जैसे कि जानवर जन्नत-जहन्नम नही जायेगें क्यूं? क्योंकि वह वही करते है जो अल्लाह ने उनके जहन में रख दिया, जब उनको अमल नही दिया इख्तियार भी नही दिया तो जहन्नम में नही जायेगें, उसी तरह नाबालिग बच्चे है बचपन में ही मर गये अमल फर्ज नही हुआ था वो भी जहन्नम में नही जायेगे, उसी तरह कई मुल्क ऐसे है जहां पर मुसलामनों को इस्लाम के बहुत से आमाल करने पर पाबंदी है वो मजबूर है उनसे उन आमाल का हिसाब नही लिया जायेगा क्योंकि वो दबे, कुचले, कमजोर है। उनके इख्तियार में अमल करना नही है।और उस जगह पैदा होना भी उनके इख्तियार में नही था, कौन किस जगह पैदा होगा इसमें अल्लाह का इख्तियार है, कोई लगडा, अंधा, लाचार पैदा होता है उसमें हमारा कोई इख्तियार नही होता है।


तो फिर वैसे ही महिने के कुछ दिन औरतों का नापाक होना औरतों के हाथ में नही है औरतों का जिस्म में ये महावारी का नज्म/सिस्टम अल्लाह ही ने रखा है, इसमें औरतों का इख्तियार नही है जब अल्लाह ही ने हेज दिया और साथ में नमाज रोजा की छूट भी दी है, उन दिनों नमाज और रोजा फर्ज नही है तो उन दिनों की नमाज का हिसाब भी नही देना होगा इसमें औरतों का क्या कसूर है, जब जो चीज उनके बस में ही नही है तो फिर उससे दीन में कमी कैसे है? हां जब पाकिजगी है उन दिनों में अमल की कोताही पर जवाबदेही है।


अल्लाह ने मर्द और औरत की जिम्मेदारी अलग-अलग रखी है, कही किसी सोबे में मर्द के ज्यादा हक है, कही औरतों के ज्यादा हक, लेकिन में दीन में दोनो बराबर है। जैसे अल्लाह ने फरमाया सुराह नहल 16/97 जिसने अच्छे अमल किये, चाहे मर्द हो या औरत और मोमिन भी हो तो, हम उसे जरूर पाक जिंदगी अता करेेगें, और उनके अच्छे कामों के बदले उन का हक देगें जो वो किया करते थे। एक और जगह फरमाया अहजाब 33/35 बैशक अल्लाह ने मुस्लमान मर्दो और मुस्लमान औरतों और मोमिन मर्दो और मोमिन औरतों और फरमाबरदार मर्दो और फरमाबरदार औरतों और सच्चे मर्दो और सच्ची औरतों, सब्र, अजीजी, खैरात, रोजे, शर्मगाह की हिफाजत, अल्लाह का जिक्र करने वालों मर्द और ओरतें के लिये अल्लाह ने मगफिरत और सवाब तैयार कर रखा है। दीन में दोनों को बराबर रखा है, इससे दीन में कमी कैसे है साबित हो रही है?


दुसरी चीज गवाही के ताल्लुक से है जिसके बारे में अल्लाह ने फरमाया सुराह बकराह 2/282 ऐ इमान वालों तुम जब आपस में लेने देन करो तो लिख लिया करो... और दो मर्द गवाह बना लिया करो, अगर दो मर्द ना हो तो एक मर्द और दो औरतों को गवाह बना लो ताकि एक भुल जाये तो दुसरी उसे याद दिला दे, असल में अरबी में भुलने के लिये ‘‘नसी’’ लफज आता है, यहां ‘‘तजिल्ला’’ लफज आया है जिसक माना है रास्ते से हट जाये, बात से पलट जाये तो दुसरी उसे ताकिद कर दे। ऐसा नही है कि मर्द रास्ते से नही हटते मर्द भी हट सकते है, लेकिन मर्द के मुकाबले में औरत को जल्द धमकी और दबाव में लाया जा सकता है, तो उस वक्त दुसरी उसको ताकात सपोर्ट दे कर गवाही की ताकिद करें। लेकिन इस आयात में जो गवाही आई है वो सिर्फ लेन देन के मामलात लिये खास है, इसके अलावा कही नही है कि किसी और मामले में दो औरतें गवाह चाहिये, हुआ ये है कि एक फार्मुलें को सब जगह फिट कर दिया गया। जबकि वो सिर्फ एक मसले के लिये है।


दरअसल औरतें फिजीकल तौर पर कमजोर होती है, ये फेक्ट है, इस बात को औरतें खुद जानती है और ये बात तो सारी दुनियां भी मानती है कि मर्द और औरत में जिस्मानी कुव्वत में फर्क है, इसलिये हम देखते है औरतों को गेम्स की टीम अलग होती है उन्हे अलग से खेल खिलाये जाते है, मर्दाे की टीम अलग होती है। आप देख सकते चाहे वो किक्रट हो, फुटबाल, हाॅकी, बास्केटबाल, कुश्ती, दौड, तैराकी वगेराह और रेल, बस, बैंक, में अलग से लाईन होती है रेल में अलग बोगी होती है, बस में रिजर्व सीट होती है, ये नियम दुनियां ही ने बनाये है, खुद औरतें जानती है। इस्लाम ने दोनों को अलग-अलग जिम्मेदारियाँ दी है, किसी में मर्द के हक ज्यादा है, किसी में औरतों के ज्यादा है। लेकिन इससे औरतों के दीन और अक्ल में कमी नही होती है।


हम तक ये इस्लाम पहुंचा ये सबसे अहम गवाही है हम देखते किताबों कई रिवायात/हदीस है जो औरतों ने बयान की है जिसमें दीन के अहम मसाईल और फराईज पर मुस्लमान अमल करते है क्या इस दीन को हम तक पहुचानें में क्या ऐसी कोई हदीस है जिसमें दो औरतों की गवाही मांगी गई हो, नही है एक औरत बयान करती है, मोहद्धसीन ने उसको लिखा है वहां दो गवाही नही मांगी गई है, जबकि ये सबसे संगीन मामला है, दीन पर अमल करने का मामला है यहां गलती होना जहन्नम का बाईस बन सकत है, लेकिन ऐसा नही है, दीन के कई मसाईल और आप सल्ल. की नीजी जिंदगी औरतों से ही आई है, इससे साफ मालुम होता है कि सिर्फ लेनदेन के मामलात को छोड कर सब में बराबरी है इससे औरतों के दीन और अक्ल में कमी साबित नही होती है।


ये तो इसाई अकिदा है वो कहते है कि आदम को हव्वा ने बहकाया था इसलिये औरतों को बच्चें जनने की सजा दी है। लेकिन कुरान ने कहा दोनों से गलती हई और दोनों ने माफी मांगी, दीन में दोनों बराबर है, पुरा कुरान गवाह है। कुछ दलाईल तारिख, रिवायतों से जानते है जैसे नबी सल्ल. और सहाबा को हज करने से रोक दिया गया और सुलाह हुदेबिया हुई उसके बाद आपने सारे सहाबा से कहा सब अपनी कुर्बानी करो और मदिना वापिस चलो लेकिन जो सहाबा अल्लाह के रसूल की एक सांस पर जान देने वाले जां निसार करने वाले लेकिन उस वक्त आप सल्ल. का हुक्म नही माना किसी ने भी कुर्बानी नही की यहां तक कि अबुबक्र रजि. ने भी कुर्बानी से मना कर दिया।


पहली बार ऐसा हुआ आप सल्ल. गम और शाक होकर खेमें में चले गये, आपकी बीवी उम्मे सलमा रजि. ने समझाया ऐ अल्लाह के रसूल आप गमगीन ना हो इस सुलाह से इनके दिमाग सदमें से माउन, सुन्न हो गये है नही तो ये आप का हुक्म मानने से इंकार नही करते आप ऐसा किजीये खुद के जानवार की कुर्बानी कर दीजीये उम्मे सलमा की सलाह पर आपने कुर्बानी कर दी तो फिर सारे सहाबा ने भी करना शुरू कर दिया, आप सल्ल. जिंदगी में इससे ज्यादा शाक वक्त सहाबा के ताल्लुक से नही गुजरा, इतने संगीन मामले को को उम्मे सलमा रजि. औरत हो के हल कर दिया फिर कैसे औरत नाकिस उल अक्ल हो सकती है?


पहली वही आई आप उससे सदमें और शदीद बुखार में थे और कह रहे थे में मर जाउंगा ह. खदिजा रजि. ने बहुत ही समझदारी से तसल्ली दी और कहा आप को अल्लाह कैसे हालाक कर सकता है, आप लोगों की मदद करते है, बोझा उठाते है, मोटीवेट किया, फिर उस वक्त के एक दीनी आलिम वरखा बिन नौफेल के पास ले गई उन्होने बताया आपको रसूल बनाया गया है आपके पास पैगामें ईलाही आया है। ह. खदीजा गारे हिरा पहाडी पर कठीन रास्ते पर चढकर रोजना पानी, खाना पहुचाती थी उस वक्त आपको समझाया अपनी समझ से वरखा के पास ले गई फिर कैसे औरत नाकिस उल अक्ल हो सकती है।


कुरान की एक मिसाल देखे ह. मुसा अले. की मां को अल्लाह ने कहा मुसा को टोकरी में डाल के पानी में बहा दो, वालिद को नही कहा, उनकी बहन टोकरी पर निगाह रखती रही, यहां तक के टोकरी महल के अंदर चली गई, जब मुसा दूध नही पी रहे थे उनकी बहन महल के अंदर तक पहुंच गई फिरोन और आशिया रजि. फिरोन की बीवी को मशवरा दिया कि एक औरत है जिसका ये दूध पी सकता है में उसको जानती हुं उनको ले आती हुं फिरोन ने इजाजत दे दी फिर वो अपनी और मुसा की मां को महल में ले गई और मुसा को पलवाती रही किसी को शक नही भी होने दिया कि ये मुसा की असली मां है ये छोटा काम नही था के वक्त के बादशाह के महल में पहुंचकर ये कारनामा किया फिर कैसे औरत नाकिस अक्ल हो सकती है। और भी कई मिसालें कुरान और रिवायतों से दी जा सकती है।


खुलासा कलाम ये कि शरियत का हर हुक्म आकिल/अक्लमंद और बालिग/जवान के लिये है, जितनी अक्ल अल्लाह ने दी है उतने का ही हिसाब होगा। कुरान में अल्लाह ने फरमाया सुराह बकराह 2/286 अल्लाह किसी पर उसकी ताकत ज्यादा बोझ नही डालता। बच्चा है अक्ल कम है अमल फर्ज नही है, जवाबदेह भी नही है, बडा भी है लेकिन अक्ल कम है, अल्लाह ही ने सलाहियत कम दी हिसाब भी कम होगा। तो फिर जब अल्लाह ही ने औरतों को लेन देन के मामले एक मर्द के बदले दो औरतें गवाह रखी और हेज/महावारी का सिस्टम उनके जिस्म में रखा फिर औरतें जहन्नम में इस वजह से ज्यादा जायेगी ऐसा कैसे हो सकता है। मर्द हो चाहे औरत सब अपने-अपने आमाल और सलाहियत के हिसाब से जन्नत और जहन्नम जायेगें।


अगर हम दुनियांवी मिसालें भी देखे तो हमारे हिन्दुस्तान की पहली पी. एम. इंदिरा गांधी, आर्यन लेडी कहलाती है और एक अच्छी हुकुमत की दुनियां लौहा मानती है, इंग्लेड की मार्गेट, इजराईल की गोल्डा मेयर, मदर टेरिसा, रजिया सुल्तान, लक्ष्मीबाई, मुमताज महल, दुनियां की सबसे पहली 950 में यूनिवर्ससीटी खोलने वाली फातिमा अल फहरी - मुस्लिम औरत थी ये यूनविर्ससीटी आज भी जारी है ईसाइयों के दो केथोलिक चर्च पाॅप वहां से पढकर निकले थे।


फराह मलिक - मेट्रो ब्रांड्स शूज लिमिटेड की मालकिन भारत में सबसे प्रसिद्ध फुटवियर ब्रांडों में से एक है, सालाना करोड़ो रुपये का टर्न ओवर है और भारत के 128 शहरों में 550 से अधिक स्टोर का नेटवर्क है। शमीना वजीर अली - ये मुस्लिम औरत फार्मा कंपनी सिप्ला की वाइस प्रेसिंडेंट है। बीना शाह - ये मुस्लिम औरत दवाई कंपनी सिग्नेट फार्मा की मालकिन है। अर्शिया अल्ताफ - ये मुस्लिम औरत भारत की 3 प्राइवेट कंपनियों की मालकिन है। अलीशा मोबेन - ये मुस्लिम औरत एस्टर डी. एम. हेल्थ केयर की डायरेक्टर है। जिन्होने वर्क फ्रॉम होम पर बहुत बडी रिसर्च की है। और हर साल आप स्कूल और काॅलेज के रिजल्ट देखें इनमें टाॅप लडकीयां ही करती है। दुनियां तौर तो ढेरों मिसालें दी जा सकती है।


हम अगर गौर करे तो इन रिवायतों में आपस में ही बहुत फर्क है, 8 मेंने पढी, जिसमें कही कहा गया कि ईदुल फितर का वाकिया है कही कहा ये ईदुल अजहा का की बात है कही ईदगाह का जिक्र है कही मस्जिद का है कही पर है कि फजर की नमाज के बाद कहा, फिर बात अगर ईद की है यानि अहकामात आने के बाद का वाकिया है तो मर्द, बच्चे और औरते अलग-अलग होगें और तादात भी बहुत होगी, उपर गुजरी रिवायत के मुताबिक उस वक्त पर्दे का हुक्म भी नाजिल हो चुका है तो फिर इतनी दूर से किसी सहाबी का सुनना मुमकिन नही है, ह. बिलाल साथ में है वो रिवायत नही कर रहे, उनसे भी कोई नही कर रहा है 4 सहाबी की रिवायत है, और होलिया भी बता रहे है, एक गरीब औरत सिया गालों वाली, जैसे औरतों को घूर रहे हो, जबकि निगाह नीची रखने का हुक्म भी नाजिल है किसी में है सब ने पूछा, किसी में है एक समझदार औरत ने पूछा एक रिवायत ह. जैनब रजि. से भी है उसमें अक्ल और दीन नाकिस कहने की बात नही आई है।


लेकिन इस तरह की रिवायतें बहुत आई है तो कुछ बात रही होगी लेकिन हम तक पहुचने में गडबड हो गई है, लानतान, शिकायतें, नाशुक्री तक तो कुछ हद तक माना जा सकता है लेकिन अक्ल नाकिस और दीन नाकिस ये कुरान और फितरत के भी खिलाफ है। इस्लाम फितरत दीन है इसमें कोई भी चीज खिलाफें अक्ल और खिलाफे फितरत नही हो सकती है। वैसे चाहे मर्द हो या औरत सब अपने आमाल के नतीजे में जन्नत जहन्नम जाये लेकिन अगर देखा जाये तो औरतें के मुकाबले मर्द ज्यादा गुनाह करते है मसलन कत्ल, चोरी, डकेती, मारपीट, सुपारी, रेप, स्मगलिंग, किडनेपीग, फिरोती, घुसखोरी, बिजनस में झूठ, माल में मिलावट, अफवाह, गबन, आन लाईन ठगी, पोर्न वेब साइटस बहुत तरह के सायबर क्राईम और मुल्कों जंगो में मारकाट इन सब गुनाह में 99 पर्सेंट मर्द ही होते है इस हिसाब से देखा जाये तो ज्यादातर मर्द जहन्नम में जाना चाहिये औरतें ये सब गुनाह में एक परसेंट भी शामिल नही होती है। अल्लाह के रसूल सल्ल. औरतों को नाकिस उल अक्ल नही कह सकते है। ये रिवायतें हम तक पहुचने में कुछ तो कमी पेसी रह गई है। फिर से गौर फिक्र और तहकीक करने की जरूरत है।


ये मसला अब तक चलता चला आ रहा था लेकिन अब लोग इस पर सवाल करते है गैर भी सवाल उठाते है जिससे भी मुस्लिम ख्वातीन के जहन में ये सवाल उठते है जिनके जवाब उनके पास नही होते ये दीन से दूरी की वजह बनती है दीन का असल सोर्स कुरान है, अगर उसके खिलाफ कुछ भी है तो हमें बहुत अहतियात के साथ लेने की जरूरत है।


गुजारिश - इस मसअलें पर इस्लाह पसंद उलमा ईकराम को दोनों तरफ के दलाईल को मद्देनज़र रख कर ततबिक तलाश करनी चाहिये। ताकि आवाम को सही मालुमात और रहनुमाई मिल सके।

हक़/सत्य बात जब कभी जिस किसी से भी और कहीं से भी मिले मान लेना ही हक़ दीन/सत्य धर्म है।

शेयर जरूर करे - जजाक अल्लाह/धन्यवाद

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